Commercial Drones के लिए बहुत बड़ा बाजार है भारत, लेकिन दुख है कि कोई execution नहीं

ड्रोन के लिए बड़ा बाजार है भारत लेकिन पहले योजनाओं को कागजों से उतारकर वास्तविकता में परिवर्तित करना होगा

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भारत न केवल विकास के क्रम में स्वयं को बेहतर बना रहा है अपितु नवीन तकनीक को लेकर भी उसकी महत्वाकांक्षाएं काफ़ी बड़ी हैं। वह जेनेटिक इंजिनीयरिंग, आर्टिफ़िशल इंटेलिजेन्स, स्पेस स्टेशन के साथ ही ड्रोन के क्षेत्र में भी पैर पसार रहा है, इसके मद्देनज़र स्विफ़्ट नामक ड्रोन का निर्माण कर रहा है जिसका सफल परीक्षण अभी हाल में ही किया गया। हालांकि इसका निर्माण सैन्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया गया है किंतु नागरिक उपयोग के लिए भी ड्रोन का निर्माण उसकी प्राथमिकताओं में शामिल है।

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के आंकड़े क्या बताते हैं

यदि बात करें हम भारत के बाज़ार की तो नागरिक उड्डयन मंत्रालय के आंकड़े इस क्षेत्र को लेकर संभावनाओं को नया आयाम देते हैं। मंत्रालय की तरफ से जारी किए आंकड़ों के अनुसार 2026 तक भारतीय ड्रोन बाज़ार का कुल टर्न ओवर ₹80 करोड़ से बढ़कर ₹1200-1500 करोड़ हो जाने की उम्मीद है। भारतीय ड्रोन बाज़ार के संदर्भ में यह आंकड़ें काफ़ी उत्साहित करने वाले हैं तो वहीं ड्रोन इंडस्ट्री इंसाइट रिपोर्ट के अनुसार भारतीय ड्रोन बाज़ार 2020-2026 के बीच 20.9% CAGR के साथ आगे बढ़ सकता है।

ड्रोन के बढ़ते बाज़ार को मद्देनज़र रखते हुए भारत भी इस अवसर को भुनाने की भरपूर तैयारी में जुट गया है तो वहीं वह घरेलू बाज़ार में भी खुद को एक अहम प्लेयर के रूप में देखता है जिसको ध्यान में रखते हुए उसने अपनी ड्रोन संबंधी नीतियों का निर्माण किया है ।

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हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नई दिल्ली में देश के सबसे बड़े ड्रोन महोत्सव, भारत ड्रोन महोत्सव 2022 का उद्घाटन किया गया जिसमें प्रमुख रूप से ड्रोन पायलट सर्टिफ़िकेट वर्चूअल अवार्ड, पैनलडिस्कशन उत्पाद लॉन्च, ड्रोन टैक्सी प्रोटोटाइप प्रमुख कार्यक्रम हुए। इसी क्रम में ड्रोन नियमों में ढील देते हुए मंत्रालय ने अनुमतियों एवं अनुमोदनों के लिए प्रपत्रों के भरने की संख्या को 25 से घटाकर 5 कर दी एवं पूर्व में जो शुल्क के प्रकार 75 थे उन्हें घटाकर 4 कर दिया गया है। इसके साथ ही अब ग्रीन ज़ोन में ड्रोन के संचालन के लिए किसी पर्मिट की आवश्यकता नहीं होगी। वहीं 500KG तक के पेलोड की अनुमति दी गयी है ताकि ड्रोन को मानव रहित उड़ान वाली टैक्सीयों के रूप में प्रयोग किया जा सके।

इसके अलावा मोदी सरकार ने ड्रोन एवं उसके घटकों के लिए तीन वर्षों में 120 करोड़ रुपये आवंटित करने के साथ ही PLI स्कीम को हरी झंडी दिखायी। बजट में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में स्किलिंग के माध्यम से ड्रोन को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया गया है। Drone as a service के लिए ड्रोन शक्ति की सुविधा हेतु स्टार्ट्अप्स को बढ़ावा दिया जाएगा।

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व्यापक क्षेत्रों में हो सकता है ड्रोन का उपयोग

इसमें कोई दो राय नहीं है की ड्रोन का उपयोग व्यापक क्षेत्रों में हो सकता है जिनमें प्रमुख क्षेत्र स्वास्थ्य, कृषि, खनन, दूरसंचार एवं परिवहन हैं, ऐसे पढ़ सुनकर सब अच्छा-अच्छा ही लगता है किंतु अगर हम वास्तविकता के धरातल पर उतरें तो हम पाएंगे कि वास्तविकता बिलकुल इससे इतर है।

सरकार द्वारा किए गए प्रयास मात्र अभी काग़ज़ों तक ही दिखायी पड़ते हैं जिसका साक्ष्य आज के समय के भारतीय ड्रोन बाज़ार की कुल नेटवर्थ चींख-चींख कर दे रही है। ड्रोन द्वारा ऑर्गन डिलिवरी, ड्रोन टैक्सी, ड्रोन डिलिव्री जैसी अवधारणाएं सुनने में जितनी अच्छी लगती है वास्तविकता में भारत के अंदर उनकी वास्तविकता उतनी ही निराश करने वाली है। सरकार के इतने पहल के बाद भी DGCA की तरफ़ से कोई स्पष्ट गाइड लाइन नहीं जारी की गयी है जिससे कंपनियां संशय वाली स्थिति में हैं और ऐसा होना इन योजनाओं को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिए बाधक बनी हुई है। इसके अलावा ड्रोन पायलट लाइसेन्स की अनिवार्यता एवं कमर्शियल ड्रोन निर्यात करने को लेकर सरकार द्वारा प्रतिबंध इनके विकास में बड़ा रोड़ा बनते जा रहे हैं। ड्रोन के उपयोग से होने वाले दुष्परिणाम भी इसके क्रियान्वयन में बाधक है।

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संक्षेप में अगर समझें तो कागज पर प्लान का खाका तो अच्छा खींचा गया है किंतु उसको वास्तविकता में बदलना अभी लंबी दौड़ है और इसके लिए तो तत्परता भी दिखानी होगी सरकार को और इस ड्रोन मार्केट को प्रमुखता से लेना होगा।

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