आत्मनिर्भरता पर बल देकर भारत अपनी अर्थव्यवस्था को कर रहा है ‘डि-ग्लोबलाइज़’

75000 स्टार्ट-अप्स के साथ भारत ने कैसे अपनी अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी?

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Source- TFIPOST.in

कोरोना महामारी के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया की मुश्किलें बढ़ाकर रख दी। वर्तमान में विश्व पर एक बड़ा संकट आर्थिक मंदी के रूप में आ रहा है। तमाम विशेषज्ञों द्वारा चेताया जा रहा है कि वैश्विक मंदी तो आकर ही दम लेगी। वे देश, जो स्वयं को सबसे बड़ा, महान और विकसित मानते हैं, वो भी आर्थिक मंदी के साए से डर गए है। परंतु बात जब भारत की आती है, तो तमाम देशों की तुलना में भारत इस स्थिति में स्वयं को काफी मजबूत पाता है। भारत पर मंदी का असर ना के बराबर पड़ने की संभावना है।

ब्लूमबर्ग ने भी बीते दिनों अपने एक सर्वे के माध्यम से बताया था कि अगले एक वर्ष में तमाम देश मंदी की चपेट में आएंगे, तो वहीं भारत पर इसका शून्य प्रभाव पड़ने की संभावना है। देखा जाए तो इस वक्त यह भारत सरकार की सफल रणनीतियों का ही परिणाम है कि देश की अर्थव्यवस्था आज मजबूत स्थिति में बनी हुई है। ऐसा नहीं है कि पहली बार दुनिया पर आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है। आज से 14 वर्ष पूर्व यानी साल 2008 में भी दुनिया आर्थिक मंदी के लपेटे में आई थी। तब पश्चिमी देश इससे प्रभावित हुए और भारत पर भी संकट था।

2008 में आई आर्थिक मंदी एक सबक सिखाकर गई। वे यह था कि भविष्य में दुनिया वि-वैश्वीकरण की दिशा में आगे बढ़ेगी और इसके लिए भारत को भी तैयार रहने की जरूरत है। इसका एकमात्र तोड़ आत्मनिर्भरता ही नजर आया। आज देखा जाए तो भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनता चला जा रहा है। एक समय ऐसा था, जब हम अपनी आवश्यकता की हर छोटी बड़ी चीज के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहते थे। वर्तमान में परिस्थितियां बदल रही है। मोदी सरकार द्वारा शुरू हुए विभिन्न अभियानों के जरिए भारत में आत्मनिर्भरता जोर पकड़ रही है।

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आज भारत स्टार्टअप की फैक्ट्री बनकर उभरा है

बीते दिनों ही केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने जानकारी दी थी कि “भारत अब 75,000 स्टार्टअप वाले देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है। उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) ने 75 हजार से अधिक स्टार्टअप्स को मान्यता प्रदान की। भारत ने यह मील का पत्थर ऐसे समय में हासिल किया, जब भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे करने जा रहा है और यह एक बेहद ही बड़ी और शानदार उपलब्धि है।” पीयूष गोयल ने ट्वीट कर कहा, “ये अंक परिकल्पना शक्ति को साबित करती है। ऐसी परिकल्पना, जो नवाचार और उद्यमिता आधारित विकास की भावना से प्रेरित हो। स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में भारत अब 75,000 स्टार्टअप का घर है और यह केवल शुरुआत है।“

यहां ध्यान देने योग्य एक दिलचस्प बात है कि जहां शुरुआत के 10 हजार स्टार्टअप्स को मान्यता देने में 808 दिनों का समय लग गया था, वहीं अब नवीनतम 10 हजार स्टार्टअप्स केवल 156 दिनों में ही शुरू हुए। मंत्रालय के द्वारा बताया गया कि 49 प्रतिशत स्टार्टअप टायर-2 और टायर-3 शहरों में स्थित है, जो हमारे देश के युवाओं की जबरदस्त क्षमता का परिचायक है। इन स्टार्टअप में से 12 फीसदी IT क्षेत्रों में, 9 प्रतिशत स्वास्थ्य देखभाल और जीवन विज्ञान के क्षेत्रों में, 7 प्रतिशत शिक्षा क्षेत्र, 5 प्रतिशत पेशेवर और व्यवसायिक सेवा क्षेत्रों से लेकर कृषि क्षेत्रों में शुरू किया गया।

इन भारतीय स्टार्टअप्स के जरिए देश में 7.46 लाख रोजगार उत्पन्न किए गए और इसमें गत 6 वर्षों में सालाना 110 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारतीय युवा स्टार्टअप के माध्यम से रोजगार सृजन कर रहे हैं। इसके साथ ही भारतीयों का भरोसा भारतीय बाजार पर भी बढ़ता हुआ नजर आ रहा है। Primeinfobase.com द्वारा हाल ही में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार एनएसई सूचीबद्ध कंपनियों में घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) की हिस्सेदारी इस साल जून में अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। DII ने जून तिमाही में घरेलू निवेशकों ने बाजार में करीब 1.28 लाख करोड़ रुपये निवेश किया। 

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पीएलआई स्कीम से घरेलू अर्थव्यवस्था को काफी फायदा होगा

इसके अतिरिक्त भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा रहे है, जिसमें पीएलआई यानी उत्पाद से जुड़ी प्रोत्साहन योजना भी शामिल है। पीएलआई योजना के जरिए देश में आत्मनिर्भरता और इसी योजना के माध्यम से विभिन्न सेक्टरों को जोड़ा जा रहा है। मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और वर्क फोर्स को रोजगार से जोड़ने के लिए अलग-अलग सेक्टर में पीएलआई स्कीम की शुरुआत की गई।

अप्रैल 2022 तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 14 सेक्टरों में इस योजना के तहत 2.34 लाख करोड़ रुपये का निवेश आया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक इस योजना के माध्यम से अगले पांच वर्षों में 60 लाख नए रोजगार के सृजन की संभावनाएं हैं और 30 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त उत्पादन होगा। अधिक उत्पादन होगा तो इसकी खपत भी भारतीय ही करेंगे। साथ ही इससे आयात में कमी आएगी और निर्यात बढ़ने के आसार है। मोदी सरकार द्वारा लगातार एफडीआई नीति में सुधार, निवेश के लिए बेहतर अवसर, आर्थिक प्रबंधन जैसे कदम उठाने का परिणाम है कि विदेशी निवेशकों का विश्वास भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।

कोरोना के दौरान हमें देखने मिला कि कैसे विदेश निवेशकों के द्वारा दूसरे देशों में निवेश करने से बचा जा रहा था, जबकि वो भारत में जमकर निवेश कर रहे थे। पिछले सात सालों के आंकड़े पर अगर गौर करेंगे, तो मालूम चलेगा कि देश में रिकॉर्ड विदेशी निवेश आया। अगस्त के पहले हफ्ते में 14,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है। इन सब कदमों के जरिए ही भारत स्वयं को आर्थिक मंदी के प्रभाव से बचाने में कामयाब हो पा रहा है। ऐसे समय में जब विश्व मंदी के साए से सहमा हुआ है, तब भी विश्व में सबसे तेजी से भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, जो भारत की मजबूत स्थिति को दर्शाता है।

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