तेलंगाना में भाजपा का ये मास्टरप्लान काम किया तो सरकार बननी तय

दक्षिण के राज्यों में तेलंगाना पर ही भाजपा इसलिए लगा रही है दांव।

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कहते हैं कि भाजपा ‘काऊ बेल्ट’ यानी गऊ पूजकों के क्षेत्रों की पार्टी है अर्थात उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। परंतु अब इस पार्टी ने सिद्ध कर दिया है कि इसके लिए विचारधारा और संस्कृति कितनी महत्वपूर्ण है और इसकी पूर्ति हेतु वह किसी भी सीमा को लांघने को तैयार है। आज यूपी, एमपी, हिमाचल, गुजरात और महाराष्ट्र के अतिरिक्त अब भाजपा पूर्वोत्तर में भी गढ़ स्थापित कर चुकी है। अब दक्षिण भारत में भी ऐसे ही अभेद्य दुर्ग बनाना चाहती है जिसका साक्षी होगा तेलंगाना।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे भाजपा इस बार तेलंगाना में केवल प्रतिस्पर्धा नहीं पेश करेगी अपितु भारी बहुमत से विजयी होगी क्योंकि उसकी रणनीति दमदार और असरदार जो है।

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भाजपा की दृष्टि अब दक्षिण भारत पर है

चुनाव का उत्सव शीघ्र ही आरंभ होने वाला है और भाजपा की दृष्टि अब दक्षिण भारत में भी विस्तार करने की ओर होगी। कहने को कर्नाटक में भाजपा की सरकार है परंतु वह उससे आगे कभी बढ़ ही नहीं पायी। अब केरल और तमिलनाडु में भाजपा की आधारशिला उतनी सुदृढ़ नहीं है और आंध्र प्रदेश में कभी जगन तो कभी चंद्रबाबू नायडू के सहारे रहना पड़ता है। परंतु एक राज्य भारतीय जनता पार्टी के भाग्य को रसातल से शिखर की ओर ले जा सकता है और वह राज्य है तेलंगाना। तेलंगाना वो क्षेत्र है जिसका राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व है, ऐसे में भाजपा इसे अपने हाथ से बिल्कुल नहीं जाने देना चाहेगा।

काल्वाकुन्तला चंद्रशेखर राव जैसे हठी, अवसरवादी शासक के कारण जब आंध्र प्रदेश का 2014 में विभाजन हुआ तो तेलंगाना का निर्माण हुआ। परंतु तुष्टीकरण और सत्ता में बने रहने की ज़िद में चंद्रशेखर राव ने एक बने बनाए राज्य का बंटाधार करने में कोई प्रयास अधूरा नहीं छोड़ा, ये जानते हुए भी कि यहां अवसरों की कोई कमी नहीं। यह वही तेलंगाना है जो कभी स्वतंत्रता से पूर्व हैदराबाद प्रांत का केंद्र था, जहां निजाम शाही की सत्ता का शासन व्याप्त था।

कई वर्षों तक तेलंगाना की राजनीति और बिहार की राजनीति में कोई विशेष अंतर नहीं था क्योंकि जनता के सामने विकल्पों की भारी कमी थी और कोई भी इस राज्य के उद्धार के लिए आगे आना ही नहीं चाहता था। एक ओर था सत्ताधारी टीआरएस तो दूसरी ओर थी अवसरवादी कांग्रेस, जिनके लिए केवल सत्ता सर्वोपरि थी।

परंतु यहीं पर भारतीय जनता पार्टी ने सोचा कि क्यों न कुछ अलग ट्राई किया जाए। प्रारंभ में 1 विधायक तक सीमित रहने वाली इस पार्टी ने अपनी रणनीति में व्यापक बदलाव किए और पूर्वोत्तर की भांति साम दाम, दंड भेद की रणनीति अपनाते हुए तेलंगाना में संस्कृति और राजनीति के प्रचुर मिश्रण को बढ़ावा देना प्रारंभ किया।

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असंभव को संभव कर दिखाया

जिसे लोग आज ‘मण्डल-कमंडल’ की राजनीति कहकर बदनाम करते हैं, उस उत्सव की राजनीति यानी संस्कृति का उत्सव, तुष्टीकरण का विरोध इत्यादि एवं आर्थिक उपलब्धियों का प्रचार प्रसार इत्यादि को भाजपा ने जमकर बढ़ावा दिया। परिणाम – 2019 में असंभव को संभव करते हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जी किशन रेड्डी के नेतृत्व में 17 सीट में से 4 लोकसभा सीट में प्राप्त की।

