कभी कभी लाख प्रयत्न करने पर भी कोई वस्तु नहीं मिल पाती और कभी कभी कोई वस्तु ऐसी होती है, जिसे हम देखना भी पसंद न करें परंतु वही हमें शिखर तक पहुंचाने में मददगार साबित हो जाती है। कभी देश की धड़कन और लाखों लोगों की जान कहे जाने वाले ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’ सौरव गांगुली को एक ऐसा समय भी देखना पड़ा, जब न उन्हें भारतीय क्रिकेट में भाव दिया गया और न स्पॉन्सर्स उन्हें भाव देते थे! परंतु फिर एक दिन चमत्कार हुआ। इस लेख में हम उस चमत्कार से ही अवगत होंगे, जो प्रारंभ तो एक धमकी से हुआ परंतु उसने न केवल सौरव चंडीदास गांगुली के निर्जीव करियर में प्राण डाले अपितु उन्हें उसी शैली में रिटायर होने की स्वतंत्रता दी, जैसा वो चाहते थे।
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समझिए पूरी कहानी
दरअसल, इस कथा की उत्पत्ति वर्ष 2005 में हुई। भारतीय क्रिकेट एक महत्वपूर्ण बदलाव से गुज़र रहा था। जॉन राइट कोच के रुप में संन्यास ले चुके थे और भारतीय क्रिकेट टीम अब संसार में एक शक्तिशाली टीम नहीं तो कम से कम ‘घर का शेर’ तो बिल्कुल नहीं रही थी, जो बाहर जाते ही ढेर हो जाती। इसी बीच भारतीय कोच के रुप में आगमन हुआ ग्रेग चैपल का, जो अपने ज़माने के सबसे प्रभावशाली प्लेयर्स में से एक थे और जिनकी टक्कर के खिलाड़ियों में भारत के कपिल देव भी थे।
तब सौरव गांगुली ने सोचा कि जब जॉन राइट भारत के लिए चमत्कारी सिद्ध हो सकते हैं तो ग्रेग चैपल क्यों नहीं? पर वो भूल गए कि कुछ लोग आज भी एक साम्राज्यवादी, दंभी मानसिकता के साथ ही जीते हैं और ग्रेग चैपल उन्हीं में से एक थे। वो भारतीयों को सदैव हीन दृष्टि से देखते थे और वो धीरे-धीरे टीम इंडिया में फूट डालने लगे। जब तक गांगुली को उनके तरीके समझ में आए, तब तक चैपल ने उन्हीं के विरुद्ध ऐसा वातावरण तैयार कर दिया था कि वर्ष 2005 में जिम्बॉब्वे में प्रस्तावित त्रिकोणीय सीरीज़ से पूर्व ही गांगुली को टीम से बाहर कर दिया गया।
सौरव गांगुली के आंखों के समक्ष उनका संसार उजड़ने लगा। टीम इंडिया ने तो उनसे मुंह मोड़ ही लिया था और अब धीरे-धीरे स्पॉन्सर भी उन्हें आंख दिखाने लगे थे। कल तक जो उनके अपने थे, वो भी उनसे मिलने से पूर्व सोचते थे। दादा के समर्थकों की कोई कमी नहीं थी और प्रारंभ में उन्होंने उनके हटाए जाने पर तांडव मचा दिया था परंतु धीरे-धीरे सब ठंडा पड़ गया। वो कहते हैं न, सबै दिन न होत एक समान। देखते ही देखते एक ही वर्ष में सारा खेल पलट गया और ग्रेग चैपल सबकी आंखों के नासूर बन गए और गेहूं के साथ घुन की भांति राहुल द्रविड़ को भी पिसना पड़ा क्योंकि तब वो उत्कृष्ट खिलाड़ी अवश्य थे परंतु उतने बेहतरीन कप्तान नहीं थे।
इसी बीच सौरव को आया पेप्सी के सीईओ का कॉल आया और ये कॉल यूं ही नहीं आया था। उस समय पेप्सी के सर पर मानो बंदी की तलवार लटकी हुई थी। पेप्सी ने भारतीय मार्केट पर लगभग कब्जा कर लिया था। बॉलीवुड सितारों के पश्चात ये दिल मांगे मोर, ओए बबली ओए-ओए बबली जैसे एड को लोग कैसे भूल सकते हैं। पेप्सी जिस वक्त उफान पर थी तब उसका चेहरा सौरव गांगुली ही हुआ करते थे। इस ऐड के जरिए गांगुली की आवाज लोगों के घर-घर तक पहुंच गई। परंतु उसी समय आरोप लगे कि पेप्सी में कीटनाशक/शुगर की मात्रा आवश्यकता से कहीं ज्यादा अधिक है, जिसके कारण FCI और एक्टिविस्ट मंडली हाथ धोकर उसके पीछे पड़ गई और कुछ राज्यों में इसे प्रतिबंधित करने की मांग तक की गई।
