ग्रीन ट्रिब्यूनल ने ‘ग्रीन लविंग’ ममता पर एंटी ग्रीन चीजों के कारण लगाया जुर्माना

"हरे रंग" के चक्कर में लाल पीली हो गई ममता!

Mamata and NGT

Source- TFI

हरे रंग से ममता बनर्जी को कुछ अधिक प्रेम है। ये पार्टी के प्रतीक चिन्ह से लेकर उनके आदर्शों एवं उनके विचारों तक में स्पष्ट झलकता है। शायद वो देवदास का ‘हरा रंग डाला’ लूप पर भी सुनती हों, कौन जाने। ममता बनर्जी को प्रकृति से बड़ा प्रेम है और हरे रंग से तो और भी अधिक। इसी बीच पुरस्कार स्वरूप भारत की नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उन्हें एक बहुत बड़ा पुरस्कार दिया है- 3500 करोड़ के जुर्माने का पुरस्कार! इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे हरे रंग से घनघोर प्रेम के कारण ममता बनर्जी को NGT ने ये अनोखा प्रसाद दिया है।

दरअसल, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पश्चिम बंगाल सरकार के विरुद्ध बड़ी कार्रवाई करते हुए यह जुर्माना ठोका है। 3500 करोड़ रुपए का यह बड़ा जुर्माना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले अपशिष्ट का सही तरीके से प्रबंधन नहीं करने के लिए लगाया गया है। एनजीटी के अनुसार, प. बंगाल सरकार सीवेज और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं की स्थापना को प्राथमिकता देती नहीं दिखाई दी, जबकि राज्य सरकार द्वारा अपने वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में शहरी विकास और नगरपालिका से जुड़े मामलों पर 12,818.99 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान किया गया है। परंतु बंगाल सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए। यही नहीं, न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल के नेतृत्व वाली पीठ ने छह महीने के अंदर उपचारात्मक कदम उठाए जाने के निर्देश भी दिए हैं।

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एनजीटी ने कहा कि बंगाल सरकार की लापरवाही के कारण पर्यावरण को जो नुकसान हुआ, उसे ध्यान में रखकर जल्द अनुपालन सुनिश्चित करना आवश्यक है। वही अब तक जो उल्लंघन हुआ उसके लिए मुआवजे का भुगतान किया जाना चाहिए। जानकारी के अनुसार बंगाल सरकार को दो महीने के भीतर 3500 करोड़ के मुआवजे की रकम भरनी पड़ सकती हैं। हालांकि, जुर्माने की इस धनराशि का उपयोग बंगाल में ही कूड़ा प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए किया जाएगा। वहीं, एनजीटी द्वारा चेताया भी गया कि अगर आगे भी उल्लंघन ऐसे ही जारी रहा तो फिर से जुर्माना लगाया जाएगा।

ध्यान देने वाली बात है कि यह वही ममता बनर्जी हैं, जो हरित दिवस के अवसर पर बंगाल में पेड़ लगाने की अपील करती हैं। जो कभी पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने के लिए 10 किमी जॉगिंग तक करती हैं। दिवाली पर लोगों को ज्ञान देते हुए हरित पटाखे जलाने को कहती हैं। उन्हीं ममता बनर्जी के शासन वाले प. बंगाल में पर्यावरण को ऐसी हानि पहुंचाई जा रही है कि एनजीटी द्वारा इतना बड़ा जुर्माना तक लगाने की नौबत आ गई। यानी ममता बनर्जी राज्य के विकास हेतु बिल्कुल भी काम नहीं कर रही हैं!

ममता बनर्जी की सरकार द्वारा पर्यायवरण संरक्षण के लिए किए जाने वाले वादों की पोल खोलते हुए NGT ने बताया कि बंगाल के शहरी क्षेत्रों में 2,758 मिलियन लीटर सीवेज प्रतिदिन पैदा होता है और इसमें से 1505.85 एमएलडी की शोधन क्षमता है। इस दौरान महज 1268 एमएलडी सीवेज का ट्रीटमेंट किया जाता है और 1490 एमएलडी सीवेज बिना ट्रीटमेंट के रह जाता है। बंगाल एनजीटी पीठ ने ममता सरकार को आइना दिखाते हुए कहा कि स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर किसी भी कीमत पर लापरवाही नहीं बरती जा सकती और इसे लंबे समय के लिए टाला नहीं जा सकता। प्रदूषण मुक्त वातावरण प्रदान करना राज्य और स्थानीय निकायों की संवैधानिक जिम्मेदारी है। धन की कमी का हवाला देकर इस तरह के अधिकार से इनकार नहीं किया जा सकता है।

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केवल इतना ही नहीं, बंगाल में पर्यावरण की हालत इतनी खराब होती चली जा रही है कि कोलकाता में लोग दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। कोलकाता में वायु प्रदूषण लगातार खतरनाक रूप लेता जा रहा है। हाल ही एक रिपोर्ट में बताया गया कि कोलकाता में वर्ष 2019 के दौरान प्रति एक लाख की आबादी पर 99 लोगों की मौत पीएम 2.5 प्रदूषण के चलते हुई। कोलकाता का वायु प्रदूषण खास तौर पर बुजुर्गों, बच्चों और गरीबों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहा है। वर्ष 2018 में कोलकाता और हावड़ा में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने में विफल रहने के कारण पश्चिम बंगाल सरकार पर 5 करोड़ का जुर्माना भी लगाया जा चुका है। बार बार जुर्माने लगने के बाद भी ममता सरकार पर्यावरण के मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रही और लगातार लापरवाही बरतती नजर आ रही हैं और अभी तो हमने इनके विशेष आयुध निर्माण पर चर्चा भी नहीं की है।

इसलिए ममता सरकार को सबक सिखाने हेतु एनजीटी ने बंगाल सरकार पर 3500 करोड़ का बड़ा जुर्माना ठोका है। पहले ही ममता सरकार बंगाल में कर्ज के बढ़ते बोझ के तले बुरी तरह से दबी हुई है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजटीय आवंटन और प्रस्तावों को पूरा करने से राज्य के कर्ज का बोझ लगभग 6 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ जाएगा। ममता सरकार के लिए राज्य को इस कर्ज के बोझ से निकालना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। ऐसे में अगर सरकार की लापरवाहियों के कारण यूं ही भारी भरकम जुर्माने लगते रहें तो ऐसे में बंगाल किस ओर जायेगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

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