पहली बार किसी फिल्म में ‘मानक हिंदी’ का प्रयोग होगा, विडंबना ये है कि यह तमिल फिल्म है

'उर्दूवुड' के मुंह पर यह छन्नाटेदार चांटा है!

पोन्नियिन सेल्वन

पोन्नियिन सेल्वन- 1:समय भी बड़ा विचित्र है। कभी-कभी ऐसे अवसर उन लोगों के हाथों से दिलवाते हैं जिसका कोई न सर होता है, न पैर। परंतु वो इतना भव्य और सौभाग्यशाली होता है कि लोग उसे अनदेखा ही नहीं कर पाते। वर्षों बाद जनता को शुद्ध, उर्दू से प्रदूषित हिन्दी से मुक्त एक फिल्म देखने का सौभाग्य मिलेगा। विचित्र संयोग तो देखिए ये कार्य एक ऐसा उद्योग करेगा जिसका हिंदी के साथ छत्तीस का आंकड़ा रहा है।

प्रदर्शन को तैयार बहुचर्चित तमिल फिल्म ‘पोन्नियिन सेल्वन- 1’ को लेकर अधिकतम देशवासी उत्सुक हैं जो मणिरत्नम की बहुप्रतीक्षित फिल्म है और कल्कि कृष्णमूर्ति की बहुचर्चित पुस्तक पर आधारित है। ये तमिल इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय पर आधारित रोमांचकारी उपन्यास है। पोन्नियिन सेल्वन- 1 में चियान विक्रम, जयम रवि, कार्ति सिवाकुमार, ऐश्वर्या राय, तृषा कृष्णन, सोभिता धूलिपाला इत्यादि प्रमुख भूमिकाओं में है।

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फिल्म में उर्दू का प्रयोग नहीं

पोन्नियिन सेल्वन- 1 फिल्म के प्रमोशनल कार्यक्रम में इसके हिन्दी लेखक दिव्य प्रकाश द्विवेदी ने बताया कि उन्हें कैसे बीआर चोपड़ा की चर्चित ‘महाभारत’ से प्रेरणा मिली और कैसे उन्होंने KGF और RRR के चर्चित संवादों को ध्यान में रखते हुए अपनी पटकथा मिली। चूंकि उस कालखंड में उर्दू का कतई प्रयोग नहीं होता था इसलिए उन्होंने भी यह सुनिश्चित किया है कि यहां भी इसका कम से कम प्रयोग हो।

दिव्य प्रकाश द्विवेदी ने बताया कि यदि पटकथा का उर्दूकरण होता है, तो वह अपना मूल अर्थ खो देता है। उनके अनुसार- “उनकी कोशिश यही है कि आज जो 20 साल का यूथ है ‘पोन्नियिन सेल्वन’ देखने के बाद उनके पॉपुलर कल्चर में ऐसे भूले-बिसरे शब्द, फिल्म के कुछ डायलॉग चले जाएं और उनको ऐसे लाया जाए कि वो टीवी सीरियल जैसे न लगे। वहां की भाषा तो हम पकड़ नहीं सकते थे, वो लगें कि हम दसवीं शताब्दी में पहुंच के यहां से उसे एक हिंदी फिल्म की तरह देख रहे हैं। वो कैसे किए जाएंगे ये आपको फिल्म देखकर पता चलेगा।”

यहां पर दिव्य प्रकाश द्विवेदी के व्याख्यान का महत्व बढ़ जाता है। वो इसलिए क्योंकि हिन्दी और उर्दू में उतना ही अंतर है जितना आकाश और पाताल में। इसका सबसे प्रमुख कारण है- अस्तित्व। एक भाषा का अपना मूल अस्तित्व होना चाहिए उसकी स्पष्ट व्यवस्था, नियमावली, शब्दकोश, पांडुलिपि इत्यादि। हिन्दी में हमें ये सभी तत्व प्राप्त हैं, चाहे वो व्यवस्था हो, नियमावली, शब्दकोश अथवा पांडुलिपि। हिन्दी एक प्रकार से देवभाषा संस्कृत का सरल उच्चारण ही है जिसे अगर ध्यान से पढ़ा जाए तो कई क्षेत्रीय भाषाएं जैसे तेलुगु, मलयालम, मराठी इत्यादि को समझने, उनका पाठ करने और उनका अनुसरण करने में भी सरलता प्राप्त होगी।

