Jagadhatri Puja – History, Timings, and Q&A in Hindi

Jagadhatri Puja

जगद्धात्री पूजा

जगद्धात्री की पूजा (Maa Jagadhatri Puja) यूं तो देशभर की जाती हैं. यह पर्व कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष में मनाया जाता. दुर्गा मां की तरह जगद्धात्री देवी भी शेर की सवारी करती हैं. उनका रंग सूर्य की लालिमा की तरह होता है. माँ के चार हाथ होते हैं. जिनमें वह शंख, धनुष, तीर और चक्र धारण करती हैं. वह लाल रंग के वस्त्र धारण करती हैं.

जगद्धात्री की पूजा (Maa Jagadhatri Puja) का यह पर्व दुर्गा नवमी के एक माह के बाद मनाया जाता हैं. चन्दन नगर प्रान्त में इस पर्व की शुरुआत हुई थी. यह चार दिवसीय पर्व हैं जिसमे मेला सजता हैं एवम पुरे जोश के साथ भव्य रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता हैं.

कब होती है माँ जगद्धात्री की पूजा? (Maa Jagadhatri ki Puja Kab hoti hai?)

जगद्धात्री पूजा कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर दशमी तक मनाया जाता हैं.

History of Jagadhatri Puja in Hindi

जगद्धात्री पूजा का इतिहास- इस त्यौहार की शुरुवात प्रभु श्री रामकृष्ण की पत्नी शारदा देवी ने प्रभु श्री रामकृष्ण मिशन में की थी. वे भगवान् के पुनर्जन्म में बहुत विश्वास रखती थी. इस त्यौहार को माँ दुर्गा के पुनर्जन्म की ख़ुशी में मनाते है. महिषासुर के आतंक के कारण देवताओं का जीवन दूभर हो जाता है, जिस कारण वे माँ दुर्गा की शरण में जाते हैं.

लंबे युद्ध के बाद माता द्वारा महिषासुर का वध किया जाता हैं जिसके बाद देवताओं को स्वर्ग का आधिपत्य पुनः मिल जाता हैं जिससे देवताओं में घमंड के भाव आ जाते हैं और वे स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने लगते हैं मां जगद्धात्री को तंत्र साधना की देवी माना जाता है, इसलिए वह दुर्गा और काली की तरह शक्ति का प्रतीक हैं.

यक्ष ने वायु देव से कहा कि वे उनके लिए क्या कर सकते हैं. तब वायु देव ने अहंकार से कहा कि वे किसी भी चीजं को हवा में उड़ा सकते हैं

Questions related to Maa Jagadhatri Puja

Ques- हम जगधात्री पूजा क्यों मनाते हैं?

Ans- इस त्यौहार का शुरुवात श्री रामकृष्ण की पत्नी शारदा देवी ने प्रभु श्री रामकृष्ण मिशन में की थी. वे भगवन के पुर्नजन्म में बहुत विश्वास रखती थी इस त्यौहार को माँ दुर्गा के पुर्नजन्म की ख़ुशी में मानते है.

Ques- जगद्धात्री पूजा कब होती है?

Ans- जगद्धात्री पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को इनकी पूजा का विधान है.

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देवी के 9 रूप

शैलपुत्री- पर्वतराज हिमवान की पुत्री पार्वती को शैलपुत्री कहा जाता है. अपने पिछले जन्म में, वह प्रजापति दक्ष की बेटी के रूप में पैदा हुई थी. तब उनका नाम ‘सती’ था. उनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था. नवदुर्गा में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं.

ब्रह्मचारिणी- वह महादेवी के नवदुर्गा रूपों का दूसरा पहलू है और नवरात्रि के दूसरे दिन नवदुर्ग की नौ दिव्य रातें पूजा की जाती है. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं.

कूष्मांडा- मां कूष्मांडा में भी इसी प्रकार पूरे ब्रह्मांड में जीवन शक्ति की का संचार करती हैं. नवरात्रि के चौथे दिन उपासक का हरा रंग पहनना शुभ माना जाता है. मां के आशीर्वाद से आर्थिक स्थितियां मजबूत होती हैं. साथ ही घर से दरिद्रता दूर होती है.

स्कंदमाता- भगवान कार्तिकेय का दूसरा नाम स्कंद कुमार है. स्कंदमाता की पूजा करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है.

कात्यायनी- कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं.

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महागौरी- देवी महादेवी के नवदुर्गा पहलुओं में आठवां रूप है . नवरात्रि के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है. महागौरी की उपासना से मनपसंद जीवनसाथी व जल्द विवाह संपन्न होता है

कालरात्रि- कालरात्रि माता को काली और शुभंकरी भी कहा जाता है. कालरात्रि होने के कारण ऐसा विश्वास है कि ये अपने उपासकों को काल से भी बचाती हैं अर्थात् उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती. इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है.

चंद्रघंटा- माथे पर चंद्रमा की घंटी की आवाज नकारात्मकता को दूर करती है मां ने अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए हाथों में त्रिशूल, तलवार और धारण करते है मां चंद्रघंटा को देवी पार्वती के “विवाहित” रूप के रूप में भी जाना जाता है.

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