बॉलीवुड की एक मशहूर फिल्म का डायलॉग है जिसमें अमिताभ बच्चन कहते हैं- मेरे पास घर है, बंगला है, गाड़ी है तुम्हारे पास क्या है। तब शशि कपूर जवाब देते हैं- मेरे पास मां है। इस डायलॉग को हालिया अंतरराष्ट्रीय परिवेश में अरब देशों के लिए परिवर्तित किया जाए तो काफी हास्यास्पद डायलॉग निकल कर सामने आएगा। जब दुनिया के बड़े देश बोलेंगे- मेरे पास विज्ञान है, तकनीक है, कला और संस्कृति हैं। तुम्हारे पास क्या है- तब अरब देशों की तरफ से रटा-रटाया जवाब आएगा मेरे पास तेल हैं। लेकिन शायद अरब देश इस बात से अज्ञात है कि सिर्फ तेल के बलबूते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दादागीरी नहीं चलती, उसके लिए आपके पास अन्य महत्पूर्ण संसाधन, ताकतें और एक अच्छी रणनीति भी होनी चाहिए। जिसका एहसास भारत ने अपनी कूटनीति से अरब देश जैसे इराक और सऊदी अरब को भली भांति दिला दिया है।
जैसा कि हम जानते हैं कि भारत में सबसे ज्यादा तेल का आयात अरब देश इराक से होता है और उसके बाद स्थान सऊदी अरब का स्थान आता है। लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच चले भयंकर युद्ध के पश्चात दुनिया में काफी चीज़ें बदल गयी। जहां पश्चिम के देशों ने रूस में निर्मित चीज़ों को बहिष्कार करना शुरू कर दिया और यूक्रेन का समर्थन करना शुरू कर दिया। वहीं भारत ने रूस के प्रति अपना नरम रवैया अपनाया।
जिसके पीछे भारत की कूटनीति थी। भारत ने सस्ते दामों पर रूस से कच्चा तेल (Crude Oil) खरीदना शुरू कर दिया। भारतीय रिफाइनरी कंपनियों ने रूस से अधिक मात्रा में कच्चा तेल खरीदा।
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भारत ने मई में 8.19 लाख बैरल प्रति दिन (बीपीडी) कच्चा तेल खरीदा, जबकि अप्रैल में यह आंकड़ा 2.77 लाख बीपीडी और एक साल 33,000 बीपीडी रहा था। इसके साथ ही सऊदी अरब को पीछे छोड़ते हुए रूस भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्ति वाला देश बन गया। इराक पहले स्थान पर है। लेकिन अब भारत के सबसे बड़े तेल सप्लायर इराक को यह डर सता रहा है कि कहीं भारत को तेल सप्लाई करने के मामले में रूस उसे कहीं पीछे ना छोड़ दें। अगर ऐसा होता है तो इराक और सऊदी अरब दोनों के लिए निश्चित ही खतरे की घंटी है। बता दें, इसी डर से इराक ने जून में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर कुल भारतीय कच्चे तेल के आयात का 26% बढ़ा दिया था, जो मई में 24% था।
तेल विश्व की आवश्यकता है जो अरब देशों के पास प्रचुर मात्रा में है और इसी के सहारे उनका राष्ट्र चल रहा है। अन्यथा उनके पास आतंकवाद, रूढ़िवादिता, कट्टरता और प्रोपेगेंडा के अलावा कुछ भी देने को नहीं हैं। हाल ही मोहम्मद पैगंबर पर बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर अरब देशों ने बहुत तमाशा खड़ा किया था। भारत को काफी खरीखोटी सुनाई थी। लेकिन भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने वाली डील से अरब देशों को चारों खाने चित करने की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
पुरानी गलतियां दोहराना नहीं चाहता भारत
रूसी तेल की मांग में गिरावट की भरपाई के लिए चीन के बाद भारत रूस का सबसे बड़ा मददगार बनकर उभरा है। इसकी वजह से यूक्रेन युद्ध को लेकर मॉस्को को अलग-थलग करने की पश्चिमी देशों की कोशिश को तगड़ा झटका लगा है। अधिकारी ने कहा कि “ईरान पर प्रतिबंध लगने के बाद भारत ने वहां से कच्चे तेल का आयात बंद कर दिया था, जबकि चीन खरीदार बना रहा। इससे चीन आर्थिक रूप से काफी लाभ मिला। इसलिए रूस के मामले में भारत उन पुरानी गलतियों को फिर से दोहराना नहीं चाहता है।
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G-20 शिखर सम्मेलन से भारत दिखाएगा अपनी ताकत
भारत अगले साल 2023 में होने वाले G-20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करेगा। भारत ने जम्मू कश्मीर में G-20 शिखर सम्मेलन के कुछ कार्यक्रमों की मेजबानी करने का फैसला किया है। अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण से भारत के लिए ये बड़ा कदम है। भारत के इस कदम से पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ है। वह चीन, तुर्की और सऊदी अरब से जम्मू कश्मीर में होने वाली इस बैठक का बॉयकॉट करने के लिए संपर्क करेगा। G-20 देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, जर्मनी, फ्रांस, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, अमेरिका और ब्रिटेन हैं।
अरब देश तुर्की राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कई मौक़ों पर कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया है। तुर्की ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का भी विरोध किया था। भारत के विदेश मंत्रालय ने अर्दोआन की टिप्पणी पर नाराज़गी जताते हुए कहा था कि तुर्की को भारत के आंतरिक मामलों में दख़ल नहीं देना चाहिए। वहीं सऊदी अरब ने कश्मीर का विशेष दर्ज ख़त्म करने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। लेकिन ऐतिहासिक रूप से देखें तो सऊदी अरब भी कश्मीर के मामले में पाकिस्तान से सहमत रहा है। सऊदी अरब समेत खाड़ी के कई देशों में भारत के राजदूत रहे तलमीज़ अहमद कहते हैं कि ‘भारत को पूरा अधिकार है कि वह जी-20 समिट अपने किसी भी इलाक़े में कराए।’
इन अरब देशों के अचानक बदले हुए सुर और कदम साफ दर्शाते हैं कि कैसे इन देशों को समझ में आ गया कि भारत से दुश्मनी या उसके आंतरिक मामलों में दखलअंदाज़ी देना उनके लिए खट्टी खीर साबित हो सकती है। भारत जैसे बड़े और हर क्षेत्र में विकसित हो रहें देश के सामने आंख दिखने की औकात नहीं है।
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