नीतीश के पास एक मास्टरप्लान है अपने विरोधियों को “चारों खाने चित्त करने का”

नीतीश किसी के नहीं हैं तो कोई उनका कैसे हो सकता है?

Nitish Kumar

Source- TFI

देखो भई, अपने नीतीश कुमार जैसे भी हो, उनके राजनीतिक जीवटता पर आप संदेह नहीं कर सकते। परिणाम जैसा भी हो, लोग चाहे जैसे भी हो, ये तब तक शांत नहीं बैठते जब तक इन्हें सत्ता प्राप्त नहीं हो जाए बाकी पलटूराम, अवसरवादी जैसे ‘टैग’ जाए तेल लेने। अब नीतीश कुमार ने अपनी राष्ट्रीय अभिलाषाओं को चंद कदम आगे बढ़ाते हुए दावा किया है कि यदि पूरा विपक्ष एक हो जाए तो भाजपा को वर्ष 2024 में 50 से भी कम सीटों पर सिमटा सकते हैं। जी हां, नीतीश कुमार ने ये दावा निस्संकोच किया है। असल में JDU की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के दौरान JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह दावा किया कि भाजपा को 2024 से 150 सीटों पर समेट देना है।

इसी बात पर बीच में टोकते हुए CM नीतीश कुमार बोले, “संख्या ज्यादा बोल दी है, उन्हें 50 के भीतर ही समेट देना है। हम 2024 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 50 सीटों पर समेट देंगे। विपक्ष को एकजुट करने की कई कोशिश की जा रही है लेकिन 2024 चुनाव में भाजपा 50 सीटों पर आ जाएगी। अगर सभी विपक्षी दल मिलकर चुनाव लड़े।”

वो कहते हैं न, समय से पूर्व और औकात से अधिक किसी को नहीं पचता। परंतु आपको क्या प्रतीत होता है, नीतीश कुमार सच में इतनी शक्ति रखते हैं। यह निस्संदेह मास्टरप्लान है परंतु विरोधियों को ‘चारों खाने चित्त करने के लिए नहीं’ बल्कि राजनीति में तर्कसंगत बने रहने के लिए अन्यथा नीतीश की वास्तविक औकात बताने के लिए लोकसभा चुनाव 2014 और विधानसभा चुनाव 2020 पर्याप्त है।

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नीतीश का खुद का नहीं है जनाधार

नीतीश कुमार में ‘प्रधानमंत्री’ बनने की अभिलाषा प्रारंभ से थी और भई सपने देखने पर कोई टैक्स थोड़ी लगता है। परंतु नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव से भयभीत होकर उन्होंने न केवल भाजपा से अपना नाता तोड़ा अपितु यह भी घोषित किया कि वह चुनाव अकेले, अपने दम पर लड़ेंगे और उनका “सुशासन” उन्हें आगे बढ़ाएगा लेकिन परिणाम ठीक उलट निकला। जिस भाजपा को बिहार में 10 सीट भी मुश्किल से प्राप्त होती थी, वह आश्चर्यजनक रूप से 22 सीटों का प्रचंड बहुमत प्राप्त कर गई और JDU 20 सीटों से सीधा 2 सीट पर धड़ाम हो गई। यदि प्रशांत किशोर अति महत्वाकांक्षा में हाथ आजमाने नहीं आए होते तो स्वयं नीतीश कुमार में इतना साहस नहीं था कि 2015 चुनाव अपने बल पर जीत ले।

2020 में तो हालत पहले से भी बुरी हुई और तब कोई लोकसभा चुनाव भी नहीं था, बात थी बिहार विधानसभा चुनाव की। जिस चुनाव में JDU को स्वप्न में भी 50 से कम सीट न मिले, उस पार्टी को बिहार की जनता ने मात्र 43 सीटों पर सिमटा दिया। यहां न मोदी मैजिक था, न शाह नीति थी, यहां नीतीश को सबसे अधिक रुलाया था चिराग पासवान ने, जिनके पिता को स्वर्गवासी हुए तब दो महीने भी नहीं हुए थे। चलिए, इन लोगों को एक ओर रखते हैं और बात करते हैं 2024 चुनावों की। प्रधानमंत्री की दावेदारी हेतु आपको कुछ नहीं तो गठबंधन के रूप में 60 से 100 सीटों पर दावेदारी करनी पड़ेगी और ऐसे में आपको चाहिए मजबूत साझेदार। परंतु नीतीश कुमार का साथ कौन देगा?

