जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है, कुछ ऐसा ही हाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का हो चुका है। गठबंधन धर्म क्या होता है इसको तो एक अरसे से “कुशासन बाबू” भूला चुके हैं, पर अब जो परिस्थितियाँ उत्पन्न हो रही हैं। वो इस बात को सिद्ध कर रही हैं कि वास्तव में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सीएम की कुर्सी पर बने रहने के लिए नीतीश कुमार कुछ भी करने को तैयार हैं। हालिया प्रकरण है, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को शनिवार के दिन पटना कॉलेज में विरोध का सामना करना पड़ा। इसमें जितना विरोध सामने नहीं आया उससे कई अधिक शासन-प्रशासन का सहयोग दर्पण की भाँति स्पष्ट और साफ़ प्रदर्शित हुआ।
दरअसल, जे.पी. नड्डा भारतीय जनता पार्टी की संयुक्त मोर्चा कार्यकारिणी के लिए बिहार प्रवास पर थे। नड्डा ने बिहार की राजधानी में एक रोड शो किया। जहां वह पार्टी के विभिन्न प्रकोष्ठों की दो दिवसीय संयुक्त राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का उद्घाटन करने पहुंचे। यहाँ कार्यकारिणी को संबोधित करने के उपरांत नड्डा का अगला कार्यक्रम पटना विश्वविद्यालय में एक सेमिनार में था। यहीं अखिल भारतीय छात्र संघ (आइसा) के कुछ कार्यकर्ताओं ने उनके विश्वविद्यालय पहुँचने पर उनके खिलाफ नारेबाजी की।
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बिहार में जेपी नड्डा का विरोध
ज्ञात हो कि, जेपी नड्डा ने पटना कॉलेज से ही पॉलीटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया है और उनके पिता भी पटना यूनिवर्सिटी में ही नौकरी किया करते थे। ऐसे में जिन छात्रों को अपने ऐसे पूर्व छात्र को सुनना चाहिए था। जो आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष है, उसके विपरीत नड्डा का विरोध करना पूर्ण रूप से जायज़ भी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि विरोध दर्ज कराने का एक तरीक़ा होता है। वहीं जिस प्रकार नड्डा का घेराव कर उन पर प्रदर्शनकारी भीड़ आक्रामक तेवर दिखा रही थी उससे संशय शासन-प्रशासन पर भी जा रहा था कि उन्होंने स्थिति पहले क़ाबू न करने के बजाय जेपी नड्डा का घेराव करने तक आमादा होने का अवसर दिया।
वहीं कई बातों पर केंद्र सरकार से असहमति जता चुके। एक बार एनडीए छोड़ आरजेडी का हाथ थाम पुनः एनडीए में वापसी करने वाले नीतीश कुमार अब भी स्वयं को भाजपा पर हावी करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते। यह तब है जब बीते विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को भयंकर गिरावट मिली थी। इसके बावजूद नीतीश कुमार को बड़े भाई का फ़र्ज़ निभाते हुए भाजपा आलाकमान ने पुनः मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया। भाजपा ने जितना विश्वास नीतीश कुमार पर बार-बार कुठारघात करने के बाद किया। ऐसा नीतीश कुमार ने अन्य किसी के साथ किया होता तो शायद धरातल पर न जदयू का अस्तित्व दिखाई देता और न ही नीतीश कुमार को इतने अवसर मिलते जो उन्हें भाजपा ने दिए।
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कुशासन बाबू ने भाजपा को क्या दिया?
विश्वासघात, विश्वासघात और सिर्फ विश्वासघात। बता दें, अखिल भारतीय छात्र संघ (आइसा) के कुछ कार्यकर्ताओं ने जे.पी. नड्डा के खिलाफ नारेबाजी की और नई शिक्षा नीति (एनईपी) को वापस लेने की मांग को लेकर पटना विश्वविद्यालय परिसर में उनके खिलाफ काला झंडा फहराया और जे.पी. नड्डा गो बैक के नारे भी लगाए। छात्र, पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर संस्थान के हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग कर रहे थे। विरोध के दौरान आइसा और भाजपा समर्थित एबीवीपी के समर्थकों के बीच झड़प के बाद पुलिस को हल्का लाठीचार्ज करना पड़ा।
बाद में, नड्डा ने एक संक्षिप्त भाषण दिया। जहां उन्होंने कहा कि “वह प्रदर्शनकारी छात्रों से मिलना चाहते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि “वह अपने छात्रों की शिकायतों को दूर करने के लिए तैयार हैं और उनकी अन्य मांगों पर भी विचार करेंगे।” अन्य मांगों के अलावा आइसा ने कहा कि कॉलेज में एक बहुमंजिला इमारत बनाई जानी चाहिए। इसके अलावा एक सभागार भी होना चाहिए, जिसके अभाव में दीक्षांत समारोह आयोजित करना मुश्किल हो जाता है। निश्चित रूप से यह बिना पुलिस के सहयोग और शासन के आदेश के अनुरूप तैयार की गई रणनीति थी और इससे नीतीश कुमार उर्फ़ कुशासन बाबू ने अपनी जडें खोदने का ही काम किया है।
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