मतलब कहीं का ईंट, कहीं का रोडा भानुमति का कुनबा जोडा। आज मीडिया का व्यवहार कुछ ऐसा ही है जहां वो तथ्यों को साईड कर, तथ्यों को तोड़ मरोड़कर अपनी कलाकारी में मदमस्त है। जो बात वास्तव में कही नहीं गई, जो कदम उठाया नहीं गया उसे ऐसे दर्शाने की कोशिश की जा रही कि यही हुआ है। रूस-यूक्रेन विवाद में भारत अब तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तटस्थ रुख अपनाते हुए शांति और वार्ता हेतु रास्ते निकालने की बात करता आ रहा था, ऐसे में अचानक यह खबर आई की भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में पहली बार यूक्रेन का साथ दिया है लेकिन इस बात में कहीं से कोई सच्चाई नहीं है। यह मीडिया द्वारा फैलाया गया एक भ्रमजाल है।
ध्यान देने वाली बात है कि वास्तव में ऐसा हुआ ही नहीं है, जो आपको दिखाया और बताया जा रहा है वो सही मायनों में अर्धसत्य है। सच्चाई तो यह है कि भारत ने क्या स्वयं रूस ने उस बात का समर्थन किया है जिसको यह कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि भारत रूस के विरुद्ध चला गया। दरअसल, बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने यूक्रेन की स्वतंत्रता की 31वीं वर्षगांठ पर छह महीने पुराने संघर्ष का जायजा लेने के लिए एक बैठक की। जैसे ही बैठक शुरू हुई, संयुक्त राष्ट्र में रूसी राजदूत वसीली ए. नेबेंजिया ने वीडियो टेली-कॉन्फ्रेंस द्वारा बैठक में ज़ेलेंस्की की भागीदारी के संबंध में एक प्रक्रियात्मक वोट का अनुरोध किया।
और पढ़ें: भारत को जल्द ही UNSC में मिलेगी स्थायी सीट
नेबेंजिया ने जोर देकर कहा कि रूस यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की की भागीदारी का विरोध नहीं करता है लेकिन ऐसी भागीदारी व्यक्तिगत रूप से होनी चाहिए न कि ऑनलइन माध्यम से। उन्होंने तर्क देते हुए कहा, COVID-19 महामारी के दौरान परिषद ने वस्तुतः काम करने का निर्णय लिया लेकिन ऐसी बैठकें अनौपचारिक थीं और महामारी के चरम के बाद परिषद प्रक्रिया के अनंतिम नियमों पर लौट आई। ऐसे में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की का संबोधन और उनकी उपस्थिति व्यक्तिगत रूप से होती तो बेहतर रहता।
रूसी राजदूत और संयुक्त राष्ट्र में मौजूद अल्बानिया के राजदूत फेरिट होक्सा के बयानों के बाद परिषद ने जेलेंस्की को वीडियो टेली-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बैठक में भाग लेने के लिए वोटिंग का प्रस्ताव रखा। वोटिंग में 13 सदस्यों ने जेलेंस्की के बैठक में भाग लेने पर सहमति जाहिर की वहीं, रूस ने असहमति जाहिर की। चीन ने वोटिंग में भाग लेने से इंकार कर दिया। मामले पर प्रक्रियात्मक वोट का आह्वान करते हुए नेबेंजिया ने दोहराया कि उनके देश की आपत्ति विशेष रूप से वीडियो टेली-कॉन्फ्रेंस द्वारा राष्ट्रपति की भागीदारी से संबंधित है।
भारत और 12 अन्य देशों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से UNSC को संबोधित करने के लिए ज़ेलेंस्की का समर्थन किया। बात बस इतनी सी ही थी लेकिन इस कहानी को और तथ्यों को ऐसे तोडा-मरोड़ा गया कि ऐसा प्रतीत होने लगा कि फरवरी माह में जबसे संघर्ष की शुरुआत हुई है तबसे भारत UNSC में तटस्थ रुख ही अपना रहा है और इस बार भारत ने यूक्रेन का समर्थन किया है। ऐसे में अर्धसत्य को परोसते हुए क्लिकबेट मैटेरियल की जुगत में मीडिया समूहों ने बात का बतंगड़ बनाकर लोगों के सामने परोसना शुरु किया और यह भी कहा जाने लगा कि इससे भारत और रूस की दोस्ती में दरार आ जाएगा।
वास्तव में मीडिया समूहों ने टीआरपी बटोरने के चक्कर में अपना छीछालेदर करा लिया। बात की गंभीरता को समझने के बजाए ये समूह तथ्यों से खेलने लगे और उन्होंने दुष्प्रचार का ऐसा मायाजाल बिछाया कि सबकुछ रियल ही लगने लगा, जबकि इसमें वैसा कुछ है ही नहीं। उनके कृत्यों से कूटनीतिक स्तर पर दोनों मित्र देशों में बिना बात के मनमुटाव आने की संभावना हो सकती है। ऐसे में पहली बात तो यह कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में न बुधवार को रूस का विरोध किया था, न अब किया है और न ही आगे करेगा। साथ ही मीडिया समूहों को यह समझ होनी आवश्यक है कि वे टीआरपी बटोरने से ऊपर उठकर कुछ सोच सकें और तथ्यों के साथ खिलवाड़ न करते हुए पूरी बातों को जनता के समक्ष रखें ताकि ऐसे मसले पर भविष्य में किसी को भी शर्मिंदा न होना पड़े।
और पढ़ें: UNSC के बदलते समीकरण के बीच भारत कर रहा है यथार्थवाद का अनुसरण
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।