बिग टेक की तानाशाही के सामने मोदी सरकार ने टेके घुटने

पीएम मोदी से यह उम्मीद नहीं थी

MODI

निजता का अधिकार यानी Right to privacy हमारे मौलिक अधिकारों में आता है। हर व्यक्ति का यह अधिकार है कि उसकी निजता का पालन हो, सम्मान हो, कोई इसका उल्लंघन ना करे। परंतु देखा जाए तो आज इंटरनेट के इस जमाने में आपके निजी जानकारी की कीमत बहुत ही सस्ती हो गयी है। जितनी एक बोतल पानी की कीमत नहीं होगी उससे भी कम में आप और हम सबका निजी डेटा बिक जाता है। आए दिन ऐसी खबरें सुनने को मिलती ही रहती है कि फलानी जगह से इतने करोड़ लोगों का पर्सनल डेटा लीक हो गया, कई बार खबरें आती रहती हैं कि किसी अन्य देश में आपका निजी डेटा पहुंच गया। इन पर्सनल डेटा में आपके नाम, पता से लेकर आपके बैंक खाते समेत कई संवेदशनशील जानकारियां तक शामिल रहती हैं जिन पर खतरा हमेशा ही बना रहता है।

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निजी डेटा की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाना अनिवार्य है

ऐसे में यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि लोगों के निजी डेटा को सुरक्षित करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं। परंतु मोदी सरकार तो निजी डेटा को सुरक्षित करने, इसको लेकर सख्त कदम उठाने की जगह इस पर अपने कदम और पीछे खींचने लगी है। विपक्ष के विरोध और बिग टेक कंपनियों की तानाशाही के समक्ष सरकार घुटने टेकने को मजबूर होती हुई नजर आ रही है।

दरअसल, मोदी सरकार ने लोकसभा में दो वर्ष पहले लाया गया निजी डेटा संरक्षण बिल वापस ले लिया है। केंद्रीय सूचना एवं तकनीकी मंत्री अश्विनी वैष्णव द्वारा बिल वापस लेने की जानकारी दी गयी। दिसंबर 2019 में सरकार लोकसभा में यह बिल लेकर आयी थी। इसका उद्देश्य लोगों के निजी डेटा को सुरक्षित करना था, जिसके लिए बिल में बेहद ही कड़े प्रावधान रखे गए थे। बिल के अनुसार निजी कंपनियों को अपने ग्राहकों से जुड़ी विस्तृत जानकारी सरकार के साथ साझा करनी थी। इसके अलावा डेटा लीक होने की स्थिति में जिम्मेदारों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का प्रावधान भी इस बिल में था। इसे मोदी सरकार का बड़ी टेक कंपनियों पर नकेल कसने वाले कदम के तौर पर देखा गया।

परंतु जैसे ही सरकार द्वारा लोकसभा में यह बिल पेश किया गया, वैसे ही बड़ी टेक कंपनियां चिंता में पड़ ही गयीं। इसके साथ ही विपक्ष ने भी इसका जमकर विरोध किया। अब विपक्ष की तो आदत ही है कि वो केंद्र द्वारा लाए गए हर बिल में खामियां निकालकर इसका विरोध शुरू कर देता है। परंतु कुछ चुनिंदा लोगों के विरोध के चलते क्या सरकार इस तरह कानून वापस से लेती रहेगी? इनके विरोध के आगे घुटने टेक देगी? देखा जाए तो मोदी सरकार की पहचान एक ऐसी सरकार के तौर पर होती है जो सख्त और कड़े फैसले लेने में जरा भी नहीं झिझकती फिर चाहे उसके विरुद्ध कितना भी हल्ला, कितना भी विरोध क्यों न हो। ये सबकुछ सरकार के फैसलों पर प्रभाव नहीं डाल पाते। वे इन विरोध के आगे हथियार नहीं डालती। परंतु इस बार मोदी सरकार ने ऐसा किया और निजी डेटा संरक्षण बिल वापस लेकर अपने कदम पीछे खींच लिए है।

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सरकार ने बिल वापस लेने का कारण बताया

सरकार ने बिल वापस लेने का कारण यह बताया कि इसे संसद की संयुक्त समिति यानी जेपीएस के पास भेजा गया था। JPC ने बिल की समीक्षा की और इसमें 81 संशोधन और 12 सिफारिशों का प्रस्ताव दिया। संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार ने बिल से कदम पीछे हटाए और इस पर नये सिरे से कानून लाने की बात कही है। यानी निजी डेटा संरक्षण को लेकर कानून एक बार फिर से अटक गया। अब नये कानून पर कब काम शुरू होगा, कब यह बनकर तैयार होगा और कब तक लागू हो पाएगा, इस पर तो अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे में ना जानें कब तक भारतीयों का पर्सनल डेटा यूं ही खतरे में पड़ा रहेगा।

मोदी सरकार के बिल वापस लेने के कारण कई तरह के प्रश्न उठते हैं। सरकार उनकी है, दोनों सदनों में बहुमत उनके पास है, ऐसे में लोकसभा और राज्यसभा में आसानी से बिल पास कराया जा सकता था। ऐसे में बिल को कानून बनाने में किसी तरह की कोई अड़चन नहीं थी, तो फिर ऐसे में आखिर सरकार ने क्यों बड़ी टेक कंपनियों और विपक्षी नेताओं के दबाव में आकर डेटा प्रोटेक्शन बिल को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

भारत की सुरक्षा की दृष्टि से अगर देखें तो निजी डेटा को लेकर कानून बनाना आज के समय में बहुत आवश्यक होता चला जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण हो रहा है ऐसे में भारत में डाटा प्रोटेक्शन के लिए कोई अलग कानून नहीं है और न तो कोई संस्था है जो डेटा की गोपनीयता को सुरक्षा प्रदान करती हो। डेटा सुरक्षा के अभाव के कारण इतने लोगों की व्यक्तिगत जानकारियां दांव पर लगी रहती हैं। तो ऐसे में यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वे भारतीयों के डेटा का दुरुपयोग होने से बचाए। परंतु सरकार अगर ऐसे विरोधों और दबावों के समक्ष घुटने टेककर यूं कदम पीछे खींचती रहेगी, तो इससे गलत संदेश जाएगा और इससे समस्या सरकार की ही बढ़ेगी।

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