हैदराबाद मुक्ति दिवस : ‘सरदार’ अमित भाई लगाएंगे ‘निज़ाम’ ओवैसी के साम्राज्य में आग!

ओवैसी ऐसे ही नहीं फड़फड़ा रहे हैं, कारण गंभीर है!

Amit Shah and Owaisi

Source- TFI

कहने को भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ था परंतु ये अधूरा सत्य है। हम 565 रियासतों में बंटे हुए एक खंडित राष्ट्र थे, जिन्हें एकीकृत करने का बेड़ा सरदार वल्लभभाई पटेल ने उठाई थी और इस महायज्ञ की पूर्णाहुति तब हुई, जब 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद प्रांत निज़ाम शाही के चंगुल से मुक्त हुआ और भारत न केवल रजाकारों के आतंक से मुक्त हुआ, अपितु सम्पूर्ण इस्लामीकरण के भय पर भी पूर्ण विराम लग गया। अब इसी उपलब्धि का भव्य उत्सव मनाया जाएगा, जो निस्संदेह निजाम शाही के अवशेषों में त्राहिमाम मचाने के लिए पर्याप्त है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे हैदराबाद मुक्ति दिवस के माध्यम से सरदार पटेल के आदर्शों को अमित शाह आत्मसात करने जा रहे हैं और कैसे इस निर्णय मात्र से ही असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोग तिलमिला उठे हैं।

दरअसल, केंद्र की भाजपा सरकार हैदराबाद को निजाम की रियासत से आजादी के उपलक्ष्य में ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’ का आयोजन करने वाली है। 17 सितंबर से शुरू होकर अगले एक वर्ष तक चलने वाले इस उत्सव को भारत सरकार ने मंजूरी दी है क्योंकि अगले वर्ष हैदराबाद के भारत में विलय एवं भारत के सुप्रसिद्ध ‘ऑपरेशन पोलो’ को 75 वर्ष पूरे होंगे। ध्यान देने वाली बात है कि 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद को निजाम के कब्जे से मुक्त कराया गया था, जिसकी नींव 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना द्वारा नालदुर्ग के किले एवं तुलजापुर जिले पर धावा बोलकर प्रारंभ किया गया। इस भव्य कार्यक्रम को हैदराबाद के परेड ग्राउंड में आयोजित किया जाएगा और इसका उद्घाटन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह करेंगे। संस्कृति मंत्रालय ने इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया है।

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समझिए पूरा मामला

इस स्मृति उत्सव पर उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित किया जाएगा, जिन्होंने इसकी मुक्ति और विलय में अपना बलिदान दिया। अंग्रेजों से भारत की आजादी के बाद हैदराबाद के लोगों ने रियासत का भारत में विलय करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन किया था। उसके बाद भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के ऑपरेशन पोलो के तहत इसका भारत में विलय हुआ, जिसमें दुर्भाग्यवश भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अड़चन डालने का प्रयास भी किया था।

तब के हैदराबाद रियासत में आज का पूरा तेलंगाना, महाराष्ट्र का वर्तमान मराठवाड़ा क्षेत्र एवं उत्तर कर्नाटक के कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगिर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर जिले शामिल थे। आश्चर्य की बात यह थी कि यहां बहुभाषी या तो तेलुगु थे या मराठी और कुछ हद तक कन्नड़ या हिन्दी को भी स्वीकृति दी जाती थी परंतु यहां की राजभाषा थी उर्दू, जिसे सम्पूर्ण प्रांत के 20 प्रतिशत लोग भी नहीं बोलते थे। केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने शनिवार (3 सितंबर 2022) को कहा कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से अनुरोध किया गया है कि वे अपने राज्यों में स्मृति दिवस मनाने के लिए उचित कार्यक्रम आयोजित करें।

अपने पत्र में रेड्डी ने यह भी कहा कि जब 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ तो 562 रियासतों ने भारतीय संघ में विलय की घोषणा की। तत्कालीन हैदराबाद राज्य ने इसका विरोध किया। 17 सितंबर 1948 को तत्कालीन निजाम मीर उस्मान अली खान के शासन की क्रूरता और अत्याचार से लोगों को आजादी मिली। तो इसका ओवैसी से क्या लेना देना? AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इस कार्यक्रम का नाम बदलने का आग्रह किया है। उनके अनुसार इसे हैदराबाद मुक्ति दिवस के बजाय राष्ट्रीय एकीकरण दिवस के रूप में मनाया जाए। ओवैसी ने कहा, “उपनिवेशवाद, सामंतवाद और निरंकुशता के खिलाफ तत्कालीन हैदराबाद रियासत के लोगों का संघर्ष राष्ट्रीय एकीकरण का प्रतीक है, न कि केवल जमीन के एक टुकड़े की ‘मुक्ति’ का मामला है।”

इस कारण से है ओवैसी को आपत्ति

हालांकि, ओवैसे के इस कथन का असल कारण तो कुछ और हैं। असल में हैदराबाद मुक्ति दिवस के विरुद्ध ओवैसी की आपत्ति इसलिए भी है क्योंकि इनके पुरखों ने हैदराबाद में खूब बवाल मचाया था! स्मरण है सैयद कासिम रिजवी? हां वही, जो हैदराबाद की सड़कें हिंदुओं के रक्त से लाल करने की धमकियां देते थे और जो रजाकार नाम के हथियारबंद हिंसक संगठन के सरगना भी थे। जिस AIMIM के पुरोधा आज ये बनते हैं, उसी AIMIM की नींव इस व्यक्ति ने रहीम बहादुर जंग के साथ रखी थी। जब 1957 में रिहाई के पश्चात रिजवी पाकिस्तान जाने के लिए निकल रहे थे तो इन्हीं ओवैसी के दादाजी अब्दुल वहीद ओवैसी ने पार्टी की कमान संभालने का निर्णय लिया और आज भी इस बात को खुलेआम स्वीकारने में इन लोगों की हवाइयां उड़ती है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि एक ओर जहां सरदार पटेल के आदर्शों को अमित शाह हैदराबाद में पूर्णत्या आत्मसात करने में जुटे हुए हैं तो वही इस निर्णय से असदुद्दीन ओवैसी से अब ‘न निगलते बन रहा है, न उगलते’ और उनकी भावना कहीं न कहीं कासिम रिजवी जैसी ही हो गई है।

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