रेलवे की खाली जमीन दशकों से बंजर पड़ी थी और फिर आए नरेंद्र मोदी

रेलवे को अब हर वर्ष होगा 30,000 करोड़ से अधिक का लाभ.

पीएम मोदी

Source- TFI

देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले वर्ष 15 अगस्त को एक योजना आरंभ करने की घोषणा की थी, जिसका नाम था प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना। इसके माध्यम से सरकार देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करना चाहती है। इस दिशा में एक बड़ा कदम आगे बढ़ाते हुए सरकार ने भारतीय रेलवे की खाली पड़ी जमीन को लेकर बड़ा निर्णय लिया है। दरअसल, अब सरकार रेलवे की खाली जमीन को 35 वर्षों की लंबी अवधि के लिए लीज पर देने जा रही है। साथ ही साथ सरकार द्वारा रेलवे लैंड लीज (LLF) की फीस में भी भारी कटौती करने का निर्णय लिया गया है।

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बुनियादी ढांचें को मजबूत करने हेतु हो रहे बदलाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने एक बैठक की, जिसमें रेल लैंड लीज में बदलाव को मंजूरी दी गई है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और धर्मेंद्र प्रधान ने इसके बारे में जानकारी दी। नई नीति के अनुसार अब रेलवे की खाली जमीन 35 वर्षों तक के लिए लीज पर दिया जा सकेगा, पहले यह अवधि केवल पांच ही वर्ष थी। इसके अतिरिक्त सरकार अगले पांच वर्षों में 300 कार्गो टर्मिनल विकसित करने की तैयारी में है, जिससे रोजगार के लाखों अवसर पैदा होंगे और रेलवे की कमाई में जबरदस्त वृद्धि होगी। साथ ही सरकार ने रेलवे की जमीन के LLF में भी बड़ी कटौती की है। लैंड लाइसेंस फीस को 6 प्रतिशत से घटाकर 1.5 प्रतिशत कर दिया गया है। रेलवे की जमीन का उपयोग सरकारी निजी कंपनी भागीदारी (PPP) के तहत स्कूल और अस्पताल बनाने के लिए भी किया जा सकेगा।

सरकार के फैसले के अनुसार रेलवे की जमीन का उपयोग अब 35 वर्षों के लिए एक रुपये प्रति वर्ग मीटर प्रति वर्ष की दर से सोलर, सीवेज और वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के लिए भी किया जा सकेगा। वहीं, अस्पताल और स्कूल निर्माण के लिए जमीन को 60 वर्ष के लिए 1 रुपये प्रति स्क्वायर प्रति वर्ष के हिसाब से इस्तेमाल किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के अनुसार रेलवे की जमीन को दीर्घावधि के लए पट्टे पर देने की नीति अगले 90 दिनों में लागू होगी।

देखा जाए तो पूरे देश में रेलवे का नेटवर्क फैला हुआ है। देश में सबसे अधिक जमीन रेलवे के नाम पर ही है। रेल मंत्रालय के कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो मालूम चलता है कि 31 मार्च 2021 तक भारतीय रेलवे के पास 4.84 लाख हेक्टेयर जमीन थी, जिसमें रेलवे स्टेशनों से लेकर रेल लाइनों का जाल बिछा हुआ है। परंतु इसमें 62 हजार हेक्टेयर जमीन ऐसी थी जो खाली पड़ी है यानी उसका उपयोग कोई नहीं कर रहा है। अब रेलवे की इसी खाली पड़ी जमीन का उपयोग करते हुए केंद्र सरकार ने देश के बुनियादी ढांचे को भी मजबूत करते हुए ये बड़े बदलाव किए हैं।

रेलवे को हर वर्ष होगा 30,000 करोड़ का अतिरिक्त लाभ

भारत सरकार द्वारा लिए गए इन निर्णयों से कई लाभ होने वाले हैं। एक अनुमान के अनुसार, 300 गति शक्ति कार्गो टर्मिनल के शुरू होने के बाद माल ढ़ुलाई सेवाओं से भारतीय रेलवे का राजस्व कम से कम 30,000 करोड़ रुपये सालाना बढ़ने की संभावना है। इन 300 टर्मिनलों की स्थापना से 30,000 लोगों को प्रत्यक्ष और 90,000 लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर मिलेंगे। वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, इन टर्मिनलों के विकसित होने से मालभाड़ा राजस्व मिलना शुरू होगा। वहीं, जब एक बार सभी टर्मिनल चालू हो जाएंगे तो इससे रेलवे को लगभग 30,000 करोड़ रुपये का राजस्व मिलेगा।

इसके अलावा यह सरकारी कंटेनर कंपनी कॉन्कोर के लिए भी फायदेमंद साबित होने वाला है। दरअसल, कॉन्कोर मौजूदा समय में आर्थिक बोझ में दबी हुई है। वित्त वर्ष 2020 में कंपनी पर 140 करोड़ रुपये का आर्थिक बोझ था, जो वित्त वर्ष 2021 में बढ़कर 590 करोड़ रुपये हो गया। वर्ष 2020 तक तो यह सरकारी कंपनी होने के कारण रियायती दरों पर लीज का लाभ लेती थी। परंतु फिर सरकार ने एक आदेश जारी किया, जिसके अनुसार सरकारी और निजी कंपनियों से एक समान लीज फीस वसूली जाने लगी, जिससे कॉन्कोर को 6 फीसदी फीस का भुगतान करना पड़ रहा था और उसके मुनाफे पर प्रभाव पड़ रहा था। फिलहाल कॉन्कोर में सरकार की हिस्सेदारी 55 प्रतिशत है। सरकार कॉन्कोर में अपनी हिस्सेदारी बेचने पर भी विचार कर रही है। हालांकि, इन सबके बीच सरकार ने जो निर्णय लिए है, उससे कॉन्कोर को काफी लाभ मिलने की उम्मीदें हैं।

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