“36 कौम” से गुर्जर समाज के नेता तक सचिन पायलट का सिमटता जा रहा है आधार

सचिन पायलट के वो दिन लदे जब शेर की भांति वो दहाड़ा करते थे

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सत्य ही कहा गया है कि व्यक्ति अपने कर्मों का फल स्वयं ही भोगता है, उसी तरह सचिन पायलट भी अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं। 2020 में हाई-वोल्टेज़ ड्रामा हुआ, पायलट बागी हुए, उपमुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद भी हाथ से गया लेकिन पायलट ने उस समय का सदुपयोग करने के बजाय कांग्रेस आलाकमान के समक्ष सरेंडर कर दिया। परिणामस्वरुप एक विधायक होने के अलावा पायलट पर आज राजस्थान की राजनीति में अपना कद दिखाने के लिए कुछ नहीं बचा है। यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के खिलाफ खड़े न हो पाने के बाद अब सचिन पायलट के समर्थकों का आधार सिकुड़ता जा रहा है। जिन सचिन पायलट को अब तक राज्य के राजनीतिक गलियारों में 36 कौमों का नेता कहा जाता था आज वो अपने मूल वोट बैंक तक ही सिमट कर रह गए हैं ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है।

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सचिन पायलट किस समाज के नेता हैं?

दरअसल, हाल ही में कांग्रेस नेता सचिन पायलट के जश्न से जयपुर में महोत्सव जैसा माहौल बना रहा। उत्सव की पूर्व संध्या से ही उनके समर्थकों ने उन्हें राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखने के लिए ताकत झोंक दी। फिर क्या पोस्टर-होर्डिंग से पटी पड़ी दीवारें और क्या माहौल जिससे शक्ति-प्रदर्शन करने और सचिन पायलट के जनाधार को दर्शाने का प्रयास किया गया। निस्संदेह, जमकर ताकत झोंक दी गयी लेकिन इन कोशिशों ने उन्हें 36 कौमों का नेता नहीं, मात्र गुर्जरों का नेता दर्शाया ऐसा कहा जाने लगा है। ज्ञात हो कि सचिन पायलट गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जिसका राज्य की राजनीति में लगभग 11 परसेंट मत प्रतिशत है।

पार्टी समर्थकों की मानें तो कांग्रेस खेमा गुर्जर समुदाय के समर्थन को बरकरार रखना चाहता है, जिसे उसने बीते विधानसभा चुनावों में सचिन पायलट के नाम से हासिल किया था। पायलट समर्थकों का मानना है कि समुदाय ने 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस को वोट दिया था, जब वह राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी (आरपीसीसी) के अध्यक्ष के रूप में पार्टी के चुनावी अभियान का नेतृत्व कर रहे थे। हाल ही में गुर्जर समुदाय को संबोधित करते हुए, पायलट के प्रशंसक और वफादार नेताओं में से एक वेद प्रकाश सोलंकी ने कहा कि “वह अर्थात गुर्जर समाज किसी पार्टी के साथ नहीं बल्कि सचिन पायलट के साथ थे। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने सचिन पायलट के बहुमत समर्थकों के साथ चुनाव जीता था।

इस बात को दरकिनार करना मूर्खता ही होगी कि राजस्थान के गुर्जर समुदाय में मतदाताओं का काफी हिस्सा है। इस समुदाय में राज्य की आबादी का बड़ा हिस्सा है जो इसे लगभग 50 विधानसभा और 7 लोकसभा क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका में प्रस्तुत करता है। जाहिर है, सचिन पायलट राज्य में एक बेहद लोकप्रिय राजनेता हैं, खासकर दो प्रमुख जातियों- गुर्जर (जिससे वह संबंधित हैं) और दूसरा मीना समुदाय।

टीएफआई की पूर्व में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार, सचिन पायलट को इन दोनों जातियों के बीच दुश्मनी और द्वंद्व को शांत करने के लिए जाना जाता है। उन्होंने इन दोनों समुदायों के बीच मतभेदों को पाट दिया और उन्हें एकसाथ कांग्रेस के समर्थन में ले आए, जिससे पार्टी को चुनाव जीतने में मदद मिली।

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2018 से ही कुंठा में हैं सचिन के समर्थक

इसके बाद 2018 के राज्य चुनावों के दौरान, कांग्रेस पार्टी ने सामने योद्धा के रूप में सचिन पायलट के साथ चुनाव लड़ा जो अंततः एक सफल रणनीति साबित हुई थी। कांग्रेस चुनाव जीती और कई हारों के बीच यह बड़ी जीत बनकर सामने आयी। हालांकि, इसके परिणामस्वरूप राजस्थान के मतदाताओं के साथ विश्वासघात हुआ जो अपने नेता के रूप में पायलट की उम्मीद कर रहे थे। समर्थक इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि यदि उनके नेता अर्थात सचिन पायलट के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया है तो उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा लेकिन हुआ इसके बिलकुल उलट। अशोक गहलोत को 10 जनपथ का आशीर्वाद हासिल था तो उन्हें बनाया गया सीएम और पायलट बने डिप्टी।

कुछ समय तक पायलट खून का घूंट पीते गए पर एक समय आया जब राजस्थान की राजनीति एक विस्फोटक स्थिति में परिवर्तित हो गयी। 2020 में बगावत हुई, पायलट अपने समर्थक विधायकों को लेकर रिज़ॉटे पॉलिटिक्स के ध्वजवाहक बन गये। उनके पास अवसर था कि वो राजस्थान की राजनीति के एकनाथ शिंदे बन जायें पर वो इसकी हिम्मत नहीं जुटा पाए और परिणामस्वरूप पायलट न माया मिली न राम। अपने खेमे के विधायक भी छिटक गये, डिप्टी सीएम और राज्य कांग्रेस इकाई के मुखिया का पद भी हाथ से गया और एक लांछन यह और लगा गया कि पायलट पार्टी विरोधी हैं। इसलिए, सचिन पायलट के अपने समर्थक की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाने के कारण, उनका वोट बैंक हर समाज के नेता से एक गुर्जर नेता के रूप में सिकुड़ गया है। ऐसे में जितना कमज़ोर यह पायलट को करेगी उससे कहीं अधिक विकट और विकराल प्रभाव कांग्रेस पर पड़ेगा क्योंकि अब तक तो सचिन पायलट ही उसके लिए राज्य की राजनीति में तुरुप का इक्का थे जिसे स्वयं पार्टी ने बर्बाद कर दिया।

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