बृहदेश्वर मंदिर मानव इतिहास की उत्कृष्ट कलाओं में से एक क्यों है?

अभिनेता विक्रम ने जो अपने वीडियो में नहीं बताया वो जान लीजिए।

बृहदेश्वर मंदिर

Source- TFI

देश के इतिहास को कितना तोड़ा-मरोड़ा गया है यह किसी से छिपा नहीं है। देश की संस्कृति और धरोहर को दबाने और मुगलों के महिमामंडन से लेकर अन्य तमाम चीजों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है लेकिन जैसे जैसे समय बदल रहा है, स्थिति में भी परिवर्तन देखने को मिल रही है। यानी कहा जा सकता है कि देश का वास्तविक इतिहास धरती चीरकर अब बाहर निकल रहा है। देश के धरोधर अपनी खोई हुई विरासत को पुन: प्राप्त कर रहे हैं। इसी कड़ी में अब हिंदुओं के सुप्रसिद्ध बृहदेश्वर मंदिर पर भी चर्चा हो रही है, जिसके आगे कई ताजमहल भी फेल हैं। टीएफआई प्रीमियम में आपका स्वागत है। इसी बीच चर्चित अभिनेता चियान विक्रम ने न केवल बृहदेश्वर मंदिर की भव्य मंदिर की महिमा पर चर्चा की है अपितु हमारे एक भव्य साम्राज्य के माध्यम से भारतीय वास्तुकला की भव्यता को उसका वास्तविक स्थान भी दिया है।

दरअसल, हाल ही में प्रदर्शित तमिल फिल्म ‘पोन्नियन सेल्वन’ के एक प्रोमोशनल कार्यक्रम में जनता को संबोधित करने उसके प्रमुख स्टारकास्ट आए थे। उसी कार्यक्रम की वायरल हो रही वीडियो में चियान विक्रम तंजावुर के विश्वप्रसिद्ध भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर के बारे में बात करते दिख रहे हैं। उन्होंने कहा, “किसी ने बड़ा सही कहा है कि हां उधर तो इमारत हैं, उधर तो ऐसे भवन हैं जो सीधे खड़े भी नहीं हैं पर हमारे भवन तो विद्यमान हैं और वे 6 भूकंप झेल चुके हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि जिस पद्धति से इन्हें बनाया गया है, उस समय तब न कोई प्लास्टर था, न सहायता के लिए कोई क्रेन अथवा बुलडोज़र। असल में उसकी एक बाहरी दीवार थी, फिर एक कॉरीडोर था और फिर एक ढांचा था, जो काफी ऊंचा था, जिसके कारण वह इतनी आपदाएं झेलने में सक्षम था।” उन्होंने चोल सम्राट अरुलमोई वर्मन का वर्णन करते हुए बताया कि उन्होंने 5000 बांध अपने समय में बनाए एवं अपने समय में जल प्रबंधन मंत्रालय भी बनाया।

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ये बात विक्रम ‘पोन्नियन सेल्वन’ के प्रोमोशन के समय कर रहे थे, जो कल्कि कृष्णमूर्ति की बहुचर्चित पुस्तक पर आधारित है। परंतु वो इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने आगे ये भी कहा, “यह सब 9 वीं शताब्दी में हो रहा था, जब उस समय हमारे नौसेना का प्रभुत्व समूचे जगत में व्याप्त था और अमेरिका का अस्तित्व भी नहीं था। इंग्लैंड को बड़ा मानते हैं पर उसपर तो वाईकिंग्स ने चढ़ाई कर रखी थी और यूरोप तो इस समय डार्क एज में था, तो आपको नहीं लगता हमें अपने इतिहास का उत्सव मनाना चाहिए?” –

भगवान शिव को समर्पित है यह मंदिर

अरे विक्रम अन्ना इतना भी सच नहीं बोलना था, अभी लिबरल गैंग कैंसिल बटन लेकर आपको अपने क्रश लिस्ट से हटाने निकल ही रही होगी। परंतु इन्होंने कुछ भी असत्य नहीं बोला है। बृहदेश्वर मंदिर की कला को ही आप देख लीजिए तो ताज महल आपको कबाड़ समान प्रतीत होगा। बृहदेश्वर मन्दिर या राजराजेश्वरम् तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है, जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे पेरुवुटैयार कोविल भी कहते हैं। यह मंदिर पूरी तरह से ग्रेनाइट नि‍र्मि‍त है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता, वास्‍तुशिल्‍प और केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया है।

इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक अरुलमोई वर्मन ने करवाया था, जिन्हें लोग राजराजा चोल प्रथम के नाम से बेहतर जानते हैं। उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया गया है। यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। इस तेरह (13) मंजिले मंदिर की (सभी हिंदू अधिस्थापनाओं में मंजिलो की संख्या विषम होती है) ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है।

यह कला की प्रत्येक शाखा – वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्यसंगीत, आभूषण एवं उत्कीर्ण कला का भंडार है। यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। जिस पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानत: उसका भार 2200 मन (80 टन) है और यह एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका बृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम्‌ के भीतर एक चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है।

