राजनीति में पल-पल महत्वपूर्ण होता है, एक-एक बैठक के अनेक अर्थ हे मायने होते हैं। जो इन मायनों को समझ जाता है वो कुशल राजनीतिज्ञ कहलाता है और जो इन्हें छिट-पुट घटनाक्रम समझता है वो हाथ मलता रह जाता है। अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ही बात करें तो यह सभी जानते हैं कि वो विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है और उस पार्टी का थिंक टैंक है जो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है अर्थात भारतीय जनता पार्टी। अब उसी संघ के सरसंघचालक अगर कुछ कर रहे हैं तो उसके कुछ तो मायने होंगे ही। ऐसे में कोई भी छोटी-मोटी घटना, चाहे कितनी भी निरर्थक क्यों न लगे, बड़े राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में एक बड़ा प्रभाव डाल सकती है। ऐसा ही इस समय हो रहा है।
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संघ और भाजपा से जुड़ी झूठी धारणाएं
दरअसल, संघ और भाजपा से जुड़ी झूठी धारणाओं को दूर करने के लिए संघ के खिलाफ प्रतिवाद अभियान चलाने और मुस्लिम समुदाय के बीच अनर्गल डर को दूर करने के लिए, आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत ने एक मुस्लिम आउटरीच कार्यक्रम शुरू किया है। इसके माध्यम से वो उन सभी धारणाओं को धराशाई कर रहे हैं जिन्हें आज तक संघ के विरुद्ध गढा जाता रहा है। इसके लिए मोहन भगवत मुस्लिम बुद्धिजीवियों, मस्जिद और मदरसा के मौलवियों के साथ युद्ध स्तर पर बैठकें कर रहे हैं। इन बैठकों और कार्यक्रमों के साथ, संघ नरमपंथी मुसलमानों तक पहुंचना चाहता है। यूं तो ये मुसलमान अल्पसंख्यकों में बहुसंख्यक हैं, लेकिन उनके समुदाय में कुछ कट्टरपंथी तत्वों के कारण उन्हें दोयम दर्ज़े का जीवन जीना पड़ता है।
ज्ञात हो, हाल ही में आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मुख्य मौलवी उमर अहमद इलियासी से मुलाकात की थी। उनसे मिलने के साथ ही उन्होंने मध्य दिल्ली की एक मस्जिद का दौरा भी किया था। उन्होंने उत्तरी दिल्ली के आजादपुर में मदरसा ताजवीदुल कुरान का भी दौरा किया और मदरसे में बच्चों से मुलाकात की।
इस मुलाकात पर अखिल भारतीय इमाम संगठन (एआईआईओ) के मुख्य मौलवी उमर इलियासी ने कहा कि आरएसएस प्रमुख ने उनके निमंत्रण पर मस्जिदों और मदरसे का दौरा किया। ज्ञात हो कि अखिल भारतीय इमाम संगठन (एआईआईओ) भारतीय इमाम समुदाय का प्रतिनिधि संगठन है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा इमाम संगठन होने का दावा किया जाता है। इन बैठकों का उद्देश्य नरमपंथी मुसलमानों के मन में अलगाव और बदनामी के अनावश्यक भय को दूर करना है।
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दोनों पक्ष देश को एकजुट करना चाहते हैं
इसके अलावा, इन बैठकों के माध्यम से दोनों पक्ष देश को एकजुट करना चाहते हैं, सांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत करना चाहते हैं, न कि विविधता को ध्रुवीकरण और हिंसक संघर्ष का आधार बनाना चाहते हैं। एक महीने में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ आरएसएस प्रमुख की यह दूसरी मुलाकात है। इससे पहले 22 अगस्त को पांच मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने सरसंघचालक मोहन भागवत से मुलाकात की थी। इस बैठक में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरुद्दीन शाह, पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी और व्यवसायी सईद शेरवानी शामिल थे। वहीं संघ की दृष्टि से उस बैठक में मोहन भागवत के अलावा सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल, अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख राम लाल और अखिल भारतीय प्रचारक इंद्रेश कुमार सहित अन्य आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी थे।
