कांग्रेस के पाखंड को दुनिया में कोई टक्कर नहीं दे सकता

कोर्ट में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का विरोध, राजनीति में बचाव!

Anganwadi workers

हिपोक्रेसी की भी कोई सीमा होती है, लेकिन इस समय कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सारी सीमाएं लांघती नज़र आ रही है। सबकी फ़िक्र करने और जनता की आवश्यकताएं पूरी करने का झूठा वादा करने वाली आम आदमी पार्टी जिसके हर चुनावी घोषणापत्र में फ्री बिजली और पानी का मुद्दा होता ही है वह राजधानी में आंगनवाड़ी में काम करने वाली महिलाओं का वेतन बढ़ा पाने में असमर्थ रही है। जहां एक तरफ पार्टी मुफ्त की चीज़ें बांटने को तैयार है वहीं दूसरी तरफ अपनी महिला कर्मचारियों को उनकी मेहनत का कमाया वेतन देने में असमर्थ नज़र आ रही है।

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जनवरी से वेतन नहीं मिला है

दिल्ली की आंगनवाड़ी वर्कर जब प्यार से अपनी मांग नहीं मनवा पायीं तो उन्होंने गाँधी जी का रास्ता अपनाया और धरने पर बैठ गयीं। उनकी मांग थी कि उनके काम के घंटे उतने रखे जाएं जितना बाकी ऑफिस कर्मचारियों के होते हैं और साथ ही उनका वेतन भी बढ़ाया जाये। आंगनवाड़ी वर्कर्स का दावा है कि महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान जनता की अथक सेवा करने के बावजूद, उन्हें जनवरी से वेतन नहीं मिला है और वे किसी तरह पैसे उधार लेकर अपना घर चला रही हैं।

सरकार से हज़ारों मिन्नतें करने के इतने माह बीत जाने पर भी सरकार के कानों पर जब आखिर में जूं रेंगी तो उन्होंने हड़ताल पर बैठी महिलाओं को अचानक सेवा से बर्खास्त कर दिया और इस तरह एक ही पल में दिल्ली में 884 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का जीवन उल्ट-पलट कर रख दिया। इनमें से कई महिलाएं अकेले अपना घर चलाती हैं। कई महिलाओं की शिकायत है कि उनके फ़ोन पर तो वेतन का मैसेज आया लेकिन उनके बैंक अकाउंट में कभी वो पैसे पहुंचे ही नहीं। सरकार से अपील की लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। महिला एवं बाल विभाग में शिकायत करने का फैसला किया तो सचिव ने मिलने से इनकार कर दिया।

यदि अन्य राज्यों में जीत पाने के लिए चीज़ें मुफ्त में बांटना छोड़ आम आदमी पार्टी अपने कर्मचारियों को वेतन समय पर देना शुरू करे तो क्या ऐसा करना बेहतर नहीं होगा? आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को न तो अपनी मेहनत का वेतन मिला उल्टा उनके 39-दिवसीय प्रदर्शन के खिलाफ 14 मार्च को बर्खास्तगी नोटिस जारी किया गया। जहां पहले वेतन नहीं मिल रहा था वहीं अब उनकी नौकरी भी छिन गयी।

इस अन्याय के विरोध में दिल्ली राज्य आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका संघ (DSAWHU) ने कश्मीरी गेट पर सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के कार्यालय के बाहर एकत्र होकर AAP सरकार के खिलाफ नारेबाजी की, जिसमें दिल्ली सरकार द्वारा हड़ताल में भाग लेने और वेतन में वृद्धि के लिए बर्खास्तगी के नोटिस दिए गए कर्मचारियों की बहाली की मांग की गयी थी।

DSAWHU के अधिकारियों ने बताया कि इससे पहले आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने उपराज्यपाल वी के सक्सेना से मुलाकात की और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा। एलजी ने कहा कि वह उनकी मांगों पर गौर करेंगे और जल्द ही इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे।

DSAWHU ने दावा किया कि दिल्ली सरकार ने पहले 39 दिनों की हड़ताल में भाग लेने के लिए 884 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को टर्मिनेशन नोटिस और 11,942 को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।

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इसे कहते हैं हिपोक्रेसी

क्या आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं अभी कम दुःख में थीं कि कांग्रेस भी जले पर नमक छिड़कने आ गयी। हुआ यह कि बर्खास्त आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने समर्थन दिया और कहा कि वह उनके साथ खड़ी हैं लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस के ही अभिषेक मनु सिंघवी बर्खास्त किए गए कार्यकर्ताओं के खिलाफ खड़ें होकर दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

जहां प्रियंका गांधी ने इस फैसले को “अन्यायपूर्ण” करार दिया और बर्खास्त कर्मचारियों को तुरंत बहाल करने की मांग की। वहीं उनकी पार्टी के ही दूसरे नेता बर्खास्त कर्मचारियों के विरुद्ध आम आदमी पार्टी के पक्ष में खड़े हैं।

श्रमिक संघ भी सारा तमाशा समझ गया और इसी विषय पर DSAWHU ने बयान दिया, “प्रियंका गांधी दिल्ली आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के संघर्ष का ‘समर्थन’ कर रही हैं, जबकि कांग्रेस के अपने राज्यसभा सांसद और पार्टी प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के खिलाफ दिल्ली सरकार की ओर से वकालत कर रहे हैं। जो यह पार्टी करने का प्रयास करने की कोशिश कर रही है वह “झूठी सांत्वना के अलावा कुछ नहीं है।” आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के प्रति कांग्रेस की “सहानुभूति” केवल एक “तमाशा” थी और पार्टी केवल “चुनावी लाभ” के लिए इस मुद्दे को उठा रही है। अगर कांग्रेस हमारी वेतन की मांग के प्रति इतनी सहानुभूति रखती है तो वह उन राज्यों में योजना श्रमिकों का वेतन 25,000 तक क्यों नहीं बढ़ा रही है जहां यह सत्ताधारी सरकार है?”

पकड़े जाने के बाद से कांग्रेस निरुत्तर हो बैठी है। AAP की सरकार तो पहले से ही इस मुद्दे पर चुप्पी साधे है। ऐसे में इन दोनों के बीच कई महिला कर्मचारियों की आजीविका दांव पर लगी है।

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