आज के समय में बिहार की राजनीति से विचित्र शायद ही कुछ और होगा। नीतीश कुमार की जेडीयू ने बिहार में एनडीए से अलग होने के बाद आरजेडी के साथ महागठबंधन करके सरकार बना ली। पल्टूराम ने फिर से सरकार तो बना ली लेकिन बिहार को आपराधिक घटनाओं से मुक्त नहीं करा पाए बल्कि आज देखा जा सकता है कि दिन-ब-दिन बिहार में आपराधिक घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। कैसे कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर बिहार की दुर्दशा की जा रही है वो आज किसी से नहीं छुपा है।
अभी बेगूसराय में धुआंधार गोलीबारी की घटना को एक सप्ताह ही बीता था कि बिहार में फायरिंग की एक के बाद एक दो घटनाएं देखने को मिली हैं। पहली घटना राज्य की राजधानी पटना में हुई जहां विश्वविद्यालय के छात्रों और कुछ स्थानीय लोगों के बीच की लड़ाई ने हिंसक रूप ले लिया जिसके बाद 6 लोग घायल हो गए। यह लड़ाई पटना के विश्वविद्यालय अंबेडकर छात्रावास के छात्रों और सुल्तानगंज इलाके के कुछ स्थानीय लोगों के बीच छिड़ गयी। इस लड़ाई में कई बार गोलीबारी और पथराव हुए। इस घटना में तीन लोगों को गोली लगी थी, इसके बाद पुलिस ने दोनों पक्षों की शिकायत दर्ज कर ली थी।
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सड़क पर अंधाधुंध गोलीबारी
वहीं कुछ ही दिनों बाद गोलीबारी की दूसरी घटना वैशाली जिले के हाजीपुर कस्बे के थाना क्षेत्र के मडई चौक इलाके में हुई है। जहां पर बाइक सवार हमलावरों ने सड़क पर अंधाधुंध गोलीबारी की है। इस बारे मे सूचना मिलते ही पुलिस घटना स्थल पर पहुंची और नाकाबंदी कर दी लेकिन तब तक आरोपी वहां से फरार हो चुके थे। वहां पर मौजूद दुकानदार ने इस बात की जानकारी दी कि जब वह 10 बजे दुकान बंद कर अपने घर लौट रहा था तभी वहां पर 2 बाइक सवार बदमाशों ने गोलियां चलानी शुरू कर दी थी। बदमाश 500 मीटर तक फायरिंग कर रहे थे।
वहीं बेगूसराय में दिन–दहाड़े गोली बारी होने और 12 से अधिक लोगों के घायल होने के बाद पुलिस एक घायल आरोपी (302 यानी हत्या के आरोपी) को ऑटो से अस्पताल लेकर पहुंची। जहां पर पुलिस से बात करने के बाद पता चला कि उनके पास पुलिस की गाड़ी ही नहीं थी इसी वजह से उनको एक ऑटो से घायल आरोपी को अस्पताल लेकर जाना पड़ा। अब जरा सोचिए कि जब घायल आरोपी को अस्पताल ले जाने के लिए पुलिस के पास साधन तक उपलब्ध नहीं हैं तो भला पुलिस से किसी आरोपी को पकड़ लेने और थाने या अस्पताल ले जाने या फिर संसाधनों की कमी में त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। इस तरह कि घटना के बाद बिहार पुलिस कि सुरक्षा के साथ-साथ उसके यहां कि कानून व्यवस्था और स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी प्रश्न चिह्न खड़ा होता है।
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बिहार में लालू सरकार वाला कुशासन लौट रहा है?
नीतीश कुमार और आरजेडी के महागठबंधन के बाद बिहार में एक बार फिर तेजी से क्राइम का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि लालू सरकार वाला समय बिहार में लौट रहा है। भूलिए नहीं कि कैसे लालू की सरकार के समय बिहार त्रस्त था, जबरन वसूली का मामला हो या फिर अपहरण या राजकोश का दुरुपयोग, ऐसी घटनाएं तब चरम पर थीं।
1990 में लालू प्रसाद यादव ने बिहार की कमान मुख्यमंत्री के रूप में संभाली थी। वो दौरा ऐसा था कि तब बिहार में लगातार बाहुबली उभर रहे थे। 1990 के बाद के दौर में तो घोटालों पर घोटालों का सामने आना आश्चर्य में डालता था। वो लालू के शासन का दौर ही था जब उद्योग के रूप में कोई व्यवसाय नहीं बल्कि अपहरण और जबरन वसूली जैसे अपराध फलफूल रहे थे। जंगलराज किस तरह से अपने विकराल रूप में था इसे इस बात से ही समझा सा सकता है कि 2002 में राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य की पटना में शादी हुई और मीडिया रिपोर्ट्स बताते हैं कि तब लालू के करीबी जबरन नयी कारों को कार शोरूम से ले जाने लगे थे ताकि नयी कार से लालू-राबड़ी के घर उनके अतिथियों को छोड़ा जा सके। लगभग 50 नयी-अनरजिस्टर्ड कारें लूट ली गयी और उद्योगपति-व्यापारी भय ग्रसित होकर देखते रह गए।
नीतीश कुमार के शासन में भले ही शो रूम न लूटा जा रहा हो लेकिन बीच चौराहे पर गोलीबारी की घटना नीतीश सरकार को प्रश्नों के जाल में फंसाती तो अवश्य है और सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या बिहार में लौट रहा है लालू वाला जंगलराज?
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