जब एक भारतीय पायलट ने अमेरिका को दिखा दी थी उसकी औकात

आज भी उस युवा पायलट की बहादुरी की कहानियां लोग सुनते-सुनाते हैं!

Wing commandar Arun Prakash

Source- TFI

कहानी की शुरुआत होती है दिसंबर 1971 से, जब भयंकर ठंड में कोहरे की ऐसी चादर बिछी थी जिसमें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन खून में जोश और जज़्बा भी कम नहीं था. यह कहानी है एक भारतीय युवा पायलट की जिसने पकिस्तान की ओर से लड़ने के लिए भेजे गए एक मशहूर अमेरिकी पायलट के विमान की धज्जियां उड़ा दी थी. यूएसएएफ पायलट चक येजर के शब्दों में ‘यह अंकल सैम को उंगली दिखाने का भारतीय तरीका था’ (It was Indian way of giving Uncle Sam the finger). पाकिस्तान की ओर से लड़ने वाला अमेरिकी पायलट था चक येजर और उस पायलट के विमान की धज्जियां उड़ाने वाले वीर भारतीय युवा नौसेना पायलट लेफ्टिनेंट अरुण प्रकाश थे, जो आगे चलकर भारतीय नौसेना के प्रमुख भी बनें.

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कौन था चक येजर?

चार्ल्स ई “चक येजर” अमेरिकी वायु सेना में कार्यरत और बहुत ही प्रसिद्ध परीक्षण पायलट थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने अपने 56 लड़ाकू अभियानों में 12 जर्मन विमानों (एक मिशन के दौरान पांच Me-109s) को मार गिराया. युद्ध के परीक्षण पायलट बनने के बाद चक येजर वायु सेना में बने रहें. येजर 14 अक्टूबर 1947 को 45,000 फीट (13,700 मीटर) की ऊंचाई पर रॉकेट-इंजन-संचालित विमान, एक्स-1 को उड़ाकर पहले ऐसे पायलट बने जिसने ध्वनि से भी तेज गति से विमान उड़ाया. अपने करियर के दौरान उन्होंने 330 विभिन्न प्रकार और विमान के मॉडल पर 10,000 घंटे से अधिक की उड़ान भरी. जब 1971 के युद्ध की शुरुआत हुई तो अमेरिका ने पकिस्तान को हरसंभव सहायता दी. उस सहायता में अमेरिका का मशहूर पायलट चक येजर भी शामिल थे. पाकिस्तान में अमेरिकी रक्षा प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने 1971 के युद्ध में पीएएफ (पाकिस्तानी एयर फाॅर्स) की सहायता की और उनका मार्गदर्शन किया था.

अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ क्यों दिया था?

1971 युद्ध का ज़िक्र चक येजर ने अपनी आत्मकथा “येजर, एन ऑटोबायोग्राफी” में भी किया है. जिसमे उन्होंने विस्तार से उल्लेख किया है कि कैसे पाक सेना भारत के नवीनतम सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों जैसे सुखोई Su-7 फाइटर-बॉम्बर और मिग-21 के मलबे को हटाती, जिन्हें मार गिराया गया था. फिर उन्हें क्रमबद्ध कर उनकी इंजन, रॉकेट पॉड्स और नए उपकरणों जैसे घटकों की पहचान करती. जब युद्ध समाप्त हो गया तो इन वस्तुओं को दो अमेरिकी वायु सेना कार्गो भारोत्तोलकों से उनके इंटेलिजेंस डिवीजन द्वारा विश्लेषण के लिए राज्यों में ले जाया गया था ताकि अमेरिका यह जान सके कि भारत ने यूएसएसआर से कैसे तकनीकी विमान लिए हैं.

यह तो सर्वविदित है कि अमेरिका बिना अपना फायदा देखे किसी की सहायता नहीं करता. इस युद्ध में अमेरिका को यूएसएसआर की तकनीकों के बारे में जानने का अवसर मिल रहा था, इसलिए उसने पाकिस्तान का साथ दिया. अपनी आत्मकथा में चक ने बताया है कि उन्होंने बंधक बनाए गए कई भारतीय वायुसेना के पायलटों से भी पूछताछ की. पूछताछ के दौरान वह भारतीय पायलटों को उनके द्वारा उड़ाए गए विमान और सोवियत संघ से सीखी गई रणनीति के बारे में दबाव डालता था.

विंग कमांडर धीरेंद्र एस. जाफा (सेवानिवृत्त) ने अपनी पुस्तक “डेथ वाज़ नॉट पेनफुल: स्टोरीज़ ऑफ़ इंडियन फाइटर पायलट्स फ्रॉम द 1971 वॉर” में बताया था कि कैसे एक पीओडब्ल्यू (युद्ध के बंदी) के रूप में उनसे तकनीकी पहलुओं पर विस्तार से पूछताछ की गई थी. उनसे प्रश्न किये गए थे कि ऐसी कौन सी तकनीक भारतीय पायलटों को सिखाई गयी है जिसके कारण वे रात में भी लक्ष्यों को सटीक रूप से इंगित कर लेते हैं. ध्यान देने वाली बात है कि 3 दिसंबर 1971 की शाम को रेडियो से घोषणा की गई कि शाम 5.40 बजे, PAF ने भारत की पश्चिमी सीमा पर 9 भारतीय हवाई अड्डों पर एक समन्वित हमला किया था. उस रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्र को बताया था कि भारत और पाकिस्तान में युद्ध छिड़ चुका है.

