कॉलेजियम प्रणाली को जड़ से उखाड़ने को तैयार हैं किरेन रिजिजू

राजनीति और बॉलीवुड की तरह 'न्यायिक व्यवस्था' भी है परिवारवाद से ग्रसित!

कॉलेजियम सिस्टम

Source- TFI

न्याय में लंबे समय तक देरी भी अन्याय समान ही मानी जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत की न्याय प्रणाली अच्छी है। हमारे न्याय प्रणाली की हमेशा से ही ऐसी विशेषता रही कि सबूतों के अभाव में भले ही दस कसूरवार छूट जाएं परंतु किसी भी एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए। हालांकि, इन सबसे इतर देखा जाए तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में न्यायिक प्रक्रिया काफी धीमी है। न्याय पाने के लिए लोगों को सालों-साल का इंतेजार करना पड़ता है। इसका प्रमुख कारण है जजों की नियुक्ति। देशभर की विभिन्न अदालतों में बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं। न्यायिक नियुक्ति में कॉलेजियम प्रणाली को सबसे बड़ी अड़चन माना जाता है, जिस पर अब कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रश्न उठाते हुए कुछ ऐसी बातें कही है, जो विचार करने योग्य है।

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रिजिजू ने कही ये बात

दरअसल, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए चले आ रहे कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। राजस्थान के उदयपुर में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि न्यायिक नियुक्तियों में तेजी लाने के लिए वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर विचार करने की आवश्यकता है। ‘उभरते कानूनी मुद्दे-2022’ पर आयोजित सम्मेलन में किरेन रिजिजू ने कहा कि यदि कोई सिस्टम सही से नहीं चल रहा, तो उसमें क्या बदलाव होने चाहिए, इसकी चिंता करना हम सबका कर्तव्य है।

कानून मंत्री ने कहा, हाईकोर्ट और निचली अदालत की मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रभावी कदम उठा रही है। न्याय प्रणाली को फिर से जीवंत करने का वक्त आ गया है। इसके तहत रिक्त पदों को जल्द ही भरा जाएगा। वैसे ऐसा पहली बार हुआ, जब कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने यूं सार्वजनिक तौर पर इतने सख्त शब्दों में कॉलेजियम प्रणाली पर प्रश्न खड़े किए हो। देखा जाए तो कॉलेजियम प्रणाली हमेशा से ही सवालों के घेरे में बनी रही है। कभी इसकी पारदर्शिता पर प्रश्न उठते हैं तो कभी न्यायाधीशों की नियुक्ति में इसे एक बड़ी समस्या के तौर पर देखा जाता है।

देशभर की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम प्रणाली कहा जाता है। वर्ष 1993 में आई इस व्यवस्था के तहत न्यायाधीशों के पोस्टिंग, तबादले और पदोन्नति से जुड़े निर्णय कॉलेजियम समिति द्वारा लिए जाते हैं। यह समिति पांच लोगों की एक समूह होती हैं, जिसमें उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ चार वरिष्ठ न्यायाधीश सदस्य होते हैं। कॉलेजियम प्रणाली से ही यह तय होता है कि हाईकोर्ट के कौन से जज पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हालांकि, हमारे भारतीय संविधान में कॉलेजियम प्रणाली का कोई उल्लेख नहीं किया गया है।

ज्ञात हो  कि केवल बॉलीवुड या फिर राजनीति ही नहीं परिवारवाद से हमारे देश की न्यायपालिका भी ग्रसित है। ऐसा कहा जाता है कि कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से न्यायपालिका में भी परिवारवाद को बढ़ावा दिया जाता है। अगर केवल सुप्रीम कोर्ट को ही देख लिया जाए तो वहां 38 प्रतिशत मौजूदा न्यायाधीशों का न्यायपालिका या फिर सरकार में गहरा पारिवारिक संबंध है। प्रथम दृष्यता से तो यही स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका पर कुछ चुनिंदा परिवारों का कब्जा है। स्वयं न्यायपालिका के अंदर से ही इसकी पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगते आए हैं। कुछ वर्षों पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में परिवारवाद और जातिवाद का बोलबाला है।

मोदी सरकार ने पहले भी उठाया था कदम

ऐसा नहीं है कि कॉलेजियम प्रणाली को कभी खत्म करने के प्रयास नहीं हुए। सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने वर्ष 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्त‍ि आयोग (NJAC) अधिनियम बनाया था। यह सरकार द्वारा प्रस्तावित एक संवैधानिक संस्था थी, जिसमें छह सदस्य रखने का प्रस्ताव था। इसमें मुख्य न्यायाधीश के अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ वकील, कानून मंत्री और विभिन्न क्षेत्र से जुड़ी दो लोकप्रिय हस्तियों को सदस्य के तौर पर शामिल करने की बात थी। परंतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए कानून को असंवैधानिक बताते हुए इसे वर्ष 2015 में ही रद्द कर दिया गया। इस दौरान कहा गया कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा, जिसके बाद कॉलेजियम प्रणाली ही दोबारा से बहाल हो गई।

वैसे भी देखा जाए तो अपने कुछ निर्णयों के कारण न्यायपालिका आलोचनाओं में भी घिरी हुई है। न्याय पाने के लिए लोग देश की व्यवस्था पर तो पूरा भरोसा करते हैं परंतु न्यायाधीशों के सभी फैसलों पर लोग उनसे सहमत हो, ऐसा भी नहीं है। ऐसा ही कुछ बीते महीनों देखने मिला था, जब उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल की इस्लामिस्टों द्वारा बेरहमी से हत्या करने पर सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा की पूर्व प्रवक्ता को जिम्मेदार ठहराया था। कोर्ट के इस बयान को लेकर लोगों में काफी नाराजगी भी देखने को मिली थी। इसके अलावा भी न्यायपालिका कई अन्य कारणों से लगातार आलोचनाओं में घिरी हुई है।

बताते चलें कि कॉलेजियम प्रणाली को न्यायी प्रणाली में बाधा की तरह देखा जाता है। हालांकि, अब कानून मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा कॉलेजियम प्रणाली पर यूं सार्वजनिक तौर पर सवाल उठाने के बाद यह प्रश्न उठ रहे हैं कि क्या मोदी सरकार इसे लेकर कुछ बड़ा निर्णय लेने की तैयारी में है? अगर ऐसा है तो इसे लेकर शीघ्र ही कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, जिससे हमारी न्याय व्यवस्था में सुधार हो और लोगों में जल्द न्याय मिलने की उम्मीद भी जगे।

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