अक्षय कुमार की ‘रक्षाबंधन’ को बॉयकॉट करने की कोई तुक नहीं है

अक्षय कुमार ने 2014 के बाद स्वयं को बदला है!

Akshay Kumar

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गेंहू के साथ घुन भी पिस जाता है, अभिनेता अक्षय कुमार की रक्षा बंधन मूवी की हालत भी कुछ ऐसी ही हो गई है जो वास्तव में नहीं होनी चाहिए थी। फिल्म रक्षाबंधन 11 अगस्त को रिलीज़ हो गई साथ ही रिलीज़ हुई लाल सिंह चड्ढा, जहां पहले दिन रक्षा बंधन को सकारात्मक रुझान मिले तो वही लाल सिंह चड्ढा का हाल वैसा ही दिखा जिसका अनुमान था, अर्थात् “फ्लॉप”। ऐसे में कमाई में उन्नीस-बीस के अंतर से लाल सिंह चड्ढा ने बॉक्स ऑफिस पर कुल 11.50 करोड़ की कमाई की तो वही रक्षा बंधन का पहले दिन बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 8.20 करोड़ रहा। ऐसे में अक्षय कुमार की फिल्म ‘रक्षा बंधन’ का बहिष्कार करने का कोई मतलब नहीं बनता यह समझना आवश्यक है।

यूं तो यह दोनों फिल्में रिलीज़ से पूर्व ही बहिष्कार की लताड़ झेल रही थीं। ऐसे में भारतीय सेना पर तंज कसने और फब्तियां कसने के कारण लाल सिंह चड्ढा को बॉयकॉट करने का ट्रेंड चल रहा था तो वही रक्षा बंधन फिल्म की लेखिका कनिका ढिल्लों के “कागज़ नहीं दिखायेंगे” समूह का समर्थन करने के चक्कर में पूरी रक्षा बंधन फिल्म को बॉयकॉट करने की मुहिम छिड़ गई थी। ऐसे में पहले दिन के माहौल को भांपते हुए यह कहा जा सकता है कि या तो यह दोनों फिल्में फ्लॉप होंगी क्योंकि जैसा वातावरण बन गया है वो इस बात की तस्दीक करता है कि देश विरोधी बातों का समर्थन करने वालों या देश के आम जनमानस की भावनाओं को आहत करने वाले सभी तत्वों को जनता एक तराज़ू में तोलकर उन तत्वों का निपटारा कर सकती है।

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दूसरा पहलु यह हो सकता है कि यह दोनों फिल्में हिट होने के साथ ही “बॉयकॉट बॉलीवुड” को मिथ्या साबित कर देंगी, जिससे यह साबित होगा कि फिल्मों की आड़ में कुछ भी प्रदर्शित करते रहो, यह बॉयकॉट का तो शिगूफा ट्विटर तक ही सीमित रहता है। ऐसे में यदि फिल्म हिट होती भी हैं तो उन तत्वों को बढावा मिल जाएगा जो जनहित नहीं जनविरोधी विषयों में संलिप्त रहते हैं।

तीसरा पहलु यह हो सकता है कि मात्र लाल सिंह चड्ढा बुरी तरह पिट जाए जोकि बेहद आवश्यक इसलिए भी है क्योंकि वर्ष 2014 के बाद से ही आमिर खान असहिष्णु वाली नौटंकी करते पाए गए हैं तो वही गैर-भारतीय होने के बावजूद अक्षय कुमार को भारतीयता और राष्ट्रवाद का ध्वजवाहक बनते देखा गया। फिर चाहे वो फिल्मों के माध्यम से हो या दान करने के माध्यम से, अक्षय कुमार ने नेक कार्य कर देश की जनता का दिल जीता है। ध्यान देने वाली बात है कि जब भारत के संबंध तुर्की से ठीक नहीं चल रहे थे, तब आमिर खान को तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के परिवार के साथ मिलते-जुलते पाया गया, जबकि अक्षय कुमार भारतीय रक्षा और उसके प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए भारतीय सेना राहत कोष शुरू करने में संकल्पित थे जिसका परिणाम यह था कि सेना के लिए आदरभाव बढता चला गया और उस राहत कोष ने देशभर में क्रांति लाई।

वर्ष 2014 के बाद से अक्षय कुमार ने अपने करियर को नया स्वरूप दिया है। उन्होंने खुद को फिर से खोजा है और भारतीयों के बीच एक गौरव प्रवर्तक के रूप में काम किया है। वर्ष 2014 के बाद अक्षय कुमार ने बेबी, एयरलिफ्ट, केसरी, मिशन मंगल जैसी फिल्में दी हैं। ये सभी फिल्में राष्ट्रवाद पर केंद्रित थीं। खास बात यह है कि इन सभी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया है। अक्षय कुमार ने सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण फिल्मों जैसे टॉयलेट: एक प्रेम कथा, पैड मैन और गुड न्यूज के साथ राष्ट्र-प्रेमी भारतीयों के दिलों में अलग जगह और स्थान बना लिया। ऐसे में रक्षा बंधन मूवी मात्र इसलिए पिट जाने दी जाए क्योंकि उसकी लेखिका कनिका ढिल्लों का झुकाव “कागज़ नहीं दिखयेंगे गैंग” के प्रति रहा है तो यह अक्षय कुमार द्वारा अबतक की गई अच्छी पहलों को नज़रअंदाज करना होगा जिसने देश को सार्थक विचार प्रदान किया।

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