जब-जब जो-जो होना है तब-तब सो-सो होता है, झारखंड की राजनीति अभी इसी कथन का रण बनकर रह गयी है। जहां सत्ताधारी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी जाती दिख रही है पर कहानी यहां ख़त्म नहीं हुई बल्कि असल कहानी यहीं से शुरू हो रही है। कहानी झारखंड मुक्ति मोर्चा से झारखंड को मिल रही मुक्ति की, कहानी झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन की राजशाही जाने की और वो कहानी जो राज्य की राजनीति की सबसे बड़ी कहानी होने वाली है, पूरे सोरेन परिवार की राजनीतिक सन्यास की ऐसी कहानी जो आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीति को उलट कर रख देने वाली है।
दुमका विधायक बसंत सोरेन की नाव डगमगा रही है
दरअसल, अपना पेट भरते-भरते नेता यह भूल जाते हैं कि आजकल तंत्र मजबूत है, पकड़े जाने की संभावना भी उतनी ही प्रबल है और आज नहीं तो कल सबका हिसाब होना है। जिस झारखंड में हमेशा से खनन माफियाओं की ख़बरें आम हुआ करती थीं आज उसी खनन विभाग के चक्कर में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन परिवार सहित राजनीतिक रूप से ही संन्यासी बनने वाले हैं यह तय हो गया है। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के चक्कर में हेमंत सोरेन की कुर्सी तो जा ही रही थी पर अब उनके भाई और दुमका विधायक बसंत सोरेन भी इसी कश्ती में सवार हैं और उनकी भी विधायकी जाती दिख रही है।
उधर एक बार विधानसभा की सदस्यता रद्द होने के बाद हेमंत सोरेन के हाथ से सीएम की कुर्सी भी जाएगी और विधायक भी नहीं रह जाएंगे तो वहीं बसंत भी पूर्व विधायक हो जाएंगे। अब तक खबर थी कि चुनाव आयोग ने लगभग-लगभग सीएम सोरेन की सदस्यता रद्द करने की प्रक्रिया पूर्ण कर ली है। वहीं, चूंकि अंतिम निर्णय राज्यपाल का होता है इसलिए चुनाव आयोग ने अपनी रिपोर्ट बंद लिफाफे में राज्यपाल को भेज दी थी। अब यह मामला राज्यपाल के हाथ में है जो 2-3 दिन के भीतर इस पर निर्णय देने जा रहे हैं और संभवतः यह दोनों ही भाईयों के लिए राजनीतिक काल साबित होने जा रहा है क्योंकि एक साथ दोनों की विधायकी जाते ही अस्थिरता आएगी और नज़ारा अलग हो जाएगा।
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बता दें चुनाव आयोग ने सीएम हेमंत सोरेन के छोटे भाई और दुमका विधायक बसंत सोरेन से जुड़े एक लाभ के पद के मामले में अपनी सिफारिश के साथ झारखंड के राज्यपाल को एक और पत्र भेजा है, लेकिन राजभवन से इस पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। ऐसे में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पद पर रहते हुए खनन पट्टा रखने के आरोपों पर पिछले महीने भेजे गए चुनाव आयोग की राय पर राज्यपाल रमेश बैस ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। जिसके परिणामस्वरूप यह कहा जा रहा है कि दोनों ही मामलों पर एक साथ निर्णय आने को है और राज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा।
ज्ञात हो कि भाजपा ने हेमंत सोरेन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने माइनिंग लीज आवंटन के क्रम में एक लीज अपने नाम पर भी आवंटित कराया था। भाजपा ने जब आपत्ति जतायी तो हेमंत सोरेन ने इसे वापस कर दिया था। भाजपा ने इसे भ्रष्टाचार बताते हुए ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मुद्दा उठाया और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9ए का हवाला देते हुए हेमंत सोरेने की सदस्यता खत्म करने की मांग की। इस संबंध में भाजपा ने गवर्नर से शिकायत की। जिस समय का यह पूरा मामला है उस समय हेमंत सोरेन खनन और वन मंत्री का पद संभाल रहे थे।
दूसरा मामला बसंत सोरेन से जुड़ा है, जहां चुनाव आयोग की रिपोर्ट के बाद एक विधायक के रूप में बसंत के नाम पर खनन पट्टा बढ़ाने के लिए अयोग्यता की सिफारिश की गयी थी। अब जैसा की लाभ के पद का दायरा कहता है उसके अनुसार दोनों ही भाईयों की योग्यता पर संशय बनना स्वभाविक बात थी। एक सीएम तो दूसरा विधायक के रूप में पट्टों के चक्कर में आज राजनीतिक वनवास की ओर अग्रसर हैं। ऐसे में यदि सीएम हेमंत सोरेन के छोटे भाई और दुमका विधायक बसंत सोरेन को अयोग्य ठहराया जाता है तो राज्य में सियासी गणित बदलने की पूर्ण संभावना है। न ही सीएम मटेरियल हेमंत रह पाएंगे और न ही बसंत।
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कल्पना सोरेन की दावेदारी केवल एक कल्पना है
अंततः राज्य में सियासी उथल-पुथल होने के क्रम में सरकार जाती दिख रही है क्योंकि जिन हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन की दावेदारी बतायी जा रही है कि यदि हेमंत अयोग्य घोषित होते हैं तो सीएम की कुर्सी पर कल्पना विराजेंगी तो यह लगभग असंभव है क्योंकि सक्रिय राजनीति से कहीं दूर कल्पना न ही विधायक हैं और न ही पार्टी की कोई सक्रिय कार्यकारिणी की नेता। वो व्यापारिक उपक्रमों में जुड़ी रही हैं, परिणास्वरूप हाल ही में कई भाजपा नेताओं ने राज्यपाल के पास शिकायत दर्ज करायी थी कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी के स्वामित्व वाली कंपनी के लिए जमीन पाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया था। इसके अतिरिक्त हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री रहते हुए कल्पना के नाम पर कई प्लॉट खरीदने के मामले में भी सवाल उठाये जा चुके हैं।
ऐसे में जहां दोनों ही भाईयों पर पहले ही पद के दुरुपयोग का मामला उनके राजनीतिक पतन की नींव रख चुका है ऐसे में कल्पना के नाम की कल्पना करना भी हेमंत सोरेन के लिए अपने पैर पर कुल्हाडी मारने जैसा है। वहीं हेमंत और बसंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन की बात करें तो उनका तो दावेदारी में नाम आना ही एक मज़ाक होगा क्योंकि न ही वो इस स्थिति में हैं कि सरकार संभालें और न ही इस स्थिति में हैं कि अपने दोनों बेटों के किए का जवाब दे सकें। सत्य तो यह है कि देर सवेर ही सही पर झारखंड की राजनीति के खनन माफियाओं के मास्टरमाइंड हेमंत सोरेन अब परिवार सहित राजनीतिक संन्यास की ओर बढ़ चले हैं। शेष शुभ!
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