पेप्सी का ऐड और गांगुली का करियर
इसी बीच सौरव गांगुली को पेप्सी के सीईओ का फोन आया और उनसे पेप्सी का ऐड करने के लिए कहा गया। ये अपने आप में काफी बड़ा रिस्क था क्योंकि दादा टीम से बाहर थे और उनसे ऐड करवाना यानी घाटे का सौदा करना था। ध्यान देने वाली बात है कि सौरव गांगुली प्रारंभ में इस विज्ञापन से कोसों दूर रहना चाहते थे परंतु वो भी किसी कारणवश इस ऐड को मना नहीं कर पाए और इसे करने के लिए राजी हो गए। कहा जाता है कि वो कारण एक कानूनी अनुबंध था, जिसके अनुसार यदि गांगुली ने बीच में इस अनुबंध को तोड़ा होता तो उनपर कार्रवाई की जा सकती थी। जिसके कारण उन्होंने पेप्सी के इस ऐड को शूट किया।
उस ऐड की पहली पंक्ति है, ‘मेरा नाम सौरव गांगुली है भूले तो नहीं।’ जब पेप्सी की इस टैग लाइन को पहली बार हर किसी ने सुना तो वह दंग रह गया। क्योंकि जो खिलाड़ी टीम इंडिया के लिए जीत के झंडे गाड़ रहा हो, जो आक्रामकता की प्रतिमूर्ति हो, वो अचानक ऐसी बाते करे तो अजीब लगना ही था। पेप्सी की इस टैग लाइन के पीछे ग्रेग चैपल (Greg Chappell) और सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) की लड़ाई का दर्द छिपा था क्योंकि ग्रेग चैपल को भारत में लाने का श्रेय गांगुली को ही दिया जाता है लेकिन गांगुली को क्या पता था कि एक दिन चैपल ही उनकी पीठ पर वार करेंगे।
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पर किसको पता था कि यह विज्ञापन पेप्सी और सौरव गांगुली के जीवन का सबसे क्रांतिकारी निर्णय होगा। एक तो वर्ष 2006 के आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में मिली करारी हार, उसके ऊपर से दक्षिण अफ्रीका में हुई क्लीन स्वीप ने दर्शकों का पारा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया और सभी ने एक सुर में ‘दादा’ को टीम में शामिल करने की मांग कर डाली। उसके बाद फिर क्या था, गांगुली को साउथ अफ्रीका दौरे के लिए टीम में शामिल किया गया। जहां दादा ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए खुद को साबित किया और यह उनके करियर का जबरदस्त कमबैक साबित रहा।
परंतु दादा उतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने श्रीलंका और वेस्टइंडीज के विरुद्ध वनडे सीरीज़ में भी जीत दिलाई और वर्ष 2007 में उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध अपना प्रथम दोहरा शतक भी मारा। उस वर्ष वो जैक्स कैलिस के पश्चात सबसे अधिक रन बनाने वाले दूसरे टेस्ट क्रिकेटर बनें और वर्ष 2008 में शान से रिटायर हुए। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि एक विज्ञापन आपको बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है परंतु जो काम पेप्सी के इस विज्ञापन ने दादा के लिए जाने अनजाने में किया, उसके लिए जितना लिखा जाए, वो कम है!
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