“No Asia for Asians”, एस जयशंकर ने पढ़ाया चीनियों को वैश्विक कूटनीति का पीठ

एस जयशंकर ने चीन के 'एशिया फॉर एशियंस' का बताशा बना दिया!

S Jaishankar, Xi Jinping

Source- TFI

जब धरती लगे फटने तो खैरात लगी बंटने। कुछ ऐसा ही हाल इस समय चीन का है, जहां वह एशिया में कम होते अपने प्रभाव को बचाने के लिए बिलबिलाता घूम रहा है। वहीं, चीन के साथ आगामी भविष्य को भारत कैसे देखता है उस पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। पिछले 2 वर्षों में चीन कई मोर्चों पर भारत से भिड़ने की हिमाकत कर चुका है। हाल ही में एस. जयशंकर ने एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के शुभारंभ पर एक प्रबुद्ध श्रोताओं को संबोधित करते हुए देश का पक्ष रखा है। दरअसल, अपने भाषण में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एशियाई सदी, संयुक्त राष्ट्र सुधार, क्षेत्रीय सहयोग, संपर्क और एशिया के भीतर अंतर्विरोधों के प्रबंधन सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रतिक्रिया दी।

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जयशंकर ने चीन की लगाई क्लास

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दोनों देशों के बीच सैन्य गतिरोध की पृष्ठभूमि के खिलाफ सोमवार को कहा कि एशिया का भविष्य भारत-चीन संबंधों के विकास से जुड़ा है और “सीमा की स्थिति संबंधों की स्थिति का निर्धारण करेगी।” निस्संदेह यह बात सौ प्रतिशत सही भी है। जयशंकर ने एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के शुभारंभ के अवसर पर अपने संबोधन में कहा, “जहां एक ओर एशिया के बढ़ते रहने की उम्मीद है, महाद्वीप कितना विभाजित होगा, यह इसकी दरारों के प्रबंधन और कानूनों, मानदंडों और नियमों के पालन पर निर्भर करता है।” यह वास्तव में एकतरफ़ा नहीं बल्कि दोनों तरफ़ से पारस्परिक रूप से हो इसपर जयशंकर ने सबका ध्यान केंद्रित किया।

जयशंकर ने आगे कहा, एशिया का अधिकांश भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि निकट भविष्य में भारत और चीन के बीच संबंध कैसे विकसित होते हैं। उन्होंने कहा कि सही रास्ते पर लौटने और टिकाऊ समझौतों के लिए संबंधों को तीन चीजों पर आधारित होना चाहिए- पहला पारस्परिक संवेदनशीलता, दूसरा पारस्परिक सम्मान और तीसरा पारस्परिक हित। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन का पारस्परिक संबंधों से कभी भी लेना-देना नहीं रहा है। उसने हमेशा दगा देने का काम किया है क्योंकि अपने हित के आगे चीन को न संबंध दिखते और न ही सीमाएं।

जयशंकर का मत है कि एशिया फॉर एशियन फॉर्मूला तभी काम करेगा जब महाद्वीप की बड़ी ताकतें एक-दूसरे पर भरोसा करें। कुछ वाक्यों के बाद उन्होंने विशेषज्ञों को यह कहते हुए रियलिटी चेक दिया कि यूएसए और ऑस्ट्रेलिया भी एशिया में प्रमुख भागीदार बनना चाहते हैं। भारतीय सभ्यता के वसुधैव कुटुंबकम अर्थात् दुनिया एक परिवार है, दर्शन के संदर्भ में डॉ जयशंकर ने कहा, “एशिया में संयुक्त राज्य अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जैसे निकटवर्ती देश हैं जिनके वैध हित हैं। ग्लोबल कॉमन्स को सुरक्षित करने के लिए उनका योगदान भी अमूल्य है। एक परिवार के रूप में दुनिया के विश्वास में व्यक्त भारत का सार्वभौमिक दृष्टिकोण, इसे विशिष्ट एशियाई दृष्टिकोणों से परे जाने के लिए प्रोत्साहित करता है।”

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चीन को सोचने पर मजबूर कर दिया

लेकिन इस सच से कोई अनभिज्ञ नहीं है कि चीन अपने समक्ष ऐसे किसी एशियाई देश को आगे नहीं आने देना चाहता, जो उससे अधिक सामर्थ्य और आर्थिक रूप से विकसित देश हो। इसी क्रम में चीन का रुदाली राग “एशिया फ़ॉर एशियंस” पर आकर रूक जाता है। निस्संदेह 21वीं सदी के एशियाई होने की चर्चा शुरू हुई तो चीन अग्रणी भूमिका में नज़र आया। साम्यवाद के कुछ टूटने के अतिरिक्त चीनी प्रशासन ने 2-3 दशकों तक आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया। परिणाम यह रहा कि चीन की अर्थव्यवस्था आसमान छू गई और चीनी उत्पादों ने एशियाई और साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार पर हावी होना शुरू कर दिया। जल्द ही चीन एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और वास्तव में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।

अब वो अंग्रेज़ी कहावत है न “विद् ग्रेट पॉवर पॉवर,कम्स ग्रेट रिस्पॉन्सिबिलिटी।” चीन ने इस कहावत पर कभी अमल ही नहीं किया। उसका एकमात्र ध्येय रहा अपनी झोली भरना, लूट-खसोट और अतिक्रमण करना। ऐसे में चीन ने जल्द ही अपनी सैन्य शक्ति को अपनी भूमि और समुद्र के आसपास के देशों पर थोपना शुरू कर दिया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण दक्षिण चीन सागर प्रलेखित घटना है। अंत में जयशंकर ने एशिया सोसायटी के अपने संबोधन में कहा, “एशिया की संभावनाएं और चुनौतियां आज काफी हद तक हिंद-प्रशांत क्षेत्र के विकास पर निर्भर हैं।” उन्होंने कहा, “वैश्विक हितों के लिए और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को क्वॉड जैसे सहयोगी प्रयासों से बेहतर सेवा मिलती है।”

आपको बताते चलें कि हाल ही में श्रीलंका में चीन ने अपना खुफिया जहाज भेजा था, जिसे लेकर जमकर बवाल मचा और भारत ने उसे जमकर धोया। जिसके बाद चीन की ओर से कई तरह की प्रतिक्रिया भी सामने आई और भारत ने उसे करारा जवाब भी दिया। अब एस जयशंकर ने अपने संबोधन में चीन के “एशिया फ़ॉर एशियंस” को कूटनीतिक रूप से धोबीपछाड देते हुए चीन को हर एक दांव सोच समझ कर चलने पर विवश कर दिया है।

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