कहते हैं कि भोर से पूर्व का अंधकार सबसे गहरा प्रतीत होता है और कहीं न कहीं इसी अंधकार में छुपे होते हैं कुछ अवसर जो काफी कुछ परिवर्तित कर सकते हैं। अब लाल सिंह चड्ढा के फ्लॉप होने से बॉलीवुड रसातल में जाता हुआ प्रतीत होता है परंतु इसी में कुछ ऐसे अवसर भी हैं जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।
इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे लाल सिंह चड्ढा के घटिया प्रदर्शन के कारण आमिर खान का गुलशन कुमार की जीवनी से पत्ता कटना तय है। जानेंगे कि कौन से अधिक योग्य अभिनेताओं को आमिर की जगह लिया जा सकता है।
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विषैला एजेंडा और थर्ड क्लास पीआर
हाल ही में आप सबने देखा कि कैसे लाल सिंह चड्ढा ने घटिया पटकथा, विषैले एजेंडा और थर्ड क्लास पीआर के कारण जनता के विरुद्ध विद्रोह का ज्वार भाटा उत्पन्न कर दिया, आपने ये भी देखा ही होगा कि कैसे इसके कारण ‘लाल सिंह चड्ढा’ भारतीय बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह धड़ाम हो गयी।
बात यहीं पर खत्म नहीं होती। देश की सबसे बड़ी फिल्म और म्यूजिक कंपनी स्थापित करने वाले गुलशन कुमार की बायोपिक ‘मोगुल’ अनिश्चितकाल के लिए टल गयी है। फिल्म की पटकथा को लेकर इसके निर्देशक और टी सीरीज के बीच चलती रही अनबन के बीच फिल्म में गुलशन कुमार का किरदार निभाने जा रहे आमिर खान की फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ की रिलीज ने फिल्म पर विराम लगा दिया है। इस बीच फिल्म ‘मोगुल’ के निर्देशक सुभाष कपूर ने अपनी अगली फिल्म ‘जॉली एलएलबी 3’ को शुरू करने का मन बना लिया है।
फिल्म ‘मोगुल’ पहले अक्षय कुमार के साथ प्रारंभ होने वाली थी, और फिर बाद में इसे वरुण धवन और यहां तक कि कपिल शर्मा तक को जोड़ा गया। परंतु अन्त में आमिर खान पर सहमति जतायी गयी। जिन्होंने हामी भी भरी लेकिन अब “लाल सिंह चड्ढा” के पश्चात उनका पत्ता भी कटना लगभग तय है। तो क्या इसका अर्थ है कि यह फिल्म खत्म हो चुकी है? नहीं, ‘मोगुल’ अभी भी बन सकती है, यदि इसके समीकरण और इसके कास्ट में परिवर्तन किए जाए तो। हमारे विचार में भी कुछ ऐसे अभिनेता हैं जो न केवल गुलशन कुमार के जीवन को आत्मसात कर सकते हैं अपितु उनके व्यक्तित्व के साथ न्याय भी कर सकते हैं।
ये एक्टर करेंगे न्याय
- परेश रावल –
अपने बाबू भैया से भला कौन परिचित नहीं होगा? ये वो व्यक्ति हैं जिन्होंने अभिनय में सदैव प्रयोग किया और नित नये आयाम छूए। आज भी हम लोग ‘सरदार’ में उनके द्वारा निभाए गए सरदार पटेल के किरदार को नहीं भूले हैं और ‘हेरा फेरी’ के बाबू भैया को तो भूल ही नहीं सकते हैं? ‘संजू’ में भी सुनील दत्त की भूमिका के साथ न्याय करने का उन्होंने पूरा प्रयास किया।
ऐसे में उनकी आयु भले ही थोड़ी अधिक हो, परंतु जब बात अभिनय की हो तो वे बड़े-बड़ों को मात दे सकते हैं। गुलशन कुमार के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को आत्मसात करना तो उनके लिए बाएं हाथ का खेल होगा।
- पंकज कपूर –