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हिंदी और उर्दू में अंतर

इसकी तुलना में उर्दू का न अपना कोई अस्तित्व है, न कोई नियमावली, न कोई स्पष्ट पांडुलिपि और न ही कोई शब्दकोश। वैसे चोरी के मामले में अंग्रेजी भी उर्दू से भिन्न नहीं है, लेकिन उसने फिर भी अपने लिए एक विशिष्ट प्रणाली स्थापित की है, अपने व्याकरण की अलग पद्धति स्थापित की, परंतु उर्दू तो ये भी करने में असफल रही।

उर्दू’ का मूल अर्थ जानते हैं क्या है? ‘छावनी की भाषा’ यानि वो भाषा जो अधिकतम उस समय के (तुर्की आक्रांता) सैनिक बोलते थे। अरबी, फारसी, खड़ी बोली और हिन्दुस्तानी की अधपकी खिचड़ी का परिणाम है उर्दू। इसे भाषा बोलना ही भाषा शब्द का घोर अपमान होगा क्योंकि भाषा की सबसे मूल आवश्यकता है मौलिकता यानि Originality, जो उर्दू में दूर-दूर तक नहीं है।

तमिलनाडु में हिंदी भाषा के प्रति घृणा

विडंबना देखिए यह वो उद्योग कर रहा है, जिसकी नींव कभी हिन्दी को अपशब्द कहने और भारत को छिन्न भिन्न करने के लिए पड़ी थी। विश्वास नहीं होता तो इतिहास के पन्ने पलट लीजिए। तमिलनाडु के जो प्रणेता थे, सी एन अन्नादुरई एवं मुथुवेल करुणानिधि कौन थे? तमिल फिल्म उद्योग के आधारस्तंभ। आज जो रायता बॉलीवुड में सलीम-जावेद की जोड़ी ने फैलाया है न, ये कार्य युगों पूर्व इन कलमधारियों ने बिना एक गोली चलाए तमिलनाडु में कर दिया था।

ये वही तमिलनाडु है, जहां हिन्दी भाषी लोगों के प्रति सत्ताधारी डीएमके निरंतर विष उगलती है। कुछ ही माह पूर्व हाल ही में कोयंबटूर में एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सत्ताधारी डीएमके सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री के पॉनमुडी ने बताया कि वर्तमान सरकार (डीएमके सरकार) तमिल और अंग्रेजी की दोहरी भाषा को बढ़ावा देने की नीति पर कार्यरत रहेगी।

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तो इसका ‘भूरे साहब’ के विचार से क्या वास्ता?

अपने बयान में पॉनमुडी ने ये तक कह दिया, “हो सकता है कि हिंदी अधिक लोगों को रोजगार उपलब्‍ध करवाती होगी, तो हमारे राज्य में हिंदी भाषी लोग पानी पूरी बेचने का काम क्‍यों करते हैं? हमारे यहां सरकारी नौकरी किसको मिलती है?”

इसी को कहते हैं चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए। परंतु उल्टी गंगा बहाने की यह नीति डीएमके सरकार में कोई नई बात नहीं है। जब केंद्र सरकार ने बोर्ड परीक्षा के नंबरों के ऊपर वास्तविक योग्यता को वरीयता देने के लिए CUET एग्जाम को बढ़ावा देने के लिए पैरवी की तो तमिलनाडु ने इसी के विरुद्ध सदन में प्रस्ताव पारित करवा दिया ताकि सत्ता और विद्यार्थियों पर उनका एकाधिकार छूटने न पाए।

परंतु अब इसी तमिल उद्योग में परिवर्तन की लहर बहनी प्रारंभ हो गई और ये लहर स्वतंत्र फ़िल्मकारों ने प्रारंभ की है। एक ओर लोकेश कनागराज जैसे फिल्मकार भी हैं जो ‘कैथी’ और ‘विक्रम’ में मनोरंजन के साथ एक बड़ा ही गहरा संदेश दे देते हैं, जो बड़े ही कम लोगों को समझ आता है। ऐसे कुछ अन्य फिल्मकार हैं जो ‘राटचासन’, ‘रुद्र तांडवम’ के माध्यम से अपना अलग आधार स्थापित कर रहे हैं।

