गुजरात में भाजपा को मजबूती से जिताने में भरपूर सहायता करेंगे केजरीवाल

न कोई विजन है, न कोई प्लान और चले हैं गुजरात जीतने!

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गुजरात में पिछली बार पाटीदार आंदोलन और तगड़े प्रोपगेंडा के प्रचुर मिश्रण में भाजपा को बहुमत लाने तक के लाले पड़े थे, परंतु अब एक पार्टी की अति महत्वकांक्षा ने उसका कार्य इतना सरल बना दिया है कि अब उसके लिए चुनाव जीतना धुंध में फूंक मारने जितना सरल हो जाएगा। भाजपा की जीत में उसकी सहायक बनी कोई और नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी है।

आम आदमी पार्टी के मुखिया यानी दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जिस तरह से महाभारत के युद्ध को अपने भाषण में संदर्भित किया है उसके बाद तो यह समझना कठिन नहीं है कि आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव का क्या हाल होगा। इसलिए नहीं कि यहां कौन भाजपा के समक्ष मजबूत दावेदारी पेश करेगा, अपितु इस बात के लिए कि भाजपा इस बार कितने अंतर से इस चुनाव में विजय प्राप्त करेगी।

इस लेख में जानेंगे उन प्रमुख कारणों को जिसके पीछे गुजरात में भाजपा जीतेगी ही नहीं बल्कि गर्दा उड़ाएगी और जिसमें आम आदमी पार्टी की विशेष कृपा होगी।

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गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश दोनों महत्वपूर्ण हैं

उत्तर प्रदेश समेत चार राज्यों में चुनाव के पश्चात सबकी दृष्टि अब गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश के चुनावों पर है। दोनों ही महत्वपूर्ण राज्य हैं, क्योंकि दोनों ही भाजपा के पारंपरिक गढ़ रहे हैं। परंतु भाजपा का इस बार अधिकतम ध्यान गुजरात पर होगा, जिस पर नियंत्रण स्थापित करने को अन्य सभी पार्टी आतुर है, विशेषकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी।

परंतु कांग्रेस सिर्फ नाम की विपक्ष रह गयी है। न अब उसके पास अहमद पटेल हैं और न ही पहले की भांति एक मजबूत ईकोसिस्टम। पिछली बार जिस प्रकार उसने हवा बनाई थी, भाजपा को प्रचंड बहुमत तो छोड़िए, सरकार बचाने तक के लाले पड़े थे। यदि पीएम मोदी ने समय रहते आक्रामक प्रचार नहीं किया होता, और स्थिति अपने हाथ में नहीं ली होती, तो जो 99 सीट भाजपा को मिली थी, वो भी नहीं मिलती।

तो अबकी बार ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस न घर की रही, न घाट की? अहमद पटेल तो अल्लाह को प्यारे हो गए, ईकोसिस्टम के सबसे महत्वपूर्ण पाए यानि आरबी श्रीकुमार, तीस्ता सीतलवाड़ इत्यादि या तो सलाखों के पीछे हैं, या फिर अगर बाहर हैं कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं, और जिस पाटीदार आंदोलन के बल पर गुजरात के विकास मॉडल को उखाड़ फेंकने की नींव रखी गयी थी उसके पुरोधा भी अब कांग्रेस के नहीं रहे। केवल जिग्नेश मेवानी कांग्रेस के साथ टिके रहे हैं, अन्यथा अलपेश ठाकोर और हार्दिक पटेल तो भाजपा का दामन थाम चुके हैं।

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आम आदमी पार्टी का क्या?

और आम आदमी पार्टी? वो कैसे भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाने में सहायता करेगी? उसके कुछ महत्वपूर्ण कारण भी है। दिल्ली की मुफ्तखोर जनता और पंजाब को अपनी राजनीति का चरस सुंघाने के बाद आम आदमी पार्टी ने सोचा, क्यों न गुजरात गमन किया जाए? वैसे भी सपने देखने पर टैक्स थोड़े ही लगता है, और हर पार्टी की भांति आम आदमी पार्टी के भी कुछ सपने होते हैं, कि वह आगे बढ़े, राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराए।

परंतु कथनी और करनी में कितना अंतर होता है, ये आप इस पार्टी के विचारधारा से स्पष्ट देख सकते हैं। आम आदमी पार्टी चाहती है कि वह गुजरात में सरकार बनाएं, परंतु बंधुओं के पास न कोई विजन है, न प्लान। ऊपर से इनकी आबकारी नीति पर जिस तरह से इन्होंने रायता फैलाया है, उसके लिए जितना बोलें उतना कम। हाल ही में केजरीवाल दिल्ली की विधानसभा से बोलतें हैं, “मनीष सिसोदिया पर छापेमारी के बाद से गुजरात में आप का वोट शेयर 4 फीसदी बढ़ा है। गिरफ्तारी के बाद यह 6 फीसदी तक पहुंच जांच एजेंसी जानती है कि वह निर्दोष हैं, फिर भी उनके खिलाफ कुल 13 मामले दर्ज किए गए हैं।”

अरे बंधु, ये तो कुछ भी नहीं है। आम आदमी पार्टी यहां सबसे बड़ी गलती जो कर रही है, वो ये कि उनका CM फेस ही तय नहीं है। किसी भी चुनाव में एक सशक्त दावेदार सारा खेल बना या बिगाड़ सकता है, परंतु AAP की गुजरात इकाई का प्रतिनिधित्व कौन करेगा, इसका उत्तर किसी के पास है? क्या केजरीवाल बनेंगे गुजरात के मुख्यमंत्री, ये तो हो नहीं सकता? पंजाब में भी ये लोग इसलिए जीते क्योंकि कम से कम इनके पास एक दावेदार तो था, जिसका नाम था भगवंत मान। यहाँ कौन है? मेधा पाटकर, जो गुजरातियों के लिए ऐसे विचार रखती हैं।

अब अगर मेधा पाटकर या आम आदमी पार्टी के बुद्धिजीवी वर्ग के किसी ऐसे व्यक्ति को दावेदार बनाया जाता है, जिसका जमीन से कोई जुड़ाव न हो, तो केवल लोग ही नहीं भ्रमित होंगे, वोट भी बांटेंगे, और जबरदस्त बँटेंगे, क्योंकि आम आदमी पार्टी भली भांति जानती है कि मुफ्तखोरी के सहारे गुजरात में वह एक दिन भी नहीं टिक नहीं पाएगी। ऐसे में इस त्रिकोणीय मुकाबले का सबसे अधिक लाभ केवल भाजपा को होगा, और अभी गुजरात में क्या हवा चल रही, ये आप इसी क्लिप से देख सकते हैं।

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