पढ़ाई, करियर, विवाद- साइरस मिस्त्री का जीवन और विरासत

जानिए बिजनेसमैन साइरस मिस्त्री के जीवन के बारे में, जब बाहरी होकर भी संभाला था TATA ग्रुप

Cyrus Mistry

दुनिया के सबसे दिग्गज और सम्मानित कारोबारी घराने की बात हो तो इस सूची में एक नाम टाटा ग्रुप का भी आता है। टाटा ग्रुप का राष्ट्र की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, इसी टाटा ग्रुप से जुड़े और इसकी विरासत संभालने वाले एक व्यक्ति थे साइरस मिस्त्री थे जिनके संबंध में बीते दिन बहुत ही दुखद खबर सामने आयी। साइरस मिस्त्री रविवार, 4 सितंबर को महाराष्ट्र के पालघर में एक सड़क हादसे का शिकार हो गये और इस तरह उन्होंने दुनिया को विदा कह दिया। केवल 54 वर्ष की आयु में साइरस का निधन हो गया।

टाटा ग्रुप की कमान संभालने वाले एक बाहरी व्यक्ति थे साइरस

साइरस मिस्त्री, जिन्होंने एक बाहरी व्यक्ति के रूप में टाटा ग्रुप की कमान संभाली थी परंतु जब बात अपने सम्मान की आयी तो वो उसी टाटा ग्रुप से भिड़ गए और अंत तक हार नहीं मानी। साइरस मिस्त्री एक शांत स्वभाव के और लाइमलाइट से दूर सादा जीवन जीने के लिए जाने जाते थे। वैसे तो वो लंबे वक्त से कारोबारी घराने से जुड़े रहे परंतु तब वो खबरों में आ गए जब टाटा ग्रुप के नेतृत्व का उत्तरदायित्व उनके कंधों पर आया। इसके बाद उसी टाटा ग्रुप के साथ विवाद भी खड़ा हुआ जिसे भारतीय कॉरपोरेट जगत के बड़े विवादों में से एक गिना जाता है।

साइरस मिस्त्री पारसी समुदाय से आने वाले उद्योगपति पालोनजी शापोरजी मिस्त्री के सबसे छोटे पुत्र थे। उनके पिता पालोनजी मिस्त्री 150 वर्षों से भी अधिक पुरानी कंस्ट्रक्शन कंपनी शापोरजी पालोनजी ग्रुप के चेयरपर्सन रहे थे। दो माह पहले इसी वर्ष जून में उनका भी निधन हुआ था। पालोनजी ने निर्माण क्षेत्र में अपना साम्राज्य खड़ा किया था। पालोनजी का विवाह आयरलैंड की महिला से हुआ था और उन्होंने स्वयं भी आयरिश नागरिकता ले ली थी। 4 जुलाई 1968 को जन्मे साइरस मिस्त्री के पास भी आयरिश नागरिकता ही थी। परंतु फिर भी वो भारत के ही  स्थायी निवासी बनकर रहे। साइरस मुंबई में पढ़े और यहीं से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और आगे की पढ़ाई के लिए वो ब्रिटेन चले गए। लंदन बिजनेस स्कूल ने उन्होंने मैनेजमेंट में मास्टर्स भी किया।

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पढ़ाई पूरी करने के बाद साइरस मिस्त्री अपने पारिवारिक बिजनेस से ही जुड़ गए थे। वर्ष 1991 में उनको शापोरजी पालोनजी एंड कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का हिस्सा बनाया गया। वर्ष 1994 में वो शापोरजी पालोनजी ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर बनाए गए। बताया जाता है कि कंपनी का जिम्मा संभालने के बाद साइरस ने कंस्ट्रक्शन कारोबार 11 हजार करोड़ तक बढ़ा दिया था। वो साइरस मिस्त्री ही थे, जिनके निर्देशन में उनकी कंपनी ने भारत का सबसे ऊंचा आवासीय टावर, सबसे लंबा रेलवे पुल और सबसे बड़ा पोर्ट बनाने का रिकॉर्ड बनाया था। साथ ही साइरस ने अपनी कंपनी का कई अन्य कारोबार में विस्तार भी किया। वो जल्द ही भारतीय बिजनेस जगत का एक बड़ा नाम बन गए थे, परंतु इसके बाद भी वो लाइमलाइट से दूर ही रहते थे।