मुस्लिम बुद्धिजीवियों और मौलवियों ने आरएसएस प्रमुख और अन्य पदाधिकारियों के साथ अपनी बैठकों को सौहार्द्रपूर्ण करार दिया है। अपने मीडिया संवादों में, इन बुद्धिजीवियों और मौलवियों ने संवाद को राष्ट्र में शांति और प्रगति के लिए एकमात्र रास्ता बताया। इन बैठकों के इतर भाजपा के बाद अब संघ मुस्लिम समुदाय के उस भाग को सशक्त करने में जुट चुका है जो मुस्लिम समुदाय की आबादी में तो सबसे बड़ा पर उसको हर मोड़ पर समुदाय के लोगों ने ही अछूता छोड़ा है। सबसे पहले तो भाजपा ने इस बार यूपी जीतने के बाद उसी पसमांदा समुदाय से आने वाले दानिश आज़ाद अंसारी को योगी कैबिनेट में जगह दी और उसके बाद चाहे वो राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में पीएम मोदी का संबोधन हो जिसमें उन्होंने पसमांदा समुदाय का विशेष रूप से ज़िक्र किया था या पार्टी के अनेकों कार्यक्रमों और नियुक्तियों में पसमांदा समुदाय के लोगों को तरजीह देना हो भाजपा इस काम पर पहले से ही लग गई है।
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सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा समुदाय
हैदराबाद में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में, पीएम मोदी ने जोर देकर कहा था कि पार्टी का लक्ष्य हमेशा भारत को “तुष्टीकरण” से “त्रिपिकरण” तक ले जाना है, जो तुष्टिकरण से पूर्ति तक है। बैठक में शीर्ष नेतृत्व ने अपने कार्यकर्ताओं से कमजोर और छूटे हुए वर्गों विशेषकर पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने को कहा। विशेष रूप से, पसमांदा मुसलमान मुस्लिम समुदाय में पिछड़ा वर्ग हैं। उन्हें विकास की मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है। पसमांदा समुदाय में कुल मुस्लिम आबादी का 85% शामिल है। बहुसंख्यक होने के बाद भी वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं।
एक ओर संघ और भाजपा नरमपंथी और बुद्धिजीवी मुसलमानों तक पहुंच रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर कानून प्रवर्तन एजेंसियां कट्टरपंथियों, चरमपंथियों और आतंक से हमदर्दी रखने वालों पर कार्रवाई कर रही हैं।
हाल ही में, एनआईए, ईडी और अन्य राज्य एजेंसियों ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और अन्य संगठित आपराधिक इस्लामी समूहों जैसे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के आतंकी ढांचे पर कार्रवाई शुरू की। अब गृह मंत्रालय ने पीएफआई पर 5 साल के लिए बैन भी लगा दिया है। इसके अलावा कई राज्य सरकारें कट्टरपंथी मुसलमानों की अन्य भयावह गतिविधियों को समाप्त करने के लिए कानून बना रही हैं।
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कट्टर मुसलमानों पर कार्रवाई
जबरन धर्मांतरण (लव जिहाद), गोहत्या पर प्रतिबंध और ट्रिपल तालक जैसे दमनकारी कानूनों को खत्म करने के कानून कट्टर मुसलमानों पर कार्रवाई के प्रचलित उदाहरण हैं। वहीं सर्वेक्षण की कड़ी में अब मदरसों में शिक्षा की आड़ में धर्म के नाम पर जमीन हड़पने और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की पूरी तरह से जांच की जा रही है। अब मदरसों का तो सर्वे हो ही रहा था कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की जांच शुरू हो गयी है। चूंकि वक्फ की ओर से कई जमीनों पर दावा पेश किया गया जो वास्तव में उनकी थी ही नहीं।
यह संकेत देता है कि सरकार गहरी जड़ें प्रणालीगत सुधार लाने के लिए एक अनुकूल माहौल बनाने की योजना बना रही है। इन घटनाक्रमों से पता चलता है कि सरकार बहुप्रतीक्षित नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर सकती है। इसके अलावा, यह संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) ला सकता है। जैसा कि भगवा पार्टी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अपने संकल्प पत्र को लागू करना चाहती है।
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