नीतीश कुमार के 5 जवान टीम भाजपा में शामिल

नीतीश कुमार से अपनी पार्टी तो संभलती नहीं और चले हैं देश संभालने

nitish kumar

सुशासन बाबू के स्वप्न जग जाहिर हैं, वही स्वप्न, देश का प्रधानमंत्री बनने वाला। हालांकि प्रधानमंत्री बनकर उन्हें देश संभालना है लेकिन खुद के विधायक तक तो उनसे संभलते नहीं हैं। जी हां, जिस भाजपा का साथ छोड़ नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ गंठबंधन किया, स्वयं उनकी ही पार्टी के विधायक उसी भाजपा में शामिल हो गये। बिन पेंदे का लोटा वाला हिसाब है नीतीश बाबू का और उनके साथ वाले भी उनसे इसने प्रभावित हैं कि आज उनका साथ छोड़-छोड़कर अपनी-अपनी राह पकड़ रहे हैं।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे नीतीश कुमार के 5 जवान टीम भाजपा में शामिल होकर नीतीश बाबू का सारा खेल बिगाड़ गये हैं।

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मणिपुर में नीतीश कुमार के साथ खेला हो गया

बात है मणिपुर की जहां नीतीश की पार्टी जेडीयू के कुल 6 विधायक में से 5 विधायकों ने नीतीश कुमार को उनकी औकात दिखते हुए भाजपा का दामन थाम लिया। जारी बयान में मणिपुर विधानसभा के सचिव के मेघजीत सिंह ने कहा है कि जेडीयू के पांच विधायकों के बीजेपी में विलय को स्वीकार कर लिया गया है। संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत इसे स्वीकार किया गया है। ऐसा होना जेडीयू के लिए मणिपुर में बड़ा झटका इसलिए भी है क्योंकि इस साल हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 38 में से 6 सीटें जीती थीं. लेकिन अब उन 6 विधायकों में से सिर्फ एक ही विधायक जेडीयू के पास रह गये हैं और बाकी बचे पांच बीजेपी का दामन थाम गये हैं।

इन 5 विधायकों के भाजपा में आने से मणिपुर राज्य में भाजपा की स्थिति और मजबूत तो हुई ही है साथ ही इस घटना ने आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को और मज़बूत कर दिया है। नीतीश कुमार आगामी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए जहां विपक्ष को एकजुट करने में लगे हुए हैं तो वहीं स्वयं उनको अपने ही घर में मात खानी पड़ रही है। मणिपुर का यह प्रकरण नीतीश कुमार को तो खलेगा बहुत, लेकिन कहते हैं न कि समय की मार जब पड़ती है तो अच्छे अच्छों की अकल ठिकाने आ जाती है। स्वयं की प्रधानमंत्री बनने की लालसा के चलते उन्होंने बिहार में अचानक ही भाजपा का साथ छोड़ आरजेडी को अपना हमजोली बनाया, तो यह बात उनके मणिपुर के विधायकों को अच्छे से समझ में आ गयी कि नीतीश कुमार बिन पेंदे के वो लोटा हैं जो जिधर लाभ देखता है उधर लुढ़क जाता है, इसलिए उन्होंने नीतीश कुमार को छोड़ना ही सही समझा।

नीतीश कुमार का जादू ख़त्म हो गया है इसकी पुष्टि बिहार का पिछला विधानसभा चुनाव अच्छ करता है। लेकिन नीतीश कुमार के रवैये को देखकर लगता है कि वो नींद से जागना ही नहीं चाहते है तभी तो वास्तविकता से दूर वो स्वप्न पीएम बनने के देख रहे हैं। इसके लिए वो जितने दांवपेंच हो सकते हैं सब अपना रहे हैं, आरजेडी का दामन तो थामा ही, कुछ दिन पहले ही KCR  के साथ मंच भी सांझा किया।

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प्रधानमंत्री बनने की धुरी खिसकती जा रही है

तमाम प्रयासों के बाद भी उनके प्रधानमंत्री बनने की धुरी खिसकती जा रही है। अब समय है आत्मपरीक्षण का, नीतीश कुमार को चाहिए की अब वो एक फुल टाइम नेता वाले काम छोड़कर अपनी पार्टी के मार्गदर्शक बन जाएं और किसी अन्य को मौक़ा दें क्योंकि अगर देखा जाए तो उनकी असफलता की सूची लम्बी हो गयी है  चाहे वह बिहार में भ्रष्टाचार की बात हो, परीक्षा पेपर लीक का मामला हो, विद्यार्थियों पर लाठी चार्ज करने की बात हो या बिहार कि विकास की बात हो। कुल मिलाकर बिहार त्रस्त हो चुका है, इतनी असफलताओं के बाद सुशासन बाबू को प्रधानमंत्री बनने की घोर ललक है।

वो पूरी तरह से बेशर्मी पर उतर आए हैं, न तो कोई विचारधारा रह गयी है और न ही नैतिकता, कभी इस पार्टी के साथ तो कभी उस पार्टी के साथ, बस रह गया है तो सर पर भूत ”प्रधानमंत्री बनेने”का। चलिए मान भी लीजिए अगर वो विपक्ष को एक जुट कर लेने में सफल भी हो जाएं तब भी राह इतनी आसान नहीं होगी क्योंकि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की अपनी महत्वकांक्षा है, वहीं KCR और केजरीवाल भी अपने को कम नहीं समझते। ऐसे में अब समय आ गया है कि सुशासन बाबू मूंगेरिलाल के हसीन सपने से बाहर आएं और अपनी मट्टी पलीत कराए बिना ही राजनीति से विदा ले लें, ऐसे करना उनके लिए और पूरे देश के लिए सबसे सही रास्ता होगा।

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