चियान विक्रम का बृहदेश्वर मंदिर पर बयान

अब वहीं ‘पोन्नियिन सेल्वन’  के एक प्रोमोशनल कार्यक्रम में जनता को संबोधित करते समय चियान विक्रम तंजावुर के विश्व प्रसिद्ध भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर के बारे में बात की। इस साक्षात्कार के अनुसार, “किसी ने बड़ा सही बोला कि हां उधर तो इमारत हैं, उधर तो ऐसे भवन जो सीधे खड़े भी नहीं हैं, पर हमारे भवन तो विद्यमान हैं और वे 6 भूकंप झेल चुके हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि जिस पद्वति से उन्हें बनाया गया है, उसमें तब न कोई प्लास्टर था, न सहायता के लिए कोई क्रेन अथवा बुलडोज़र। असल में उनकी एक बाहरी दीवार थी, फिर एक कॉरिडोर था और फिर एक ढांचा था, जो काफी ऊंचा था, जिसके कारण वह इतनी आपदाएं झेलने में सक्षम था। इस सम्राट ने 5000 बांध अपने समय में बनाए एवं अपने समय में जल प्रबंधन मंत्रालय भी बनाया।”

परंतु वे इतने पर नहीं रुके। उन्होंने आगे ये भी कहा, “ये सब 9वीं शताब्दी में हो रहा था जब उस समय हमारे नौसेना का प्रभुत्व समूचे जगत में व्याप्त था और अमेरिका का अस्तित्व भी नहीं था। इंग्लैंड को बड़ा मानते हैं, पर उसपर तो वाईकिंग्स ने चढ़ाई कर रखी थी, और यूरोप तो इस समय डार्क एज में था, तो आपको नहीं लगता हमें अपने इतिहास का उत्सव मनाना चाहिए?”

 

अब बताइए ये आपने अंतिम बार तमिल फिल्म उद्योग में कब सुना था? ये कभी आप बॉलीवुड के मुख से सुनेंगे? कभी आप किसी बॉलीवुड एक्टर को गर्व से बोलते सुनेंगे “मैं रणबीर कपूर, प्रयागराज से” इतना बोलने पर कब्ज हो जाएगा, खून की उल्टियां करने लगेंगे। एक बार को दुलकर सलमान बोल देगा कि मैं भाग्यनगर आऊंगा, परंतु बॉलीवुड और सनातन संस्कृति का सम्मान करें, न बाबा न! क्या मतलब दुलकर सलमान ने सच में ‘सीता रामम’ में सत्य में हैदराबाद को भाग्यनगर के रूप में संबोधित किया था?

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वैसे भी उर्दू की वास्तविकता क्या है, यह हैप्पी भाग जाएगी’ के एक संवाद से बेहतर कोई नहीं समझा सकता। या तो भूलवश या जानबूझकर परंतु एक दृश्य ऐसा आता है, जहां फिल्म का अभिनेता शराब के नशे में धुत होकर बताता है कि उर्दू कितनी द्विअर्थी बोली है जो दिखाती कुछ और है और वास्तव में होती कुछ और है। फिल्म में संवाद था “पाजी, ये उर्दू न बड़ी डेडली लैंग्वेज है, कोई आम सी चीज़ होनी है, उर्दू में लगदी है किन्नी बड़ी तोप है। पहले मुझे लगता था कोई खास चीज़ होती है वो तशरीफ़। जब पता चला तो हंसते-हंसते…. l” निस्संदेह, फिल्म में पाकिस्तानियों का जबरदस्त महिमामंडन हुआ, परंतु उस एक क्षण के लिए अनजाने में सही, परंतु सत्य सामने आ ही गया।

बॉलीवुड और सनातन संस्कृति का उतना ही नाता है जितना पाकिस्तान का पंथनिरपेक्षता से। ऐसे में यदि एक तमिल फिल्म को यह कार्य सुनिश्चित करना पड़े तो यह हिन्दी फिल्म उद्योग के लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने योग्य स्थिति है और समय अब गंभीर पुनरावलोकन का है।

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