‘पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना’ को बंद करने का वक्त आ गया है?

महामारी खत्म हो गई है, अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आई, फिर मुफ्त राशन क्यों?

पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना

कोरोना काल में लगभग हर सेक्टर बुरी तरह से प्रभावित हुआ था लेकिन वह भयावह समय भी अंततः बीत ही गया और तब से लेकर अब तक देश की स्थिति बहुत सुधार गयी है। देश की अर्थव्यवस्था ने भी तीव्र गति पकड़ ली है, देश लगभग हर क्षेत्र में विकास के पथ पर अग्रसर है। अब जब कोरोना के बारे में चर्चा होती है तो इस काल में मोदी सरकार द्वारा चलायी जा रही पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) की भी चर्चा हो ही जाती है। मोदी सरकार की इस योजना के तहत मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जाता है। कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के समय में लोगों तक भोजन उपलब्ध हो सके इसके लिए मोदी सरकार यह योजना लेकर आयी थी।

मोदी सरकार के इस महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत लगभग 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया गया और अप्रैल 2020 से लेकर अभी भी लगभग हर महीने यह सुविधा लोगों तक पहुंचायी जा रही है। इस 1.5 ट्रिलियन रुपये के कार्यक्रम में 800 मिलियन भारतीयों को प्रत्येक माह 5 किलोग्राम गेहूं या चावल दिया जा रहा है, जिससे बहुत अधिक संख्या में लोगों की मदद हो रही है। इस योजना के तहत कई गरीब लोगों को मुफ्त राशन की सुविधा मिली जिसमें 1 किलो चना दाल, 5 किलो चावल और 5 किलो गेहूं दिया जाता है।

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लोगों को मुफ्त की सुविधा से दूर हो जाना चाहिए

इस योजना को इसकी सीमित तिथि से कई-कई बार आगे बढ़ाया जा चुका है। पहले इस योजना को 31 मार्च 2022 तक बढ़ा दिया गया और फिर 30 सितंबर तक के लिए इसे आगे बढ़ाया गया। अब एक बार फिर पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना( PMGKAY) को आगे बढ़ाने की बात की जा रही है। आज जब देश में 2020 की तुलना में बहुत कम कोरोना केस सामने आ रहा हैं और जीवन लगभग सामान्य होने लगा है तो ऐसे में जनता को स्वयं ही ऐसी मुफ्त की सुविधा से दूर हो जाना चाहिए ताकि देश की अर्थव्यवस्था पर इस योजना से पड़ने वाला बोझ न पड़े।

पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को और आगे के समय के लिए बढ़ाया जाना चाहिए या नहीं अभी इस पर निर्णय आना बाकी है लेकिन वित्त मंत्रालय के अनुसार, इस कार्यक्रम को और अधिक नहीं बढ़ाना चाहिए क्योंकि यह बजट पर बहुत अधिक दबाव डालता है। एक तरह से देखा जाए तो कोरोना महामारी भी लगभग समाप्त हो गयी है लेकिन योजना को लेकर अंतिम फैसला तो सरकार ही लेगी। देखा जाए तो मोदी सरकार के लिए भोजन वितरण के कार्यक्रम को रोकना शायद अच्छा विकल्प न हो। भाजपा के सामने हिमाचल प्रदेश और नरेद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात का विधानसभा चुनाव है और यदि इस दौरान योजना को रोका गया तो हो सकता है कि भाजपा को इसका नकारात्मक प्रभाव झेलना पड़ जाए।

नई दिल्ली में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के प्रोफेसर संजय कुमार के अनुसार, मुफ्त भोजन योजना से लाभांवित हो रहे मतदाताओं ने इस वर्ष के आरम्भ में देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को वोट दिया था।

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अर्थव्यवस्था में उछाल 

अप्रैल से लेकर जून के बीच भारत में हुए कुल कारोबार के हिसाब से लगाए गए अनुमान के तहत केंद्रीय सांख्यिकी संगठन सीएसओ ने कहा है कि भारत की आर्थिक उन्नति की स्थिति बहुत अच्छी है। पिछली 4 तिमाहियों में इस तरह का सबसे बड़ा उछाल देखने को मिला है। इस संकेत के मिलते ही ऐसा लगने लगा है मानो अब देश की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी है।

सीएसओ के आंकड़ों के अनुसार, इस समय दामों के हिसाब से यानी की करेंट रेट की गणना पर देश की अर्थव्यवस्था का कुल हिस्सा जून के अंत में 64.95 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान  लगाया जा रहा है, जबकि बीते साल इसी तिमाही में यह आंकड़ा 51.27 लाख करोड़ रुपये का ही था। अब यदि देखें तो इसमें कुल 26.7% का अंतर देखने मिल रहा है। जबकि इसके पिछले साल यह बढ़त 32.4% पर थी। इसे नॉमिनल जीडीपी के नाम से भी जाना जाता है।

भले ही पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना से बहुत सारे लोगों को मदद मिली है लेकिन इसे बनाए रखना देश के लिए महंगा पड़ सकता है, इतना ही नहीं इससे सस्ते अनाज की प्रचुर आपूर्ति बढ़ जाती है। ध्यान देने वाली बात है कि इस वर्ष भारत को गेहूं और चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाना पड़ गया था क्योंकि अनिश्चित मौसम के कारण फसलों को बहुत अधिक क्षति पहुंची है। जिससे खाद्य पदार्थों के मूल्यों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है और इस कारण वैश्विक कृषि बाजारों में भी बहुत हलचल मची हुई है।

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700 अरब रुपये का खर्चा

अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले छह महीने तक खाद्य योजना चलाने पर बजट से 700 अरब रुपये और खर्च हो जाएगा। साथ ही यह मार्च 2023 को ख़त्म होने वाले वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 6.4% तक सीमित कर देने के सरकार के लक्ष्य के लिए काफी अधिक जोखिम बढ़ा सकता है  जो पहले 6.9% पर था और महामारी के पहले वर्ष में इसका रिकॉर्ड 9.2% पर था। खाद्य सचिव सुधांशु पांडे के अनुसार, “ये बहुत बड़े निर्णय हैं, जिन पर सरकार  ही अपना फैसला देगी। अभी फिलहाल मैं इस पर कुछ नहीं कह सकता।”

प्रसन्ना अनंतसुब्रमण्यम की लीडरशिप में आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज लिमिटेड के विश्लेषकों के अनुसार, “इस खाद्य योजना के जारी रहने पर आने वाले साल तक खाद्यान्न स्टॉक भी खत्म हो सकता है।”  इस खाद्य कार्यक्रम पर आने वाला फैसला मुद्रास्फीति को भी  बहुत प्रभावित कर सकता है। चावल और गेहूं के मूल्य भारत की खुदरा मुद्रास्फीति का लगभग 10%  भाग हैं  जो भीषण गर्मी की लहर और खराब मानसून  (कम उत्पादन) के कारण बढ़ रहे हैं।

अब मोदी सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती होगी कि वो अपनी इस योजना से चुनावी लाभांश को अलग हटाकर किस प्रकार से इस पर एक कठोर निर्णय ले पाती है।

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