ब्रह्माण्ड का एक मात्र ब्रह्मा मंदिर पुष्कर महातीर्थ ढहने की कगार पर है और सब शांत हैं

ASI और राजस्थान सरकार कुछ नहीं कर रही है। हिंदुओं, सृष्टि रचयिता के मंदिर को बचा लो!

pushkar

आचार्य चाणक्य ने एक समय कहा था, “जो राष्ट्र शास्त्र पढ़ना त्याग दे वो राष्ट्र समाप्त हो जाता है।” यूं ही नहीं कहा था उन्होंने यह क्योंकि राजस्थान में जो कुछ भी इस समय चल रहा है उससे इतना तो स्पष्ट होता है कि केवल यह भूमि नहीं अपितु समस्त समाज अपने नैतिक पतन की ओर अग्रसर है।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे अजमेर के कालजयी पुष्कर महातीर्थ जिस जीर्ण शीर्ण स्थिति में है उस पर न तो गहलोत सरकार ध्यान देना चाहती है और न ही ASI यानी पुरातत्व विभाग कोई ध्यान दे रहा है।

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पुष्कर महातीर्थ की स्थिति विकट है

कभी अजयमेरु का प्रतीक चिह्न माने जाने वाले पुष्कर महातीर्थ की स्थिति इतनी विकट है कि वह कब छिन्न-भिन्न हो जाए इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता। पुष्कर में स्थित ब्रह्मा मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है और यह धरोहर कभी भी धराशायी होने के मुहाने पर खड़ा है। सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा का ये मंदिर मरम्मत और पुनर्निर्माण की बाट जोह रहा है। मंदिर के मूल ढाँचे में कई दरार हैं और यह कई जगह से टूट-फूट गया है। दुनिया भर में कई श्रद्धालु यहां आते हैं लेकिन उनकी नजर 3 बड़े दरारों पर पड़ती है, जगह-जगह से फर्श भी धंस चुकी है। बता दें कि इस पृथ्वी पर भगवान ब्रह्मा के दुर्लभ मंदिरों में से यह एक है।

पुष्कर केवल सनातन धर्म से नहीं, बौद्ध धर्म के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण रूप है। सांची स्तूप दानलेखों में कई बौद्ध भिक्षुओं के दान का वर्णन मिलता है जो पुष्कर में निवास करते थे। इन दानलेखों का समय ई. पू. दूसरी शताब्दी है। पांडुलेन गुफा के लेख में जो ई. सन् १२५ का माना जाता है, जिसमें एक नाम उषमदवत्त का भी आता है जो विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर ३००० गायों एवं एक गांव का दान किया था। इन लेखों से पता चलता है कि ई. सन् के आरंभ से या उसके पहले से पुष्कर तीर्थस्थान के लिए विख्यात था। स्वयं पुष्कर में भी कई प्राचीन लेख मिले हैं जिनमें सबसे प्राचीन लगभग ९२५ ई. सन् का माना जाता है। यह लेख भी पुष्कर से प्राप्त हुआ था और इसका समय १०१० ई. सन् के आसपास माना जाता है।

पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को “तीर्थराज” कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को “पुष्करराज” कहा जाता है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है।

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पुष्कर सरोवर तीन हैं –

ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है। जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मन्दिर परिसर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मंदिर स्थित है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टिकर्म करने से मना किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि “तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है, अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे।” परंतु जब ब्रह्मदेव को अपनी भूल का भान हुआ तो नारदजी ने भी दुःखी पिता ब्रह्मा को शाप दिया कि “तात! आपने बिना किसी कारण के सोचे-विचारे मुझे शाप दिया है। अतः मैं भी आपको शाप देता हूं कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा।” तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा–अर्चना होती है।

परंतु इसका पुष्कर के महातीर्थ की दुर्दशा से क्या लेना देना? अवश्य है, क्योंकि मुगलों के आते ही अजमेर के एक जीर्ण-शीर्ण से दरगाह को संरक्षित किया गया जो मोइनुद्दीन चिश्ती जैसे द्रोही को समर्पित थी और वहां ‘चादर चढ़ाने की प्रथा’ भी प्रारंभ हुई।

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भंवर में फंसे हैं लोग

यहीं से एक ऐसी कुरीति प्रारंभ हुई जिसमें सभी ने अपनी रोटियां सेंकी, चाहे वो राजनेता हो या फिर अभिनेता। तुष्टीकरण की राजनीति के लिए अजमेर शरीफ का जो उपयोग हुआ और इसे बॉलीवुड ने जिस प्रकार से बढ़ावा दिया, उससे अजमेर शरीफ की ‘चादर’, पुष्कर के महातीर्थ से अधिक महत्वपूर्ण हो गयी और यही सनातन संस्कृति की पराजय भी है जो इस भ्रम के चक्रव्यूह को भेदने में असफल रही।

आज इसी के कारण स्थिति ऐसी है कि पुष्कर महातीर्थ खंड-खंड होने की स्थिति में आ चुकी है। इस संबंध में ‘दैनिक भास्कर’ से बात करते हुए मंदिर कमिटी के सचिव और SDM सुखराम भिंडर का कहना है कि ASI (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) को उन्होंने कई बार पत्र लिखा है लेकिन उसका जवाब नहीं आता। उन्होंने कहा कि ASI की अनुमति के बिना यहां कोई कार्य नहीं हो सकता। परकोटे के बाहरी हिस्से में दो बड़ी दरारें और एक दरार अंदर है। मुख्य मंदिर के गर्भ गृह का पलस्तर भी जड़ चुका है। 2 महीने पहले ASI और ‘राष्ट्रीय धरोहर प्राधिकरण’ की टीम ने यहां का दौरा किया था तब उन्हें इसकी जानकारी दी गयी थी परंतु परिणाम वही निल बट्टे सन्नाटा रहा।

मध्यप्रदेश के भानपुरा में स्थित ज्योर्तिमठ की अवांतर पीठ के जगद्‌गुरु शंकराचार्य ज्ञानानंद तीर्थ भी हाल ही में पुष्कर पहुंचे थे, जहां उन्होंने इस मंदिर की जर्जर स्थिति को देखते हुए सरकार से मरम्मत की मांग की। सैकड़ों शिष्यों के साथ यहां पहुंचे ज्ञानानंद ने कहा कि मंदिर का कोई हिस्सा ढह गया तो जनहानि हो सकती है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से भी लोग इसकी मरम्मत की मांग कर रहे हैं, परंतु परिणाम वही के वही रहे।

ऐसे में अब हम सबको एक होकर पुष्कर महातीर्थ के संरक्षण का संकल्प लेना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि तीर्थों का यह महातीर्थ प्रशासनिक बेरुखी का शिकार न हो अन्यथा यदि ऐसा हुआ तो जो धर्म को हानि होगी उसके दोषी केवल और केवल हम ही होंगे।

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