आज के समय में पूरी दुनिया भारत को विकास के इंजन के तौर पर देखती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है, ऐसे में कथित वैश्विक महाशक्तियां भी भारत के समक्ष घुटने पर ही रहती हैं। सभी देश इस बात से भली भांति परिचित हैं कि भारत के साथ व्यापार में ही उनकी भलाई है। यही कारण है कि तमाम देश हमारे साथ व्यापार करने को इच्छुक हैं और इसके लिए किसी भी प्रकार का समझौता करने के लिए तैयार नजर आते हैं। इसके पीछे का श्रेय यदि किसी को दिया जाए तो वो निसंदेह केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ही हैं, जो वाणिज्य मंत्रालय को किसी कंपनी के सीईओ की तरह चला रहे हैं तो वही मुक्त व्यापार समझौता यानी FTA उनके प्रमुख उत्पाद की तरह है!
दरअसल, केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल विकसित देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने की आवश्यकता पर लगातार बल दे रहे हैं। इस वर्ष अप्रैल माह में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ECTA) पर हस्ताक्षर किए थे। यह दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं में एक मुक्त व्यापार समझौता स्थापित करता है। इससे पूर्व इस वर्ष की शुरुआत में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ भारत ने एफटीए पर हस्ताक्षर किए थे। इसके अलावा हाल ही में भारत और ब्रिटेन के बीच भी मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की घोषणा की गई। दोनों देशों के बीच अक्टूबर 2022 के अंत तक एफटीए होने की संभावना है। भारत और कनाडा के बीच भी एफटीए को लेकर वार्ता शुरू हो चुकी है। केवल इतना ही नहीं, भारत और यूरोपीय संघ के बीच 9 वर्षों से अधिक की लंबी अवधि के बाद मुक्त व्यापार समझौता को लेकर एक बार फिर से बातचीत की शुरुआत हुई है।
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पीयूष गोयल चाहते हैं कि भारत विकसित देशों के साथ एफटीए समझौते पर ध्यान केंद्रित करे। मंगलवार को हुई व्यापार बोर्ड के साथ बैठक में उन्होंने अपनी नीति को स्पष्ट कर दिया है। पीयूष गोयल ने कहा कि भारत का ध्यान विकसित देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) करने पर है। इस दौरान उन्होंने व्यापार बोर्ड (BOT) के प्रतिभागियों से एफटीए की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित करने का भी आग्रह किया। व्यापार बोर्ड की बैठक में निर्यात के लक्ष्य को तय करने के साथ नई विदेश व्यापार नीति और घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने की रणनीतियों और उपायों पर विचार किया गया।
आपको बताे दें कि मुक्त व्यापार समझौता यानी FTA के जरिए देशों के बीच व्यापार आसान बनाने के प्रयास किए जाते हैं। एफटीए से दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात-निर्यात शुल्क को कम करने या समाप्त करने के लिए एक समझौता है। इसके तहत संबंधित देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार बहुत कम या बिना किसी टैरिफ बाधाओं के किया जा सकता है।
देखा जाए तो तमाम मुद्दों को लेकर वर्तमान समय में भारत की नीति में काफी परिवर्तन देखने को मिलता है। आज पूरी दुनिया के सामने भारत की नीति स्पष्ट है। भारत कोई भी निर्णय अपने हितों को सर्वोपरि रखकर ही लेता है, चाहे फिर परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो। भारत ने 10 सितंबर को अमेरिका के नेतृत्व वाले इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के व्यापार समूह से स्वयं को अलग कर लिया है। हालांकि, उसने बाकी तीन क्षेत्रों आपूर्ति शृंखला, हरित अर्थव्यवस्था और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ने का फैसला किया है।
यह वो समूह है जिसमें अमेरिका के साथ जापान जैसे देश तक शामिल हैं परंतु भारत ने इससे पीछे हटते हुए यह स्पष्ट किया कि भारत पहले अपने राष्ट्रीय हितों के सभी पहलुओं को देखेगा और फिर कोई निर्णय लेगा। अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान इसे लेकर पीयूष गोयल ने कहा कि भारत संगठन के व्यापार खंड का हिस्सा बनने को लेकर बातचीत जारी रखेगा क्योंकि यह साफ नहीं है कि भारत समेत सदस्य देशों को इस स्तर पर वार्ता के माध्यम से क्या लाभ होगा। उन्होंने कहा कि व्यापार खंड का औपचारिक रूप से हिस्सा बनने के पहले भारत इसकी रूपरेखा के बारे में स्पष्टता आने का इंतजार करेगा। गोयल ने स्पष्ट कहा कि भारत पहले अपने राष्ट्रीय हितों के सभी पहलुओं को देखेगा और फिर कोई फैसला लेगा।
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ज्ञात हो कि वर्तमान समय में कैसे भारत अपने हितों को सबसे ऊपर रख रहा है, उसका सबसे बड़ा उदाहरण रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान ही देखने को मिल गया था। लंबे समय से भारत और रूस के बीच के संबंध काफी अच्छे रहे हैं। बावजूद इसके दोनों देशों के बीच सैन्य उपकरणों के व्यापार के अलावा अन्य क्षेत्रों में व्यापार सीमित था परंतु युद्ध के कारण पैदा हुई स्थितियों का भारत ने लाभ उठाया और तमाम देशों के रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद उसके साथ व्यापार में जबरदस्त वृद्धि कर दी, जिससे फायदा भारत और रूस दोनों को ही हुआ। वर्तमान समय में भारत तमाम वैश्विक मंचों पर अपनी आवाज खुलकर रखता नजर आ रहा है। कुछ माह पूर्व विश्व व्यापार संगठन (WTO) की बैठक में भी भारत का अपना डंका बजा था। WTO के मंच पर भारत अपने विषय पर अड़ा रहा और वो पीयूष गोयल ही थे, जिन्होंने इस दौरान विकसित देशों को अपनी मांगे मानने पर विवश किया था।
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