नोएडा की ‘गालीबाज’ महिला को सबक सिखाना आवश्यक है

'गालीबाज' श्रीकांत त्यागी की तरह इसके घर पर भी चले बुलडोजर

lady goon

भारत एक पुरुष प्रधान देश है, भारत में पुरुषों के पास एकाधिकार निहित होते हैं, भारत में पुरुष ही वर्चस्व कायम रखना चाहते हैं, ऐसी तमाम बातें हैं जो सामाजिक रूप से हमें कभी न कभी सुनने को मिल ही जाती हैं। अब पुरुष विशेषाधिकार बहुत बड़े छलावे से कम नहीं है, इस बात को समझना आवश्यक है। महिलाओं के लिए न्याय के अलग मानक हैं भले ही वो वही अपराध क्यों न करें जो पुरुष ने किया था।

हालिया मामला है उसी नोएडा का जहां एक महिला से अभद्र व्यवहार करना श्रीकांत त्यागी पर इतना भारी पड़ा कि इस घटना के बाद जो कार्रवाई हुई उसको सभी ने देखा और एक ऐसा माहौल बना जिससे सबको सबक भी मिला। लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो नारीवादी सिद्धांत की आड़ में अभद्रता की सारी सीमाएं लांघने में भी पीछे नहीं है।

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वायरल वीडियो ने उगल दिया सच

दरअसल, हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था। वीडियो में भव्या रॉय नाम की महिला चौकीदार को गालियां देती नजर आ रही है। वह एक गरीब चौकीदार को हिंदी शब्दावली में से आने वाले हर संभव अभद्र शब्द को प्रयोग में लाते हुए बेशर्मी की पराकाष्ठा को पार करती दिख रही हैं। गरीब चौकीदार पर जो गालियां दी गयी हैं, वो वही गालियां हैं जिन्हें पीएम ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान इस्तेमाल करना बंद करने का आग्रह किया था। इसके अलावा, इस महिला ने नशे में चूर होने के बावजूद चौकीदार को यह नसीहत देने का दुस्साहस किया कि उसे महिलाओं का सम्मान करने की आवश्यकता है। वाह रे, हिपोक्रिसी की सीमा।

लेकिन, महिला होने के नाते कुछ भी कर जाने का लाइसेंस मिल जाने की सोच वाली ये ऐसी एकमात्र घटना नहीं है। नशे में धुत्त महिला भव्या रॉय ने भी अपना “वर्ग विशेष” वाला अहंकार दिखाया। उसने बिहार और बिहारियों के प्रति पूर्ण अपनी कुंठा को दर्शाया। हां, वही बिहार जो चाणक्य जैसे रत्न जो युगों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन गए, ऐसे दिग्गजों की भूमि है।

शायद, भव्या रॉय का अहंकार एक वकील होने के तथाकथित अधिकार जताने के रवैये से उभरा। गरीब चौकीदार को गाली देने से पहले एक सेकंड भी न सोचने वाली भव्या रॉय पेशे से एक श्रम और रोजगार अधिवक्ता हैं। वाह रे, श्रम अधिवक्ता और श्रमिकों की ही इज़्ज़त नहीं करनी आयी। यूं तो अगर आज के समय में किसी का खाका निकालना हो तो उसकी सोशल मीडिया उपस्थिति ही सारा काम आसान कर देती है। जैसे ही इन मैडम भव्या के लिंक्डइन प्रोफाइल को खोला गया तो उससे पता चलता है कि इस महिला के मन में बिहार राज्य के प्रति कितनी गहरी नफरत है, वह अपने पेशेवर दायरे में विविधता और समावेशन की हिमायत करती नजर आ रही है और असल में कितनी पानी में हैं सब सामने आ गया।

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इस महिला के विरुद्ध कार्रवाई करने में इतनी ढील क्यों?  

लेकिन, असल विडंबना तो यह है कि जो कार्रवाई श्रीकांत त्यागी के साथ की गयी उससे लेश मात्र भी मिलता-जुलता व्यवहार भव्या के साथ होता नहीं दिखा। जहां श्रीकांत के विरुद्ध बुलडोज़र वाली कार्रवाई से लेकर कौन-कौन से एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की गयी, वहीं महिला होने के चक्कर में यहां तो बयार ही उलटी बह रही थी। भव्या की गिरफ्तारी, गिरफ्तारी की तरह लग ही नहीं रही थी। जिस वाहन से उसे थाने जाना था उसे भव्या रॉय स्वयं चला रही थी। बगल में एक महिला कॉन्स्टेबल बैठी थी। अजीब हाल है, ऐसा लग रहा था कि भव्या रॉय को पुलिस ने नहीं पुलिस को भव्या रॉय ने गिरफ्तार कर लिया है।

यह नयी बात नहीं है, हाल ही में कुछ महीने पहले ही लखनऊ में ऐसी ही परंतु शारीरिक रूप से अधिक हिंसक घटना हुई थी। लखनऊ की सड़कों पर एक लड़की के द्वारा एक व्यक्ति को उछल-उछल कर मारते देखा गया था। उस व्यक्ति को लगातार लगभग 20 थप्पड़ मारे गये और कोई भी उसे बचाने नहीं आया। पुलिस को प्रियदर्शिनी नाम की लड़की के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने में 3 दिन लग गये। आज तक पुलिस द्वारा उसे गिरफ्तार किए जाने की कोई रिपोर्ट नहीं है, जबकि वो व्यक्ति पहले ही थाने में एक रात बिता चुका था।

यह तो अलग-अलग मानदंड और प्रक्रियाएं हैं जिनसे आए दिन इस पुरुष प्रधान देश को दो-चार होना पडता है। महिलाओं के साथ बदसलूकी और पुरुषों को गाली देने के ऐसे कई अन्य वीडियो सार्वजनिक डोमेन में हैं, लेकिन पुलिस और प्रशासन ऐसे मामलों पर सोयी रहती है। उनमें से बहुत से पुरुषों के साथ उनकी पत्नियों द्वारा घरेलू हिंसा करने के भी मामले होते हैं लेकिन समाज और लोगों की सोच में ऐसा है कि पुरुष जो ऐसी हिंसा के शिकार ही नहीं हो सकते हैं। इस सोच में न जाने कब परिवर्तन आएगा।

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