मिस्त्री परिवार के टाटा ग्रुप से संबंध वैसे तो बहुत पुराने रहे थे। वर्ष 1930 में साइरस के दादा ने टाटा संस में 12.8 फीसदी की हिस्सेदारी खरीद ली थी, जो बाद में बढ़कर 18 प्रतिशत तक हो गयी। वर्ष 2006 में जब पालोनजी टाटा ग्रुप के बोर्ड से रिटायर हुए तो उनकी जगह पर साइरस मिस्त्री को इसमें शामिल किया गया था। वो टाटा पावर और टाटा एलेक्सी के डायरेक्टर भी रह चुके हैं। दिसंबर 2012 में रतन टाटा के बाद साइरस मिस्त्री को टाटा संस का चेयरमैन नियुक्त किया गया था। वो टाटा ग्रुप में यह पद संभालने वाले सबसे युवा और बाहरी व्यक्ति थे। परंतु चार वर्षों तक टाटा की कमान संभालने के बाद वर्ष 2016 में उन्हें अचानक ही पद से हटा दिया गया, जिसके बाद इस पर बड़ा विवाद भी खड़ा हुआ।

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जब अचानक टाटा ग्रुप के चेयरमैन के पद से हटाया गया

साइरस को यूं अचानक टाटा ग्रुप के चेयरमैन के पद से हटाए जाने का आधिकारिक कारण तो स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया। परंतु खबरों के अनुसार उनको हटाने के पीछे की वजह यह रही थी कि वो टाटा समूह का कोई भी फैसला बिना बोर्ड मेंबर्स के विचार विमर्श के ही ले लिया करते थे।  उन पर आरोप लगने लगा कि वे अपने फैसलों में रतन टाटा को जगह नहीं दे रहे थे। इसके अलावा उनके कार्यकाल के दौरान टाटा समूह ने जिस प्रकार की ग्रोथ सोची थी वो उस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाए। जिसके बाद अंत में उन्हें इस पद से हटा दिया गया।

हालांकि जिस तौर-तरीके से साइरस मिस्त्री को चेयरमैन से निकाला गया, वो उसे चुनौती देने के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) भी चले गए। हालांकि वर्ष 2018 में NCLT ने मिस्त्री की याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनके आरोपों में कोई आधार नहीं दिखता। परंतु इसके बाद भी साइरस मिस्त्री ने हार नहीं मानी और वो अपने हक की इस लड़ाई को लेकर NCLAT पहुंच गए जहां साइरस को जीत भी गए। इस बार निर्णय उनके पक्ष में आया और मिस्त्री को चेयरमैन के पद पर दोबारा नियुक्त करने का आदेश दिया गया।

परंतु इसके बाद रतन टाटा इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट चले गए और इस बार जीत उनकी हुई। सुप्रीम कोर्ट ने NCLAT के फैसले को पलट दिया था। साइरस मिस्त्री ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी थी, परंतु अंत तक उन्होंने हार नहीं मानी। टाटा से अलग होने के बाद साइरस दोबारा अपने फैमिली बिजनेस को संभालने लगे थे। साइरस मिस्त्री भले ही कारोबारी घराने से संबंध रखते थे, परंतु उन्होंने अपने दम पर उद्योग जगत में अपना अलग नाम और पहचान बनायी थी। वो कारोबार जगत के एक चमकते हुए सितारे थे जिसे हम इस तरह से खो देंगे, किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी।

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