भारत जोड़ने निकले कांग्रेस के ऑल वैदर पीएम प्रत्याशी और कांग्रेस के एकमात्र चश्मोचिराग राहुल गांधी अपनी पार्टी के गुटों को जोड़ने पर ध्यान देते तो ज़्यादा सही होता। जहां गिने चुने दो राज्यों में कांग्रेस के सीएम हैं और उन राज्यों के सीएम तक में रार की ख़बरें सबके सामने हैं, ऐसे में राहुल गांधी का कथित रूप से भारत जोड़ो यात्रा निकालना बेहद हास्यास्पद था। ऐसी परिस्थिति में एक कहावत है जो पूरी कांग्रेस पर चरितार्थ होती है कि ‘जिनके घर शीशे के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फ़ेंका करते।’ ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि भारत जोड़ने की कवायद में कांग्रेस स्वयं टूटती जा रही है और चश्मोचिराग जी को कोई मतलब ही नहीं है। ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा 30 सितंबर को कर्नाटक पहुंचने वाली है और ऐसी खबरें हैं कि राहुल गांधी के कर्नाटक पहुंचते ही कांग्रेस के कर्नाटक के दिग्गज नेता डीके शिवकुमार पार्टी को अलविदा कह सकते हैं।
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सिद्धारमैया और शिवकुमार में जंग
दरअसल, कांग्रेस के एक ऐसे तारणहार जो भारतीय राजनीति में रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स के जनक कहे जाते हैं, वो डीके शिवकुमार कांग्रेस से अलग हो सकते हैं। उनके अलग होने का कारण भी वही होगा जो अबतक के असंख्य नेताओं का रहा है। जहां उन्हें पद तो दे दिया जाता है पर उनके हाथों में शक्तियां नहीं होती। कुछ ऐसा ही डीके शिवकुमार के साथ भी हो रहा है। जिस कर्नाटक में जुलाई 2019 तक कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी और एच डी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री थे, उसके बाद सरकार अल्पमत में आई और पुनः भाजपा राज्य की सत्ता में आ गई। उस समय कांग्रेस को सरकार जाने के बाद पार्टी स्तर पर स्वयं को मजबूत रखने की चुनौती थी। मज़बूत न रहती तो विपक्ष की भूमिका निभाने में असफल हो जाती और कांग्रेस दो दिन की मेहमान बनकर रह जाती।
यही कारण था कि कांग्रेस आलाकमान ने अपने पुराने विश्वासपात्र डीके शिवकुमार को कांग्रेस की कर्नाटक इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया और यह तय किया कि भाजपा को घेरने के लिए डीके शिवकुमार के अतिरिक्त और कोई विकल्प था ही नहीं। पर जैसा कि कांग्रेस पार्टी का दस्तूर रहा है कि यहां सब ठीक रहे या स्थिर रहे ऐसा तो होने से रहा। यहां डीके शिवकुमार के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के ही नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया उभरकर सामने आए।
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा 30 सितंबर को कर्नाटक में प्रवेश करने के लिए तैयार है और यहां यह यात्रा पूरे 22 दिनों के लिए निर्धारित की गई है पर पार्टी के राज्य प्रमुख डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच की रार ने फिर से राज्य इकाई में मतभेदों का खुलासा किया है। शुक्रवार को एक बैठक में शिवकुमार ने सिद्धारमैया गुट पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने राजनीतिक विश्लेषण करने के लिए राजनीतिक रणनीतिकार सुनील कानून गोलू के नेतृत्व में एक अलग टीम नियुक्त की है।” उन्होंने आगे कहा, “सभी निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग 600 लोग हैं, जो कांग्रेस के सभी संभावित उम्मीदवारों को देख रहे हैं। हम उन्हें जानते हों या नहीं जानते हों। वे सभी मौजूदा जीतकर आए हुए, हारे हुए और महत्वाकांक्षी विधायकों को देख रहे हैं।”
खबरों की माने तो सिद्धारमैया समूह खुद का वर्चस्व स्थापित करने की जुगत में खुद रथ यात्रा निकालने की योजना बना रहा है। कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व सीएम का मार्च, 1999 में पूर्व सीएम एसएम कृष्णा के नेतृत्व वाली पांचजन्य यात्रा की तर्ज पर होगा। एक पार्टी के रूप में जहां सिद्धारमैया जैसे नेताओं को इस चिंता करनी थी कि आलाकमान ने जिस भारत जोड़ो यात्रा का आह्वान किया है उसकी पूर्ति हो उसके लिए मतभेदों और गुटबाज़ी से ऊपर उठकर राज्य में कांग्रेस की स्थिति सुधारने के लिए जुटना चाहिए था पर नहीं ये तो लगे हैं पार्टी की जड़ें खोदने में। इन्हीं कारणों से डीके शिवकुमार स्वयं को असहाय और विवश महसूस कर रहे हैं। संभवतः यही उनके कांग्रेस से विदाई का कारण भी बनेंगे।
कांग्रेस के लिए ‘लकी बॉय’ रहे हैं डीके शिवकुमार
यहां यह जानना महत्वपूर्ण हो जाता है कि डीके शिवकुमार के जाने से कांग्रेस क्या खोएगी? बता दें कि डीके शिवकुमार कांग्रेस को उस समय से बचाते आए हैं जब कांग्रेस सत्ता में होने के बावजूद अपनी सरकारों, राज्यसभा चुनावों में हार की स्थिति में आ जाती थी। कई बार बहुमत परीक्षण में डीके शिवकुमार ने ही कांग्रेस की साख बचाई थी। भारत में अगर किसी को रिजॉर्ट पॉलिटिक्स लाने का श्रेय दिया जाए तो वह डीके शिवकुमार ही होंगे। ज्ञात हो कि 2017 के गुजरात राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के विधायक एक-एक कर भाजपा में शामिल होते जा रहे थे और अहमद पटेल हार की कगार पर थे तब कांग्रेस के बचे 44 विधायकों को बेंगलुरु के पास डीके शिव कुमार के “ईगलटन” रिज़ॉर्ट में ही लाया गया था।
जब विधायकों को बस से हैदराबाद ले जाया गया तो उस बस में सबसे आगे डीके शिवकुमार स्वयं बैठे थे। लेकिन यह पहली बार नहीं था जब डीके शिवकुमार का रिज़ॉर्ट कांग्रेस के लिए लकी साबित हुआ हो। उससे पहले वर्ष 2002 में जब महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख की सरकार पर खतरा आया तब वहां के विधायकों को कांग्रेस शासित कर्नाटक भेज दिया गया था। ये विधायक कर्नाटक के तत्कालीन शहरी विकास मंत्री डीके शिवकुमार के रिज़ॉर्ट में रुके थे और विलासराव देशमुख अपनी कांग्रेस सरकार बचाने में सफल रहे थे। ऐसे व्यक्ति का कांग्रेस से अलग होना कांग्रेस के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होगा।
सारगर्भित बात यही है कि कांग्रेस की इसी अंदरूनी गुटबाज़ी और आपसी कलह ने उसे कई राज्यों में शून्य पर लाकर खड़ा कर दिया है। यही गुटबाज़ी है जो राजस्थान में अशोक गहलोत-सचिन पायलट की कलह की वजह बनी, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल-टी एस सिंह देव की रार का कारक बनी, ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जिन्होंने कांग्रेस को जमीन से हटा, जमीन में ही ठूस दिया। फिर भी कांग्रेस आलाकमान कांग्रेस जोड़ो नहीं भारत जोड़ो यात्रा निकाल रही है।
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