आदिवासियों और शोषितों के लिए कोई जमीन नहीं, हृदयहीन सीएम सोरेन ने यह स्पष्ट कर दिया है

‘पहले हमारे घरों को तोड़ा और बाद में हमें गांव से भी निकाल दिया', कुछ ऐसा है दलितों का दर्द

hemant soren

पहले शाहरुख़ नाम का शांतिदूत अंकिता नाम की लड़की को मौत के घाट उतार देता है फिर भी साहेब रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स में व्यस्त रहते हैं और अब दलित समुदाय के लोगों को शांतिदूतों के बड़े कुनबे ने गांव निकाला देना शुरू कर दिया है तब भी चारों तरफ शांति है। जी हां, बात हो रही है झारखंड की जहां हाल ही में अंकिता कुमारी की मृत्यु होने के बाद भी राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बाहर नहीं आए न ही उनकी नींद खुली। अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि झारखंड के मुरुमातु गांव से लगभग 50 दलित परिवारों को बाहर निकाल दिया गया जिसके बाद इस खबर ने राज्य की सोरेन सरकार पर एक और नया आक्षेप लगा दिया है कि आखिरकार सरकार कर क्या रही है?

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दलितों को उनके ही घरों से निकाल दिया

दरअसल, झारखंड पुलिस ने मंगलवार को कहा कि मुरुमातु गांव से लगभग 50 दलित परिवारों को बाहर निकाल दिया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, झारखंड के पलामू जिले में पिछले चार दशकों से रह रहे परिवारों को एक विशेष समुदाय के शांतिदूतों ने बाहर निकाल दिया। पीड़ित लोगों ने आरोप लगाया है कि ‘मुस्लिम समुदाय के लोग हमारे घरों की जमीन को मदरसे की जमीन बता रहे हैं, उन्होंने पहले हमारे घरों को तोड़ा और बाद में हमें गांव से भी निकाल दिया।’

सोमवार दोपहर मुसहरों के घरों पर अचानक हमला हुआ। हमले के बाद मुसहर जाति के डेढ़ दर्जन परिवार के लोग बेघर हो गए हैं, यहां तक कि हमले के बाद भगदड़ मच गयी। परिवार के कई सदस्य और बच्चे इधर-उधर जान बचाने के लिए भागे। बच्चे लोटो गांव के जंगल में भटक-भटककर रो रहे हैं, बाद में किसी तरह हिम्मत कर कुछ लोग थाना पहुंचे और पुलिस से न्याय की गुहार लगायी। दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि मदरसे की जमीन पर अवैध रूप से कब्जा कर मुसहर परिवार के लोग रहते थे।

यह सब तब हो रहा है जब सत्ताधीश हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के यूपीए गठबंधन के विधायक कभी राज्य के किसी छोर में जा रहे हैं तो कभी राज्य छोड़ पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में मेहमान बन मुफ्त की रोटी तोड़ रहे हैं और पिकनिक मन रहे हैं। यह हेमंत सोरेन के सरकार गिरने के डर के परिणामस्वरूप हो रहा है जिससे राज्य की सरकार बच्चियों पर बढ़ते अत्याचार पर कुछ भी करने में असफल सिद्ध हो रही है तो वहीं अब राज्य में दलित परिवारों को उनके घर और गांव तक ऐसे निकाला जा रहा है जैसे वर्ष 2022 न चल रहा हो बल्कि सन् 1947 ही पुनः दोहराया जा रहा हो जहां अपनी ही ज़मीन से स्थानीय लोगों को जबरन पलायन को विवश किया जा रहा है।

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मामले पर पुलिस ने क्या कहा है?

पुलिस मामले के संज्ञान में आने के बाद कार्रवाई करने के लिए गांव पहुंची तो वहां शांतिदूतों की उग्रता के चलते पुलिस को खाली हाथ लौटना पड़ा। पुलिस ने कहा कि अधिकारी कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए इलाके में रुके थे। उन्होंने बताया कि इस संबंध में 12 नामजद लोगों और 150 अन्य के खिलाफ ग़ैरज़मानती आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। इलाके में धारा 144 लगायी गयी है। हालात को देखते हुए भारी पुलिस फोर्स भी बुलाया गया है। स्थिति पर नियंत्रण रखने के लिए सदर एसडीओ और एसडीपीओ पांडू में कैंप किए हुए हैं।

मामले का संज्ञान लेते हुए झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने घटना पर चिंता व्यक्त की है। राजभवन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि राज्यपाल ने पलामू के उपायुक्त ए डोड्डे से दो दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। डोड्डे ने कहा कि पुलिस को दोषियों को तुरंत पकड़ने के लिए कहा गया है। इस पूरे प्रकरण में राज्य की हेमंत सोरेन सरकार का सहयोग और कार्रवाई निल-बटे-सन्नाटा नज़र आ रहा है जहां वो पहले अंकिता कुमारी की मृत्यु पर चुप्पी साधकर बैठी रही और अब इस मामले में भी कोई बयान और सख्त कार्रवाई करने के लिए कटिबद्ध नज़र नहीं आ रही है क्योंकि साहिब तो पूरी सरकार समेत भ्रमण पर निकले हुए हैं।

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