G7, रूस और ईराक, तेल को लेकर भारत के समक्ष प्रार्थना क्यों कर रहे हैं?

तेल के खेल का अब सबसे बड़ा खिलाड़ी है भारत और यह तो बस शुरुआत है!

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भारत जिस गति से आज विकास की राह पर अग्रसर है उसे रोक पाने की हिम्मत अब किसी देश में नहीं रह गयी है। एक समय था जब कई देश भारत को आंखें दिखाते थे वहीं आज ये देश अनुरोध की मुद्रा में आ चुके हैं जिसका नया उदाहरण हाल ही में देखने को मिला है। नया प्रकरण G7 देश द्वारा रूसी तेल के ऑयल कैप को लेकर देखने को मिला। जिसके बाद भारत के सामने केवल और केवल लाभ का ही विक्लप है।

पश्चिमी देशों को लग रहे हैं एक के बाद एक झटके

दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनियाभर का प्रतिबंध झेल रहे रूस की आर्थिक स्थिति चरमरा गयी थी किंतु अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के क्रम में उसने अपने सहयोगी देशों को कम कीमतों में तेल देना प्रारम्भ कर दिया। परिणामस्वरूप भारत ने रूस से बढ़चढ़ कर तेल ख़रीद जिससे रूस भारत को तेल सप्लाई करने वाले देशों में प्रथम स्थान पर पहुंच गया। अब इससे पश्चिमी देशों के पेट में दर्द उठने लगा लेकिन ये तो मात्र प्रारंभ था क्योंकि इन देशों को दूसरा झटका तब लगा जब रूस की आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी। इन सब से बौखलाए पश्चिमी देशों के सो कॉल्ड ताक़तवर समूह G7 (कनाडा, अमरीका, फ़्रान्स, जर्मनी,इटली,जापान,यूके एवं यूरोपीयन यूनीयन) ने अब रूसी तेल के संदर्भ में ऑयल कैप लगाने की बात कही है, जिसके अंतर्गत उन्होंने बाकी देशों से अनुरोध किया है कि वह एक तय मूल्य से कम में रूसी तेल का क्रय न करें। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन देशों ने भारत और चीन से इस विषय पर विशेष अनुरोध किया है।

मीडिया रिपोर्टों की माने तो तेल कैप योजना उसी समय लागू की जाएगी जब यूरोपीय संघ का प्रतिबंध प्रभावी होगा। दो मूल्य सीमाएं होंगी – एक कच्चे तेल के लिए और दूसरी परिष्कृत उत्पादों के लिए। कच्चे तेल की सीमा 5 दिसंबर, 2022 से लागू होगी जबकि परिष्कृत उत्पादों पर 5 फरवरी, 2023 से लागू होगा। हालांकि अभी इस ऑयल कैपिंग का ढांचा क्या होगा, इसका आधार क्या होगा, अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पाया है।

एक तरफ G7 देश जहां भारत से रूसी तेल को तय कीमत से कम में नहीं खरीदने के लिए अनुरोध कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ रूस ने भारत से कहा है कि यदि भारत इन देशों की बात नहीं मानता है तो वह भारत को और भी डिस्काउंट रेट पर तेल देगा। फिर क्या था इस बात से इन G7 देशों के पेट में दर्द और बढ़ गया। इसी क्रम में ईराक की भी बात किए चलते हैं, याद करिए एक समय हुआ करता था जब भारत में चलने वाली ट्रकों के ईंधन टैंक पर ”इराक़ का पानी” लिखा हुआ रहता था।

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भारत को तेल बेचने में कभी सबसे आगे था इराक

एक समय इराक़ भारत को तेल बेचने वालों की सूची में शीर्ष पर बना रहता था किंतु रूस द्वारा सस्ते दाम पर तेल दिए जाने के प्रस्ताव के बाद भारत सरकार ने रूस से भारी मात्रा में तेल लेना शुरू कर दिया, जिससे इराक़ उस सूची में शीर्ष से हट गया। मई में रूसी कच्चा तेल भारत के लिए 16 डॉलर प्रति बैरल सस्ता था जबकि औसत भारतीय कच्चे तेल की आयात बास्केट कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल थी। जून में इस छूट को घटाकर 14 डॉलर प्रति बैरल कर दिया गया था, जब भारतीय क्रूड बास्केट का औसत 116 डॉलर प्रति बैरल था। अधिकारियों ने कहा कि अगस्त तक रूसी कच्चे तेल की कीमत औसत कच्चे आयात बास्केट मूल्य से 6 डॉलर कम है।

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अतः भारत जैसा बाज़ार अपने हाथ से जाता देख इराक़ ने भी भारत को तेल की क़ीमतों में डिस्काउंट देने का प्रस्ताव रखा, किंतु भारत इस पर विचार विमर्श करता इससे पहले ही रूस ने भारत को और अधिक डिस्काउंट रेट की पेशकश कर दी, अत: भारत तेल ख़रीदने को लेकर रूस के पाले में चला गया। आपको बताते चले कि जहां विश्व बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत $90.77 प्रति बैरल है तो वहीं रूस भारत को 30% तक डिस्काउंट दे रहा है। G7 के द्वारा उठाया गया यह कदम उनके हितों की पूर्ति करे या ना करे किंतु यह भारत को अधिक लाभ पहुंचा रहा है, जितनी भी दशाएं बन रही हैं वह सब भारत को अल्टीमेट विनर बना रही हैं।

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