बीबीसी का खर्चा भी नहीं झेल पा रहा ‘दिवालिया’ ब्रिटेन

तो बंद हो जाएगी बीबीसी?

bbc

अति का अंत जरूर होता है। ब्रिटेन का मशहूर मीडिया संगठन BBC यानि British Broadcasting Corporation एक बार पुनः सुर्ख़ियों में आ गया है। हमेशा अपने एजेंडायुक्त रिपोर्टों के लिए सुर्ख़ियों में बने रहने वाला बीबीसी इस बार अपने पतन की खबर के साथ बाहर आ रहा है। वैसे तो बीबीसी का विवादों से पुराना नाता रहा है, लेकिन हालिया मामले के कारण तो बीबीसी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है।

दरअसल, अब बीबीसी अपनी सेवाओं को समाप्त करने जा रहा है जिसमें भारत में संचालित सेवायें प्रमुख हैं। इसका एक मात्र कारण ब्रिटेन सरकार का हर ओर से ठप्प होता जा रहा कमाई का जरिया है। चूंकि बीबीसी ब्रिटेन शासन के रहमोकरम पर चलता आ रहा था पर अब वहां से मिलने वाली खैरात बंद होती जा रही है। परिणामस्वरूप अब बीबीसी अपने पतन की राह पर है।

बीबीसी रेडियो सेवा होगी बंद

दरअसल, ब्रिटेन सरकार के लगातार लाइसेंस शुल्क फ्रीज के कारण बीबीसी को अपनी विश्व सेवाओं में गहरी कटौती की घोषणा करने के लिए विवश होना पड़ा है। बीबीसी अब चीनी, हिंदी और अरबी सहित कम से कम दस भाषाओं में रेडियो आउटपुट का उत्पादन नहीं करेगा। यहां तक कि वर्ल्ड सर्विसेज का अंग्रेजी भाषा का रेडियो आउटपुट लाइव न्यूज और स्पोर्ट्स पर ज्यादा फोकस करेगा। अनुमान लगाया गया है कि बीबीसी के इन परिवर्तनों से सैंकड़ों की संख्या में लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठेंगे। बताया जा रहा है कि बीबीसी के इस निर्णय से करीब-करीब 400 लोग नौकरियां खो देंगे। ब्रिटेन सरकार ने शुरू में विश्व सेवा को वित्तपोषित किया था, लेकिन अब सरकार पीछे हट गई है और उसने वित्तपोषण का सारा ठीकरा घरेलू लाइसेंस शुल्कदाताओं पर फोड़ दिया है।

और पढ़ें- लखीमपुरी खीरी मामले में BBC और Reuters की रिपोर्टिंग को ‘केला पुरस्कार’ से पुरस्कृत करना चाहिए

ऐसी स्थिति आने पर कवरअप तो करना ज़रूरी हो जाता है तो बीबीसी ने अपनी तंगी को छुपाने के लिए जो रास्ता खोजा वो था कि हम तो अपने खर्चों को कम करने के लिए यह कर रहे हैं। बीबीसी के अनुसार उसने अपना खर्च कम करने के अभियान के तहत यह निर्णय लिया है। बीबीसी ने जारी बयान में कहा कि उसने अपने अंतरराष्ट्रीय सेवाओं के लिए वार्षिक बचत 28.5 मिलियन यूरो करने और सेवाओं के डिजिटल करने के उद्देश्य से यह फैसला लिया है।

बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के निदेशक लिलियन लैंडोर ने कहा कि डिजिटल सेवाओं के विस्तार करना एक विवश करने वाला  मामला था, क्योंकि दर्शकों की संख्या 2018 से दोगुनी से अधिक हो गई थी। उन्होंने कहा- “जिस तरह से दर्शक न्यूज़ और कंटेंट तक पहुंच रहे हैं, वह बदल रहा है और दुनिया भर के लोगों तक गुणवत्ता, भरोसेमंद पत्रकारिता तक पहुंचने और उन्हें जोड़ने की चुनौती बढ़ रही है।”

और पढ़ें- बेशर्मी की भी एक हद होती है लेकिन BBC को कोई फर्क नहीं पड़ता!

खर्च कटौती का दिया हवाला

बीबीसी ने कहा कि इसकी अंतरराष्ट्रीय सेवाओं को 500 मिलियन यूरो की व्यापक कटौती के हिस्से के रूप में 28.5 मिलियन पाउंड ($31 मिलियन) की बचत करने की आवश्यकता है, जिसके लिए यूनियनों ने यूके सरकार को दोषी ठहराया। जुलाई में ब्रॉडकास्टर ने अगले साल अप्रैल में लॉन्च करने के लिए बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ टेलीविज़न और इसके घरेलू यूके समकक्ष को एक चैनल में मर्ज करने की विस्तृत योजना बनाई। बीबीसी वर्ल्ड सर्विस- यूके के सबसे अधिक पहचाने जाने वाले वैश्विक ब्रांडों में से एक वर्तमान में लगभग 364 मिलियन लोगों के साप्ताहिक दर्शकों के साथ दुनिया भर में 41 भाषाओं में काम करता है।

और पढ़ें- BBC बना तालिबान का ‘लाडला’, तो NYT ने भी ‘तालिबान का प्रेम’ हासिल करने के लिए लगाई दौड़

भारत से बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ रहा

यह संभावना नहीं है कि कोई भी देश विश्व सेवा सामग्री को पूरी तरह खो देगा। सभी भाषाओं में डिजिटल संचालन जारी रहेगा। कटौती के बावजूद, World Service अभी भी लगभग 364 मिलियन लोगों के दर्शकों तक पहुंचती है। परंतु जिस भारत में बीबीसी को सबसे ज़्यादा कारोबार मिला, जिस भारत में उसने अपनी एजेंडावादी पत्रकारिता से झूठ का प्रसार कर पैसा कमाया, अब उसी हिन्दी भाषा वाले बीबीसी को भारत से बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ रहा है। भले ही वो यह कह रहा हो कि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जिंदा रहेगा पर यह सबको पता है कि यह तो स्वयं को जीवित दिखाने की विवशता है जो बीबीसी कर रहा है। अब बीबीसी भारत में अपनी एजेंडावादी पत्रकारिता को इसलिए संचालित नहीं कर पा रहा था क्योंकि आज सच और झूठ मिनटों में साफ़ हो जाते हैं।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.

Exit mobile version