मालदीव से श्रीलंका तक फैला था राज्य

अब इस मंदिर को निर्मित करने वाले का भी अपना अनोखा इतिहास है। राजराजा चोल प्रथम भारत के चोल राजवंश के महान सम्राट थे जिन्होंने ९८५ से १०१४ तक राज किया। उनके शासन में चोलों ने दक्षिण में श्रीलंका तथा उत्तर में कलिंग तक साम्राज्य फैलाया। राजराजा चोल ने कई नौसैन्य अभियान भी चलाये, जिसके फलस्वरूप मालाबार तट, मालदीव तथा श्रीलंका को आधिपत्य में लिया गया। राजराज चोल ने बृहदेश्वर मन्दिर का निर्माण कराया। उन्होंने सन 1000 में भू-सर्वेक्षण की महान परियोजना शुरू कराई जिससे देश को वलनाडु इकाइयों में पुनर्संगठित करने में मदद मिली। राजराजा चोल ने “शशिपादशेखर” की उपाधि धारण की थी। उन्होंने मालदीव पर भी विजय प्राप्त की थी। इन्हीं के नेतृत्व में चोल साम्राज्य का वास्तविक विस्तार प्रारंभ हुआ एवं उनकी नौसेना का विकास भी प्रारंभ हुआ। 1010-1153 ईस्वी की अवधि के दौरान, चोल प्रदेश दक्षिण के मालदीव द्वीपों से लेकर उत्तर में आंध्रप्रदेश तक फैला हुआ था।

राजराजा चोल प्रथम ने मालदीव प्रायद्वीप और श्रीलंका पर विजय प्राप्त की। जिसके बाद उनके उत्तराधिकारी राजेंद्र चोल ने उत्तर भारत में एक विजयी अभियान भेजा, जिसने गंगा नदी को मैदानी भाग छुआ और पाटलिपुत्र के पाल शासक को हराया। चोलों ने एक स्थायी विरासत छोड़ी। उनके साहित्य संरक्षण और मंदिरों के निर्माण में उनके उत्साह के परिणामस्वरूप तमिल साहित्य और वास्तुकला को एक महान विरासत मिली हैं। चोल राजा उत्साही बिल्डर थे और अपने राज्यों में मंदिरों को न केवल पूजा स्थल के रूप में बल्कि आर्थिक गतिविधि के केंद्रों के रूप में भी देखते थे। उन्होंने एक सशक्त और केंद्रीकृत शासन का बीड़ा उठाया और एक अनुशासित नौकरशाही की स्थापना की।

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परिवर्तन अब दूर नहीं है

उधर हमें निरंतर अपमानित करने वाले पाश्चात्य जगत क्या कर रही थी? कोई रक्त की नदियों में स्नान कर रहा था तो कोई दिग्विजय के स्वप्न रच रहा था। यदि गजनवी के तुर्क आक्रांता न आए होते तो 3 शताब्दियों तक अरबी आक्रान्ताओं को भारत ने मार मार कर उनका भूत निकाल दिया था और अभी तो हमने यवनों की चर्चा भी नहीं की है। ये तो कुछ भी नहीं है बंधु। लगभग एक वर्ष पूर्व, एक अध्ययन में सामने आया कि लगभग 4,000 वर्ष पहले हड़प्पा सभ्यता के दौरान रहने वाले लोग उच्च प्रोटीन, मल्टीग्रेन ‘लड्डू’ का सेवन करते थे। राजस्थान में खुदाई के दौरान मिली सामग्री के वैज्ञानिक अध्ययन से यह बात सामने आई थी। पश्चिमी राजस्थान के बिजनौर में एक हड़प्पा पुरातात्विक स्थल की खुदाई के दौरान में कम से कम सात ‘लड्डू’ मिले थे।

राजस्थान में एक हड़प्पा स्थल बिजनौर में मिली सामग्री पर हुए एक नए वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, हड़प्पा के लोग लगभग 4,000 साल पहले उच्च प्रोटीन वाले मल्टीग्रेन “लड्डू” का सेवन करते थे। अध्ययन संयुक्त रूप से बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (बीएसआईपी), लखनऊ और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), नई दिल्ली द्वारा आयोजित किया गया था और विज्ञान की जानकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक एल्सेवियर द्वारा ‘जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइंस: रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित किया गया था। अध्ययन यह भी इंगित करता है कि ये “लड्डू” अब विलुप्त हो रही सरस्वती नदी के तट पर किसी प्रकार के अनुष्ठान का हिस्सा था। बताओ, जिस समय पाश्चात्य जगत के लोग जंगली जानवर को मार कर खाते पीते थे, हम लोग रथ यात्रा करते थे, पौष्टिक लड्डू खाते थे और अब यही गोरे हमें असभ्य कहने का दुस्साहस रखते हैं। ऐसे में जब चियान विक्रम जैसे अभिनेता भारतीय इतिहास के एक अभूतपूर्व भाग की महिमा गाते हैं, जो उस तमिल फिल्म उद्योग से आते हैं, जहां पर भारत की महिमा को नमन बैकसीट लेता है, तो समझ जाइए कि परिवर्तन अब दूर नहीं है और इसे अब कोई नहीं रोक सकता।

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