अकेले DMK ने कैसे दक्षिण भारत में हिंदू विरोध का बीज बोया

मुस्लिम लीग से भी आगे निकल गई DMK

द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम

Source- TFI

ये भारत है, बड़ा ही विचित्र स्थान है! यहां कभी योद्धाओं की जय जयकार होती थी एवं ऋषि मुनियों के ब्रह्मज्ञान को शाश्वत सत्य माना जाता था परंतु आज स्थिति दूसरी है। आज इनका सम्मान तो छोड़िए, इन्हें दो मीठे बोल बोल दें, वही पर्याप्त है क्योंकि यहां द्रोहियों को मालाएं पहनाई जाती है, उन्हें सत्ता में बिठाया जाता है और जो भारत को तोड़ने की बातें करते हैं, उन्हें वर्षों तक अनर्गल प्रलाप करने और विष उगलने के लिए सार्वजनिक मंच भी ससम्मान प्रदान किया जाता है। चाहिए तो करुणानिधि के ‘संतानों’ से पूछ लीजिए! इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे एक पार्टी ने भारत में अलगाववाद की विषबेल को ऐसे बढ़ावा दिया, जिसके लिए उसकी जितनी निंदा की जाए अपर्याप्त होगी। यह कथा है उस द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम की, जिसके विषैले राजनीति के कारण आज भी सम्पूर्ण भारत एक नहीं है।

17 सितंबर, ये देश के इतिहास और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में बड़ा महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन विश्वकर्मा पूजा होती है और सृष्टि के अभियंता विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त हमारे देश के प्रभावशाली नेताओं में से एक और देश के पीएम नरेंद्र दामोदरदास मोदी का जन्म भी इसी दिन हुआ था। परंतु इसी दिन, एक निकृष्ट, निर्लज्ज और घटिया राजनीतिक पार्टी की स्थापना हुई थी, जो आज भी भारत के राजनीति पर कलंक समान है। इस पार्टी का नाम है द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम और संयोग तो देखिए, ये उसी दिन स्थापित हुई, जिस दिन भारत के सबसे बड़े कलंक में से एक इरोड़ वेंकट नायकर रामासामी पेरियार ने इस धरती पर जन्म लिया था। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि भारत और भारतीय संस्कृति, विशेषकर सनातन धर्म से अपनी घृणा में पेरियार ने तमिलनाडु को कैसे नर्क में परिवर्तित किया।

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पेरियार ने मुस्लिम लीग का किया था समर्थन

परंतु क्या आपको पता है कि द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम पार्टी की स्थापना कैसे हुई? 17 सितंबर 1949, यह वो दिन था जब द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम की स्थापना हुई थी। कहने को तमिल नेता सी एन अन्नादुरई अपने आराध्य पेरियार के दूसरे विवाह से रुष्ट हुए थे परंतु उसके बारे में चर्चा फिर कभी। परंतु पेरियार के जस्टिस पार्टी और द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम में उतना ही अंतर था, जितना ख्वाजा सलीमुल्लाह के मुस्लिम लीग और जिन्ना के मुस्लिम लीग में था। वैसे मुस्लिम लीग से याद आया, जो डीएमके के वंशज आज दक्षिणपंथियों और अन्य भारतीयों को यह कहकर अपमानित करते हैं कि सावरकर ने तो अंग्रेज़ों से माफी मांगी थी, सरदार पटेल ने दिया ही क्या है, इनके आराध्य कौन से बड़े देशभक्त थे?

लेकिन जब संसार आर्थिक मंदी से जूझ रहा था, तो सोचिए पेरियार रामास्वामी क्या कर रहे थे? सोचिए सोचिए? महोदय सोवियत रूस की यात्रा पर निकल पड़े थे, क्रांति के लिए नहीं, ऐश करने। तत्पश्चात उन्होंने जस्टिस पार्टी का नेतृत्व संभाल, जिसका प्रमुख उद्देश्य था ब्राह्मणों का विरोध। यह तो कुछ भी नहीं है। वीर सावरकर तो फर्जी बदनाम किए गए हैं, विभाजन के सर्वप्रथम समर्थकों में से एक तो पेरियार रामास्वामी भी थे। लेकिन जिस व्यक्ति को देश निकाला देना चाहिए, उसे न केवल सम्मानित किया जाता है अपितु आज भी उसे सामाजिक एकता का प्रतीक चिह्न माना जाता है।