क्या अरविन्द केजरीवाल देंगे? आप माने न माने, परंतु इस समय देश में विपक्ष का एक उभरता हुआ प्रतीक अरविंद केजरीवाल हैं, जो लोगों को अपनी ‘नौटंकियों’ से रिझाना जानते हैं। गधे को सींग बेचने की कला रखने वाले ‘युगपुरुष’ ये ऐसे ही नहीं कहलाते। परंतु जो स्वयं दो प्रांतों में सरकार बनाकर बैठा हो, जिसकी पैठ कम्युनिस्ट पार्टी से कुछ ही कम हो और जिसका प्रभाव अब केंद्र सरकार तक भी पहुंचने लगे तो वो भला नीतीश कुमार जैसे व्यक्ति का साथ क्यों देगा और उसे भला सीट क्यों दान करेगा?

केसीआर, ममता, स्टालिन, राहुल गांधी ये सब भी दावेदार ही हैं!

अब आते हैं के चंद्रशेखर राव पर, जो राष्ट्रीय स्तर पर एक अन्य दावेदार माने जा रहे हैं। उनके साथ नीतीश की वार्तालाप से तो आप सभी परिचित हुए होंगे परंतु बिहार यात्रा पर आए KCR के साथ जो नीतीश ने किया है, उसी से पता चल गया कि इनकी राष्ट्रीय स्तर पर क्या इज्जत रहेगी। दरअसल, विपक्षी एकजुटता का पैगाम लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव देशभर में भ्रमण कर रहे हैं। इसी क्रम में केसीआर बिहार पहुंचे थे। चूंकि अब एनडीए गठबंधन की सरकार नहीं है तो केसीआर के लिए यह सोने पर सुहागा वाला अवसर था। बता दें कि सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रही है। जिसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव बार-बार बिहार के सीएम नीतीश कुमार से बैठने का आग्रह कर रहे हैं और मीडिया के सवालों को जवाब देने को कह रहे हैं लेकिन नीतीश कुमार अपने में मदमस्त हैं।

केसीआर ने बीते दिनों बिहार की राजधानी पटना का दौरा किया, जहां उन्होंने राज्य के शीर्ष राजनीतिक नेताओं से मुलाकात की और ‘भाजपा मुक्त भारत’ का आह्वान भी किया। जो वीडियो क्लिप वायरल हो रही है, वह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की है जिसे उन्होंने नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव के साथ संबोधित किया था। इसी बीच जब नीतीश कुमार और चंद्रशेखर राव प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे तभी एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि अगर कोई फ्रंट बनता है तो उसका नेतृत्व क्या नीतीश कुमार कर सकते हैं। यह सवाल सुनते ही नीतीश कुमार खड़े हो गए और सकपका कर जाने लगे। इस पर केसीआर ने नीतीश कुमार का हाथ पकड़ कर कहा कि बैठिए। लेकिन नीतीश नहीं बैठे, कहने लगे 50 मिनट हो गए हैं।

हालांकि, बहुत आग्रह के बाद नीतीश कुमार बैठ गए लेकिन उनकी चेहरे की हंसी नहीं रुक रही थी। यह चलिए-बैठ जाइए का राग पूरी प्रेस कांफ्रेंस का सार बन गया और फिर शुरू हुई फजीहत। अभी तो हमने ममता बनर्जी और एमके स्टालिन जैसे नेताओं की तो चर्चा भी नहीं की है और फिर तो कांग्रेस भी है हीं। ऐसे में नीतीश का ये बड़बोलापन सिर्फ एक बात का सूचक है कि ‘दीया बुझने से पूर्व फड़फड़ा रहा है!’

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