अपने उसूलों से समझौता करना न कल भारत को स्वीकार्य था, न आज है और न आगे कभी होगा। कोई कितना भी बड़ा निकाय क्यों न हो, अगर वो भारत को दबाव के साथ सशर्त कुछ भी करने की योजना बनाएगा तो भारत का वही रुख होगा जो पहले RCEP के समय था और हाल ही में जो IPEF के माध्यम से पता चला है। ऐसा कोई भी प्रयास जो भारत को किसी के प्रति बाध्य करे ऐसा निर्णय आज की सरकार लेने के लिए कभी अपनी सहमति व्यक्त नहीं करेगी। ऐसे में भारत को आईपीईएफ में स्थान दिलाने के लिए पीयूष गोयल ने आरसीईपी मास्टरस्ट्रोक दोहराया है जो यह बताने के लिए काफी है कि भारत अपनी शर्तों और अपने मानदंडों से कभी न डिगा है और न ही कोई उसे डिगा पाएगा।
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पीयूष गोयल ने क्या कहा है?
दरअसल, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने शनिवार को कहा कि समान विचारधारा वाले, नियम-आधारित, पारदर्शी देशों के समूह को एक साथ लाने के लिए इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान उपयोगी चर्चा हुई थी। गोयल ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि भारत ने चर्चा की सभी विभिन्न धाराओं में पूरी तरह से लगे हुए हैं, इस पर प्रकाश डालते हुए कि आपूर्ति श्रृंखला, कर और भ्रष्टाचार विरोधी और स्वच्छ ऊर्जा से संबंधित चार स्तंभों में से तीन पर, भारत परिणाम और पाठ के साथ सहज था।
इसके साथ ही भारत ने इस बार 14 सदस्यीय हिन्द-प्रशांत आर्थिक प्रारूप (IPEF) के व्यापार समूह से फिलहाल खुद को अलग रखा है। हालांकि, बाकी तीन क्षेत्रों- आपूर्ति श्रृंखला, हरित अर्थव्यवस्था और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था से जुड़ने का फैसला किया है। पर चूंकि कुछ विषयों पर बात होनी और चर्चा होनी बाकी है तो भारत ने स्वयं को IPEF के व्यापार समूह से अलग रखा है। यह ठीक वैसा ही है जो भारत ने पूर्व में RCEP के साथ किया था।
ज्ञात हो कि “सबसे बड़े” क्षेत्रीय व्यापार समझौते के रूप में वर्णित, आरसीईपी मूल रूप से 15 देशों-आसियान सदस्यों और उन देशों के बीच की धुरी है। नवंबर 2020 को, 15 देशों ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में अपनी भागीदारी को मजबूत किया। यहां तक कि 2019 में चर्चा से बाहर रहने के बाद भारत ने RCEP से बाहर रहने का विकल्प चुना था। इस एक कदम से नये व्यापारिक ब्लॉक ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के लिए वार्ता की मेज पर लौटने के लिए दरवाजा खुला रहेगा। बता दें कि, RCEP का उद्देश्य इन देशों में से प्रत्येक के उत्पादों और सेवाओं को इस क्षेत्र में उपलब्ध कराना आसान बनाना था। इस सौदे को तैयार करने के लिए बातचीत 2013 से चल रही थी और नवंबर 2019 में अपने फैसले तक भारत के हस्ताक्षरकर्ता होने की उम्मीद थी। लेकिन यह भारत का रुख था जो उसने चुना और स्वयं को RCEP से बाहर रखा।
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जल्दबाजी में निर्णय लेना भारत के अनुकूल नहीं
उसी तरह इस बार हिन्द-प्रशांत आर्थिक प्रारूप (IPEF) के व्यापार समूह से अलग रहकर भारत प्रदर्शित करना चाह रहा है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अभी कई मुद्दे हैं जिन पर आपसी सहमति शेष है, ऐसे में जल्दबाज़ी में कोई भी निर्णय लेना वर्तमान परिस्थितियों में भारत के अनुकूल नहीं है। केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने स्वयं कहा है कि “व्यापार से संबंधित समूह में सभी देशों के बीच खासकर पर्यावरण, श्रम, डिजिटल व्यापार, सार्वजनिक खरीद से संबंधित रूपरेखा के बारे में व्यापक सहमति बननी अभी बाकी है। हमें यह देखना है कि सदस्य देशों को व्यापार से संबंधित किस तरह के लाभ होंगे।” उन्होंने इस बारे में भी अनिश्चितता जतायी कि इस प्रारूप के तहत एक उभरती अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए किफायती एवं कम लागत वाली ऊर्जा को लेकर किसी तरह का भेदभाव तो नहीं किया जाएगा।
ऐसे में पहले स्वयं को मज़बूत, आत्मनिर्भर बनाने की कवायद में भारत सारे बिंदुओं को अपने पाले में करने की योजना बना रहा है ताकि जो सम्मान एक कदम पीछे लेकर RCEP से बाहर रहने के बाद मिला था, ठीक वैसा ही हिन्द-प्रशांत आर्थिक प्रारूप (IPEF) के व्यापार समूह से अलग रहकर भी होने की ओर परिलक्षित है। इस कहानी में सबसे अहम भूमिका दो देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) निभाने जा रहा है और इस वर्ष की शुरुआत से भारत ने यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ FTA करने के साथ ही इस वर्ष के अंत तक भारत दो अन्य देशों ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ FTA की सारी प्रक्रियाएं पूरी करने वाला है।
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