1940 के दशक में इसी ई वी पेरियार रामासामी ने एक अलग पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग के दावे का समर्थन किया था और बदले में उसके समर्थन की अपेक्षा की थी। मुस्लिम लीग के मुख्य नेता जिन्ना ने मद्रास के गवर्नर के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि भारत को चार क्षेत्रों में विभाजित किया जाना चाहिए: द्रविड़स्तान , हिंदुस्तान, बंगिस्तान और पाकिस्तान। जिन्ना ने कहा, “मेरे पास हर सहानुभूति है और सभी मदद करेंगे और आप द्रविड़स्तान की स्थापना करेंगे, जहां 7 प्रतिशत मुस्लिम आबादी अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाएगी और आपके साथ सुरक्षा, न्याय और निष्पक्षता की तर्ज पर रहेगी।”

1962 युद्ध में DMK ने किया था चीन का समर्थन

ध्यान देने वाली बात है कि 1937 में राजाजी द्वारा तमिलनाडु में आरोपित हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का पेरियार ने घोर विरोध किया और बहुत लोकप्रिय हुए। उन्होंने अपने को सत्ता की राजनीति से अलग रखा तथा आजीवन दलितों तथा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए प्रयास किया। सुधार क्या किया, तमिलनाडु में हिन्दी विरोध और धर्मांतरण की जो विषबेल फैली, उसने शनै शनै सम्पूर्ण दक्षिण भारत को ही घेर लिया। यह तो कुछ भी नहीं है, जब 1962 में भारत चीन का युद्ध हुआ तो इसी डीएमके ने प्रारंभ में हिन्दी विरोध के नाम पर चीन को समर्थन देने तक का दुस्साहस किया, वो अलग बात थी कि बाद में बढ़ते विरोध के कारण चुपके से 1963 में पाला बदल लिया।

डीएमके की विचारधारा कितनी विषैली है, इसका परिचय हमारे थलाईवा यानी रजनीकान्त से बेहतर कोई नहीं दे सकता। वर्ष 2020 के प्रारंभ में रजनीकांत ने हिन्दू विरोधी अलगाववादी पेरियार की धज्जियां उड़ाते हुए कहा था कि “1971 में सेलेम में पेरियार ने एक रैली निकाली थी, जिसमें उन्होंने न केवल भगवान श्री रामचन्द्र और माता सीता के मूर्तियों के वस्त्र उतारे अपितु उन्हें चप्पलों की माला भी पहनाई परंतु किसी भी अहम अखबार ने उसे प्रकाशित नहीं किया।” इस बयान के कारण पेरियार के अंध समर्थकों में आक्रोश फैल गया और उन्होंने रजनीकांत के घर का घेराव करने की ठान ली। उन्होंने रजनीकान्त से अविलंब पेरियार के विषय में क्षमा मांगने को कहा था।

लेकिन रजनीकांत ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थी। उन्होंने पेरियार के चाटुकारों को ठेंगा दिखाते हुए कहा, “1971 में क्या हुआ, उसपर मैंने क्या बोला, इस पर वाद विवाद चल रहा है। मैंने कुछ बढ़ा चढ़ाकर नहीं कहा। लोग भले आपको भ्रमित करने का प्रयास करें पर मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है। मैं इसके लिए तो माफी नहीं मांगूंगा। मेरे पास मैगज़ीन भी हैं, जिससे यह सिद्ध हो जाएगा कि मैं जो कुछ भी बोल रहा हूं, वो सब सत्य है। मैं वही बोल रहा हूं जो मैंने देखा”। ऐसे में आज DMK तमिलनाडु के साथ साथ भारत के लिए भी शर्म का विषय है। PFI की भांति इस समस्या का भी समूल विनाश करना ही होगा अन्यथा जो विषबेल ये फैला कर जाएगी, उसे नष्ट करने में आने वाले पीढ़ियों की कमर टूट जाएगी।

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