‘द वायर’ के औपनिवेशिक गुलामों, कान्होजी आंग्रे के बारे में विष वमन करने से पहले ये पढ़ लो

गजब कुंठा है भैया!

कान्होजी आंग्रे

Source- TFI

नौसेना हमारे देश का उतना ही महत्वपूर्ण भाग है, जितना वायुसेना या थलसेना, और इसे परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौसेना के ध्वज में व्यापक बदलाव करते हुए ब्रिटिश सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटा दिया। इसके अतिरिक्त नए प्रतीक चिन्ह के रूप में नौसेना के नए निशान को छत्रपति शिवाजी महाराज की मुहर से लिया गया है। नए ध्वज में ऊपर बाईं ओर तिरंगा बना हुआ है, साथ ही एक गोल्ड अष्टकोण भी हैं, जिसके अंदर अशोक चिह्न बनाया गया है। अशोक चिन्ह के नीचे सत्यमेव जयते लिखा है और साथ ही ध्वज में नीचे संस्कृत भाषा में “शं नो वरुण:” अंकित है, जिसका अर्थ “जल के देवता हमारे लिए शुभ हों” लिखा है। वरुण को समुद्र का देवता माना जाता हैं। अशोक चिह्न जिस पर बनाया गया, वो असल में छत्रपति शिवाजी महाराज की शाही मुहर है।

परंतु कुछ लोगों के लिए गलत नहीं कहा जाता, “अंग्रेज़ चले गए, इन्हें छोड़ गए।” इसी सूची में सम्मिलित है द वायर, जिसने अभी तक अंग्रेज़ों को नमन करना नहीं छोड़ा है। कुंठा से परिपूर्ण लेख में द वायर ने नौसेना के इस परिवर्तन का उपहास उड़ाते हुए कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय नौसेना के ‘संरक्षक’ कैसे हो सकते हैं, ये पीएम मोदी की एक घटिया ‘राजनीतिक चाल’ है!

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अपनी बात को सिद्ध करने हेतु द वायर ने कहा, मराठाओं के अंदर यूरोपीय शक्तियों से भिड़ने का सामर्थ्य नहीं था। वे बस उनसे तटों तक ही भिड़ते थे। वे अपनी सीमित शक्तियों से भली भांति परिचित थे। उन्होंने थोड़ी देर के लिए चोल साम्राज्य और उनकी नौसैनिक शक्तियों का उल्लेख किया पर उनका मुख्य उद्देश्य यूरोपीय नौसैनिक शक्तियों का गुणगान और भारतीयों को हीन दिखाना था, विशेषकर छत्रपति शिवाजी महाराज को।

हमें नहीं पता कि इस लेख में कितनी सत्यता है परंतु यह सत्य है कि इस लेख को लिखने वाले द वायर के लेखक मनोज जोशी को इतिहास का ‘इ’ भी ज्ञात नहीं होगा अन्यथा ऐसी रद्दी तो बिल्कुल नहीं लिखते। कभी सरखेल कान्होजी आंग्रे का नाम भी इन्होंने सुना है? कहां से सुना होगा, अंग्रेज़ों की विरुदावली करने से फुर्सत जो मिले। कान्होजी आंग्रे मराठा नौसेना के सर्वप्रथम सेनानायक थे, जिन्होंने छत्रपति शंभूजी/संभाजी महाराज से लेकर उन्हें सरखेल आंग्रे भी कहा जाता है। कान्होजी ने 18वीं शताब्दी के दौरान भारत के तटों पर ब्रिटिशडच और पुर्तगाली नौसेनाओं के खिलाफ जंग लड़ी। अंग्रेजों और पुर्तगालियों द्वारा कान्होजी को वश में करने के प्रयासों के बावजूद वह अपनी मृत्यु तक अपराजित रहे।

ये तो कुछ भी नहीं है बंधु। कान्होजी आंग्रे न केवल यूरोपीय आक्रमणकारियों को मुंहतोड़ जवाब देते थे अपितु उनके जहाज़ों को जब मन चाहे तब उठवा लेते थे। हम मज़ाक नहीं कर रहे, कान्होजी आंग्रे यूरोपीय आक्रांताओं, विशेषकर अंग्रेजों को चिढ़ाने के लिए यह अनोखी रणनीति भी अपनाते थे जिसके लिए उन्हें समुद्री दस्यु यानी पाइरेट तक कहा जाने लगा। प्रारंभ में कान्होजी आंग्रे आदर्शों के विरुद्ध जाना स्वीकार नहीं करते थे परंतु शीघ्र ही उन्होंने यूरोपीय साम्राज्यवादियों के आदर्शों को धता बताते हुए धर्म और राष्ट्र को सर्वोपरि रखा।

कान्होजी ने भारत के पश्चिमी तट पर ग्रेट ब्रिटेन और पुर्तगाल जैसी नौसेना शक्तियों पर हमले तेज कर दिए। 4 नवंबर 1712 को उनकी नौसेना ने बॉम्बे के ब्रिटिश गवर्नर विलियम एस्लाबी के सशस्त्र नौका अल्जाइन पर कब्जा करने में भी कामयाबी हासिल की, उनके करवार कारखाने के प्रमुख थॉमस चाउन को मार डाला और उनकी पत्नी को कैदी बना लिया। वो महिला 13 फरवरी 1713 तक 30,000 रुपये की फिरौती मिलने तक बंदी बनी रही। महिला की रिहाई पहले से कब्जा की गई भूमि की वापसी के साथ की गई। उन्होंने गोवा के पास ईस्ट इंडियन, सोमरस और ग्रन्थम को जब्त कर लिया क्योंकि ये जहाज इंग्लैंड से बॉम्बे तक जाते थे।

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आंग्रे ने अंततः कंपनी के बेड़े को परेशान करने से रोकने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के अध्यक्ष एस्लाबी के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए। 26 दिसंबर 1715 को बॉम्बे के नए गवर्नर के रूप में चार्ल्स बून ने अपने आगमन के साथ ही आंग्रे को पकड़ने के लिए कई प्रयास किए। सफल होने के बजाय, 1718 में आंग्रे ने अंग्रेजों से संबंधित तीन जहाजों पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद अंग्रेजों ने 1720 में एक नया अभियान शुरू किया। 29 नवंबर 1721 को पुर्तगालियों (वायसराय फ्रांसिस्को जोस डे सम्प्रियो ई कास्त्रो) और ब्रिटिश (जनरल रॉबर्ट कोवान) द्वारा कन्होजी को हराने का संयुक्त प्रयास भी बुरी तरह विफल रहा।

इस बेड़े में कमांडर थॉमस मैथ्यू के नेतृत्व में यूरोप के सबसे बड़े मैन ऑफ वॉर क्लास जहाजों में 6,000 सैनिक थे। मेंढाजी भाटकर और उनकी नौसेना को मराठा योद्धाओं से सहायता प्राप्त हुई और उन्होंने यूरोपीय जहाजों को परेशान करना और लूटना जारी रखा। बूने के जाने के बाद, 1729 में आंग्रे की मृत्यु तक ब्रिटिश और आंग्रे के बीच सापेक्ष शांति बनी रही। अब कृपा कर के द वायर और उसके फर्जी इतिहासकार यह बताने की कृपा करें कि मराठा कहां से दुर्बल थे और किस एंगल से वे यूरोपीय नौसेना से भिड़ने में सक्षम नहीं थे? ये कुछ नहीं, बस पीएम नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने और भारत का अपमान करने का इनका तुच्छ प्रयास है, जिसमें एक बार फिर इन्होंने मुंह की खाई है!

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