कोहली की कृपा है – पहली बार कोई भी भारत पाकिस्तान मैच में रुचि नहीं रख रहा

ऐसा क्या हुआ जिसके चलते खेल प्रेमी क्रिकेट में पहले जैसी रुचि नहीं रखते है ?

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Source- TFIPOST.in

जिसने भारतीय क्रिकेट को सदैव के लिए बदलकर रख दिया है।  क्यों अब पहले की भांति भारत पाकिस्तान के क्रिकेट मैच में रुचि नहीं रख रहे है लोग।आपके समक्ष एशिया कप प्रारंभ हो चुका है और शीघ्र ही हमें क्रिकेट की सबसे भीषण प्रतिद्वंदिता भारत और पाकिस्तान के मैच में देखने को मिलेगी। परंतु कई मौकों के मुकाबले से इस बार के मुकाबले में न कोई उत्साह है, न कोई उमंग, उलटे लोग तो एशिया कप के ही बहिष्कार की मांग कर रहे हैं।

परंतु ये आश्चर्य कैसे संभव हुआ? जिस देश का भोजन कभी क्रिकेट के बिना उतरता तक नहीं था। उसका क्रिकेट से ऐसा मोहभंग? आज स्थिति तो ऐसी है कि लोग इसमें अधिक रुचि लेते हैं कि FIFA ने भारत पर से प्रतिबंध या नहीं, ओलंपिक में भारत कितने गोल्ड मेडल लाएगा और तो और अब नीरज चोपड़ा जैसे लोग भारतीय खेलों के प्रतीक चिन्ह बन गए हैं। जिनके सफल प्रदर्शन के लिए अब लोग मंगलकामना करते हैं। परिवर्तन शायद इसी को कहते हैं।

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पर शायद यही एक कारण तो नहीं हो सकता न। आज क्रिकेट से जो मोहभंग हुआ है, विशेषकर भारत पाक क्रिकेट मैचों से उसका कारण एक ही है – वोक संस्कृति को जबरदस्ती ठूँसना, जिसके प्रचारक एक ही हैं विराट कोहली। यदि रिकॉर्ड्स ही सब कुछ होते हैं तो उस हिसाब से तो मोहम्मद अज़हरुद्दीन पर कभी प्रश्नचिन्ह नहीं लगना चाहिए था और रिकी पोंटिंग एवं उनकी टीम को देवतुल्य मानना चाहिए था परंतु वास्तविक जीवन ऐसे थोड़े ही चलता है बंधु।

यह  विराट कोहली की वोक संस्कृति की ही कृपा है। जिसके कारण आज कोई भी भारतीय खेल प्रेमी क्रिकेट में पहले जैसी रुचि नहीं रखता और कई तो उसकी ओर मुंह तक नहीं ताकते होंगे। आप विश्व के महानतम खिलाड़ी परंतु, इतने ‘विराट’ तो कदापि नहीं कि राष्ट्र और धर्म के प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगा सकें। प्रश्नचिन्ह इस बात का कि विश्व हमारे खेल सामर्थ्य पर संदेह करने लगे हमसे यह पूछा जाने लगे कि क्या भारतीय गेंदबाजी इतनी अक्षम है? सवाल तो उठेंगे ही कि कभी “मौका मौका” गँवाने वाला भारत की क्रिकेट टीम अचानक से टी20 विश्व कप में पाकिस्तानी की एक नौसिखिया टीम के सामने कैसे पस्त पड़ गई?

वो इसलिए क्योंकि इनके पास इतना समय था कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों के साथ बतकही करें, उन्हे शाबाशी दें, वामपंथी प्रोपगैंडा को समर्थन दे, परंतु क्रिकेट खेलने जैसे मूलभूत कार्य से ही हाथ धो लें।

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ऐसे ही लोगों के लिए अपने वीरेंद्र सहवाग ने ट्वीट किया था, “दिवाली के दौरान पटाखों पर प्रतिबंध है लेकिन कल (रविवार, 24 अक्टूबर) भारत के कुछ हिस्सों में पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने के लिए पटाखे फोड़े गए थे। अच्छा वे क्रिकेट की जीत का जश्न मना रहे होंगे। तो दिवाली पर पटाखे फोड़ने में क्या हर्ज है। ऐसा पाखंड (हिपोक्रेसी) क्यों सारा ज्ञान तब ही याद आता है”।

 

अब गलत भी नहीं कहे सहवाग दद्दा क्योंकि एक समय वो भी था। जब भारत पाक के एक आम क्रिकेट मैच के लिए लोग पागलों की भांति भीड़ जुटा लेते थे। जावेद मियांदाद के नखरे हो या आमिर सोहेल और वेंकटेश प्रसाद की तू-तू मैं मैं स्टेडियम से लेकर घरों में बैठे आम नागरिक तक कौतूहल से इन दृश्यों को निहारते थे। किसी सिनेमा से भी अधिक रोमांच कहीं होता तो इन मैचों में होता और इंडिया पाकिस्तान के मैच का महत्व वीरेंद्र सहवाग से अधिक कौन समझ सकता है जिनका नाम सुनते ही पाकिस्तानी की हवा निकल जाती थी।

परंतु पहले चैंपियंस ट्रॉफी की वो शर्मनाक पराजय और फिर निरंतर वोक संस्कृति की कृपा से अब विराट कोहली ने जनता को ऐसा अस्त्र थमाया है। जो उनके साथ साथ भारतीय क्रिकेट के लिए भी समान रूप से घातक है – इग्नोर करना। आक्रोश से अधिक घातक होता है किसी व्यक्ति को ऐसे अनदेखा करना मानो उसका कोई अस्तित्व है ही नहीं और विराट कोहली की नौटंकियों की कृपा से भारतीय क्रिकेट का हाल अब कुछ ऐसा ही हो चुका है।

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