रेत के टीलों में टेंट बनाकर रहने वाले इतने धनाढ्य इसलिए हो गए क्योंकि इनके पुरखों ने रेतीली जमीन के नीचे से कच्चे तेल की खोज कर ली। वहीं आज ईंधन के तौर पर कच्चे तेल की आवश्यकता पूरे विश्व में पूरी कर रहा है और इसलिए कुछ इस्लामिक देशों के पास कच्चे तेल के विराट भंडार होने के चलते वे वैश्विक पटल पर शेखी बघारते रहते हैं। भारत की विदेश नीति मोदी सरकार के पहले इस बात पर भी निर्भर करती थी कि आसानी से राष्ट्र को कच्चे तेल की खपत मिल जाए। ऐसे में कई इस्लामिक देश भारत पर विशेष दबाव बनाते रहते हैं लेकिन अब मोदी सरकार की विदेश नीति में रूस से सस्ते तेल लेकर न केवल अमेरिका की छाती में सांप लुटवाने का इंतजाम किया है बल्कि इस्लामिक देशों को उनकी हैसियत तक भी बताई है।
दरअसल, ब्लूमबर्ग के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है जिसमें यह स्पष्ट तौर पर बताया गया है कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार की अपेक्षा भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल लेकर एक बड़ा फायदा कमा रहा है और अपने विदेशी मुद्रा भंडार में बचत कर रहा है। दूसरी ओर इराक जो अभी तक भारत का कच्चे तेल का एक बड़ा देनदार था। उससे अब रूस से सीधी प्रतिस्पर्धा हो रही है। सटीक शब्दों में कहा जाए तो अब भारत इराक के बाद कच्चे तेल का सबसे ज्यादा आयात रूस से ही कर रहा है।
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सऊदी अरब की जगह रूसी कच्चे तेल ने ली
दरअसल, भारत सरकार के आंकड़ों के आधार पर ब्लूमबर्ग की गणना के अनुसार, अप्रैल से जून के दौरान रूसी बैरल सऊदी क्रूड की तुलना में सस्ता था और मई में लगभग 19 डॉलर प्रति बैरल की छूट के साथ रूस ने जून में भारत को दूसरे सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता के रूप में तेल बेचा है। गौरतलब है कि पहले भारत इराक के बाद सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात सऊदी अरब से करता था लेकिन अब सऊदी अरब की जगह रूसी कच्चे तेल ने ले ली है।
अहम बात यह है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जिन नाटो देशों की सीधे तौर पर रूस से पंगा लेने की हिम्मत न हुई उन्होंने रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों का शिगूफा छोड़ा, इनमें सबसे आगे अमेरिका ही रहा है। वहीं इससे अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की खपत बढ़ी और आपूर्ति नहीं हो पाई। ऐसे में रूस जो भारत का सच्चा कूटनीतिक मित्र रहा है, वो आर्थिक मुसीबतों में घिर गया। ऐसे में भारत ने रूस की आर्थिक मदद के लिए तरकीब निकाली जिससे भारत को भी राहत मिली और रूस का भी आर्थिक फायदा हुआ। आज की स्थिति को देखें तो यदि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत $ 95 प्रति बैरल है तो रूस भारत को 19 डॉलर कम के रेट पर करीब 76 रुपये में कच्चा तेल बेच रहा है।
अहम बात यह है कि साल 2021 में रूस भारत का कच्चे तेल के निर्यातक देशों में 9वें स्थान पर आता था लेकिन आज वहीं रूस दूसरे नंबर पर सऊदी अरब की जगह ले चुका है। गौरतलब है कि जिस दौर में यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध जारी है उस दौरान भी रूस भारत में आवश्यक चीजों की आपूर्ति करता रहा है। भारत ने रूस से तकरीबन 3.5 लाख टन डाई-अमोनियम फॉस्टवेट (डीएपी) का आयात किया। इसके साथ ही रूस, भारत का DAP उर्वरक के प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है।
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जानकारी के मुताबिक अप्रैल से जुलाई की अवधि के दौरान रूस से भारत ने 920-925 डॉलर प्रति टन की लागत से कुल DAP आयात 3.5 लाख टन का करार किया है। यह आयात ऑर्डर इंडियन पोटश लिमिटेड, राष्ट्रीय केमिकल फर्टिलाइजर, चंबल फर्टिलाइजर्स और कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड को मिला है। इससे पहले वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने कुल 58.60 लाख टन डीएपी खाद खरीदी थी, जो मुख्य रूप से चीन, सऊदी अरब और मोरक्को से आयात की गई थी।
अमेरिका को रास नहीं आ रहा है भारत रूस की मित्रता
एक तरफ जहां रूस भारत को कच्चे तेल की खपत आसानी से पूरा करने में सफल रहा है। वही दूसरी ओर अमेरिका को यह बात चुभती ही रही। अमेरिका ने भारत से गुहार लगाने से लेकर धमकियां तक दी लेकिन किसी भी धमकी या गुहार के बावजूद भारत सरकार की विदेश नीतियां नहीं हिली हैं जो अमेरिका के लिए बहुत बड़ा झटका है। एक वजह भारत की रूस के साथ मित्रता है तो दूसरी वजह सस्ते में कच्चा तेल लेकर अपने राष्ट्र में बढ़ती मुद्रास्फीति कंट्रोल करने की कोशिश में लगा है।
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