देश का एक छोटा राज्य झारखंड, इस समय राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना हुआ है। एक ओर झारखंड जहां राजनीतिक रूप से अस्थिरता का सामना कर रहा है तो दूसरी ओर दुमका की बेटी अंकिता कुमारी की हत्या का मामला लोगों के आक्रोश का कारण बना हुआ है। झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस-झामुमो-आरजेडी सरकार पर सवाल इसलिए भी खड़े हो रहे हैं क्योंकि राज्य सांप्रदायिक घटनाओं का केंद्र बन गया है और इस मामले में टॉप पर भी पहुंच गया है।
दरअसल, NCRB के आकंड़ों में झारखंड ने बड़े-बड़े राज्यों को पछाड़ते हुए अपराध का एक नया रिकॉर्ड बना दिया है। दैनिक जागरण ने NCRB के आंकड़ों का हवाला देते हुए एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसके अनुसार वर्ष 2021 में देश में 378 सांप्रदायिक दंगे हुए, जिसमें सर्वाधिक 100 दंगे सिर्फ झारखंड में हुए हैं। अहम बात यह है कि हर तरह के अपराधों में NCRB का डाटा झारखंड को ही नंबर वन दिखा रहा है।
इसके अलावा बात यदि झारखंड में बच्चों की स्थिति की करें तो वहां भी अपराध का बोलबाला प्रदर्शित हो रहा है। NCRB के अनुसार, झारखंड में वर्ष 2019 में जहां 1674 बच्चों के साथ अपराध हुआ, वही वर्ष 2020 में 1795 व वर्ष 2021 में 1867 बच्चों से अपराध की घटनाएं सामने आई हैं। साथ ही महिलाओं से अपराध के मामले में आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2021 में 8110 महिलाएं अपराधियों का शिकार हुई हैं।
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गौरतलब है कि जिस उत्तर प्रदेश को हमेशा ही सांप्रदायिक हिंसा का गढ़ माना जाता रहा है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को निशाने पर लिया जाता रहा है, उसी प्रदेश में मात्र एक सांप्रदायिक हिंसा का मामला सामने आया है। ध्यान देने वाली बात है कि विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा योगी आदित्यनाथ की छवि को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ बताकर अल्पसंख्यकों के लिए खतरा बताया जाता रहा है लेकिन NCRB के आंकड़ों ने इन कुंठितों की पोल खोल दी है।
NCRB के आंकडे से यह भी प्रदर्शित हो रहा है कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्य असल में सांप्रदायिक हिंसा का अड्डा बनते जा रहे हैं। इतना ही नहीं, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस समय अपने राजनीतिक करियर के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। सोरेन और उनके भाई पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। उनकी कुर्सी किसी भी वक्त राज्यपाल के एक आदेश के बाद जा सकती है। इसलिए हेमंत सोरेन अपने विधायकों को लेकर रांची से रायपुर चले गए हैं यानी रिसॉर्ट पॉलिटिक्स का खेल जारी है।
ध्यान देने वाली बात है कि झारखंड में नाबालिग बच्ची अंकिता कुमारी की मौत की घटना पर जब सीएम साहब को पल-पल की घटना का जायजा लेते हुए मामले को जल्द से जल्द संभालने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी तब सीएम अपनी सरकार बचाने में व्यस्त हैं। यह उदाहरण है कि हेमंत सोरेन का मॉडल सरकार चलाने का नहीं बल्कि गठबंधन चलाने का है और पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने यही किया है जिसके कारण अपराधी झारखंड को राष्ट्रीय स्तर पर नंबर वन बनाने में मस्त रहे और सोरेन गठबंधन बचाने में व्यस्त रहे। यह दावा किया जाता रहा है कि झारखंड झामुमो-कांग्रेस-आरजेडी के कुशल हाथों में है और इसके कारण राज्य में किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक वारदात हो ही नहीं सकती है लेकिन आंकड़े इससे बिल्कुल उलट हैं। कांग्रेस और झामुमो दोनों ही सेक्युलरिज्म की पुरोधा पार्टियां हैं लेकिन यथार्थ यह है कि झारखंड में ही सबसे ज्यादा सांप्रदायिक हिंसा हुई है और यह राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक दंगों की राजधानी बन गया है।
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