ये तो कुछ भी नहीं है। कहने को विपक्षी पार्टी कांग्रेस है पर वास्तविक विपक्ष है, इसकी पुष्टि 2020 में ही हो चुकी थी। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के अति महत्वपूर्ण GHMC चुनावों में अपना बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 49 सीटों पर जीत दर्ज की, जिसमें बीजेपी के सर्वोच्च नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी समेत गृहमंत्री अमित शाह की भूमिका अहम थी, लेकिन सबसे बड़ी भूमिका तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष बांदी संजय कुमार की भी थी।

प्रारंभ में भाजपा को हल्के में लिया जा रहा था। टीआरएस नेता और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर समेत हैदराबादी सांसद असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी एआईएमआईएम के नेता बीजेपी का मजाक बना रहे थे। दूसरी ओर संजय ने सभी को नजरंदाज करते हुए जमीनी स्तर पर काम किया।

परंतु बात केवल यहीं तक सीमित नहीं थी। तेलंगाना दक्षिण भारत, विशेषकर कर्नाटक और आंध्र में एक पुल का कार्य करती है, और इस पुल की लाइफलाईंन है तेलुगु सिनेमा। इस बात को भाजपा से बेहतर कोई नहीं जानता। शायद इसीलिए इस दौरान अगस्त में हाल ही में उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म सिटी यानी रामोजी फिल्म सिटी का दौरा कर रामोजी राव‌ से मुलाकात की थी। इसके अतिरिक्त अमित शाह ने यहां सुपरस्टार जूनियर एनटीआर से भी मुलाकात की जिसकी चर्चा राष्ट्रीय राजनीति में बहुत अधिक है। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि तेलंगाना की राजनीति में जूनियर एनटीआर का कोई दखल नहीं है लेकिन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह नाम उथल-पुथल मचाने के लिए काफी है।

अमित शाह ने जूनियर एनटीआर से मुलाकात की और उनकी जमकर तारीफ भी है। गृहमंत्री ने ट्वीट कर लिखा कि “यहां हैदराबाद में एक बहुत ही प्रतिभाशाली अभिनेता और तेलुगू सिनेमा के रत्न जूनियर एनटीआर के साथ अच्छी बातचीत हुई।” इस ट्वीट के साथ ही शाह ने जूनियर एनटीआर के साथ अपनी तस्वीरें भी शेयर की हैं। अब खास बात यह है कि एक तरफ अमित शाह राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं तो दूसरी ओर जूनियर एनटीआर फिल्मी जगत में अपने करियर की ऊंचाइयों पर हैं।

जूनियर एनटीआर जहां फिल्म जगत में RRR जैसी फिल्मों के चलते इंटरनेशनल लेवल पर ख्याति प्राप्त कर चुके हैं और अपने करियर के पीक पर हैं तो ऐसा नहीं है कि वे राजनीति से खास जुड़ाव रखते हैं, बल्कि असल खेल तो उनके दादा सीनियर एनटीआर का था जिन्होंने राज्य की राजनीति में तेलंगाना के अलग होने से पहले आंध्र पर एकछत्र राज किया था। NTR का राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं था लेकिन जब उन्होंने राजनीति में कदम रखा तो राज्य में कांग्रेस जैसी पार्टी को नाकों चने चबवा दिए थे।

ऐसे में बीजेपी के लिए अमित शाह का जूनियर एनटीआर से मिलना एक एक्स फैक्टर हो सकता है। भले ही जूनियर एनटीआर राजनीति में न आएं लेकिन उनका फिल्मी भविष्य सुनहरा माना जा रहा है। बीजेपी तेलंगाना में फिलहाल अपने राजनीतिक प्रसार में जुटी है। अहम बात यह है कि भले ही सीटों में पार्टी पीछे है लेकिन मुख्यमंत्री केसीआर यह जानते हैं कि बीजेपी अब राज्य में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आ चुकी है। यही कारण है कि केसीआर आए दिन प्रधानमंत्री और मोदी समेत बीजेपी के केंद्रीय धड़े पर हमलावर रहते हैं। उस पर सोने पे सुहागा किया उनके सुपुत्र KTR ने, जिन्होंने कुछ समय पूर्व ये आरोप लगाया कि द कश्मीर फाइल्स आदिपुरुष जैसी फिल्में केवल भाजपा के हित में बनायी जा रही है।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा की तेलंगाना रणनीति न केवल धारदार है, अपितु असरदार भी, और इस बार ये उन्हें यदि प्रचंड बहुमत नहीं, तो तेलंगाना में सरकार बनाने के लिए आवश्यक अंक दिलाने हेतु पर्याप्त तो अवश्य है, जिसमें विशेष कृपा तो KCR और उनके परिवार की ही होगी।

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