यह बहुत कम लोग जानते होंगे लेकिन अभिनेता पंकज कपूर ने 1990 में ‘एक डॉक्टर की मौत’ में एक ऐसे डॉक्टर की भूमिका आत्मसात की जिसे उसके आविष्कार का कभी सम्मान नहीं मिला। यह भारत के टेस्ट ट्यूब बेबी के मूल आविष्कारक डॉक्टर सुभाष मुखोपाध्याय के कष्टकारी जीवन पर आधारित थी। इस फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया गया था। हाल ही में ‘जर्सी’ फिल्म में उन्होंने सिद्ध भी किया कि भूमिका कैसी भी हो पंकज कपूर को बस किरदार में ढालने की आवश्यकता है।
- कुमुद मिश्रा –
वैसे इनके हाथ कोई खास बायोपिक नहीं लगी परंतु अभिनय में इन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। 1971 से लेकर रॉकस्टार, एयरलिफ्ट, हर जगह इन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। एयरलिफ्ट में इन्होंने तो अक्षय कुमार को लगभग अपनी अभिनय से टक्कर ही दे दी थी, जबकि इनके हाथ न कोई भयानक डायलॉग थे और न ही कोई बहुत बड़े, लंबे, चौड़े भाषण। ऐसे में यदि ये गुलशन कुमार की भूमिका को आत्मसात करें तो केवल इनका व्यक्तित्व भी अपने आप में लोगों को आकर्षित करवाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- मनोज पाहवा –
आपने इस चुलबुले से व्यक्ति को सदैव किसी न किसी हास्य से परिपूर्ण रोल में अवश्य देखा होगा, परंतु मनोज पंकज कपूर और कुमुद मिश्रा की भांति एक मंझे हुए कलाकार हैं, जिनके लिए अभिनय ही उनका सब कुछ है। इन्होंने ‘तुम बिन’ में बहुत पूर्व इसकी एक झलक दिखायी थी, रामप्रसाद की तेरहवीं, मिमी में भी उन्होंने इसके प्रमाण दिए। यदि इन्हें गुलशन कुमार की भूमिका दी जाती हैं तो वे इसे किस स्तर तक ले जा सकते हैं इसका अंदाजा शायद इन्हें स्वयं भी न हो।
- रघुबीर यादव
कपिल शर्मा ने बड़े जोश-जोश में अपने शो पर कहा था कि कमल हासन की फिल्में सबसे अधिक बार ऑस्कर के लिए भारत की ओर से नामांकन को गयी हैं। ये न केवल हास्यास्पद है अपितु गलत है क्योंकि ये कारनामा जिसने किया उन्होंने तो एमेजॉन प्राइम पर प्रधान जी के रूप में भौकाल मचा रखा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं “पंचायत” वाले प्रधान जी यानी रघुबीर यादव की, जिनकी अनेक फिल्में ऑस्कर में भारत की ओर से नामांकन के लिए गयीं और जिनमें से दो तो मूल सूची यानी बेस्ट फ़ॉरेन फिल्म में नामांकित भी हुई। गुलशन कुमार के जीवन को आत्मसात करने के सभी गुण इनमें हैं, स्ट्रगल खूब किया है, उद्योग को अंदर बाहर सब तरीके से जानते हैं, संस्कृति को भी नमन करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर वे भजन भी गा सकेंगे। बताइए भला मिलेगा ऐसा गुणी कलाकार?
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लाल सिंह चड्ढा का फ्लॉप होना अभिशाप नहीं, वरदान है और इस वरदान को हमें जमकर भुनाना चाहिए ताकि अगर गुलशन कुमार की जीवनी जब बने तो उसमें योग्य अभिनेता हो जो उनके व्यक्तित्व को आत्मसात कर सके, उनके अधूरे स्वप्न को साकार कर सके।
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