भारत का गरुड़

लेफ्टिनेंट अरुण प्रकाश, एक नवनिर्मित नौसेना एविएटर नंबर 20 स्क्वाड्रन “द लाइटनिंग्स” के साथ भारतीय वायुसेना में प्रतिनियुक्ति पर थे. युद्ध का बिगुल बजते ही उन्हें और उनके साथियों को बेस पर बुलाया गया. अपने विंगमैन के साथ वे बेस पर पहुंच गये और अब वे टेक ऑफ के लिए तैयार थे. सुबह का समय था लेकिन दिसंबर की कड़कड़ाती ठण्ड में कोहरे की चादर ने सूर्य के प्रकाश को भी ढक लिया था. लेकिन अब समय था पाकिस्तान पर जवाबी हमले का. मिशन था इस्लामाबाद से कुछ मील दक्षिण पूर्व में स्थित पीएएफ बेस, जिसपर हमला करना था.

कोहरे में भले ही कुछ और न दिख रहा हो लेकिन लम्बी इमारतों को देख पाना आसान था. पाकिस्तान के एयर ट्रैफिक कंट्रोल की इमारत पर लेफ्टिनेंट अरुण ने निशाना साधा लेकिन वह वाटर टावर निकला! लेकिन अनजाने में ही सही उन्होंने पाकिस्तानी वायु सैनिकों को एक दिन प्यासा रखने का इंतज़ाम कर दिया था. उन्होंने एयरफील्ड को स्कैन करना शुरू किया ताकि वो पाकिस्तानी विमानों पर हमला कर सकें लेकिन वहां एक भी पाकिस्तानी विमान नहीं था.

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लेकिन फिर एक बड़े आम के बाग में उन्हें एक लंबे विमान के पंख की आकृति नज़र आयी. वह विमान था अमेरिका का हरक्यूलस सी-130. उन्होंने हरक्यूलस के चारों ओर अपना लड़ाकू विमान उड़ाया और उस पर 30 मिमी के गोले दागने शुरू कर दिए. कुछ ही दूरी पर उन्हें छोटे परिवहन विमानों की एक पंक्ति दिखाई दी और अपने विमान को उनकी ओर मोड़ते हुए उन्होंने धुंआधार फायरिंग शुरू कर दी ताकि दुशमन को जितना हो सके उतना नुक्सान पहुंचाया जा सके. जल्द ही पाकिस्तानी सेना हरकत में आ गयी और उन्होंने एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलें दागना शुरू किया लेकिन अरुण और उनके साथी विंगमैन तीव्र एंटी-एयरक्राफ्ट फायर के बीच से बचते हुए चकलाला से विदा हुए और सुरक्षित अपने बेस पर पहुंच गए. बेस पर पहुंचकर उन्होंने हरक्यूलस विमान और दुश्मन की तैयारियों के बारे में अन्य ज़रूरी जानकारी दी.

अरुण प्रकाश ने कर दिया था काम तमाम

उस समय पाकिस्तान में तैनात एक अमेरिकी राजनयिक एडवर्ड सी. इंग्राहम द्वारा लिखित “द राइट स्टफ इन द रॉन्ग प्लेस” शीर्षक वाला लेख बताता है कि चक येजर को हमेशा इस बात का गिला और गुस्सा रहा कि उन्हें युद्ध में उस पक्ष से लड़ाई लड़नी पड़ी जो हारने वाला था. अपने हमले की पूर्व संध्या पर पाकिस्तानियों ने अपने विमानों को भारतीय सीमा के पास के हवाई क्षेत्रों से निकाल कर उन्हें वापस पकिस्तान ले जाने की समझदारी की थी क्योंकि वे जानते थे कि भारत हमला करेगा. लेकिन वे चक येजर को यह चेतावनी देना भूल गए. इस प्रकार जब भारत ने अपनी ओर से पहली जवाबी कार्रवाई की तो भारतीय पायलट अरुण प्रकाश को केवल दो विमान दिखे थे, जिनमें से एक  येजर का बीचक्राफ्ट था और दूसरा था हरक्यूलस. जिसका इस्तेमाल संयुक्त राष्ट्र की सेना द्वारा कश्मीर में युद्धविराम की निगरानी करने वाले गश्ती दल को आपूर्ति करने के लिए किया जाता था और अरुण प्रकाश ने उन दोनों विमानों को 20 मिलीमीटर की कैनन फायर से मार गिराया.

भले ही लेफ्टिनेंट अरुण प्रकाश ने अनजाने में अमेरिकी पायलट के विमान को क्षतिग्रस्त किया था लेकिन चक येजर ने कभी इस बात पर विश्वास नहीं किया. वो भारत और पकिस्तान की इस लड़ाई को कुछ अधिक ही व्यक्तिगत रूप से लेने लग गए. उनका मानना था कि भारतीय पायलट अच्छे से जानते थे कि जिस विमान पर उन्होंने हमला किया वह एक मशहूर अमेरिकी पायलट का है. साथ ही उनका यह कहना भी था कि इंदिरा गांधी ने पायलट को येजर के विमान को विस्फोट करने का निर्देश दिया था. उन्होंने पकिस्तान को भी उसकी कायरता के लिए फटकारा और जमकर हंगामा किया. खैर, भारत युद्ध में विजयी हुआ और हवाई कार्रवाई में लेफ्टिनेंट अरुण प्रकाश को उनकी वीरता के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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