‘सेक्युलरिज़्म’ भारत के संविधान में सदैव जुड़ा रहना चाहिए

सेक्युलरिज्म 'ढाल' है!

सेक्युलरिज्म

“भारत एक सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है” यह शब्द सुनने पर यदि कोई सबसे अधिक आक्रोशित होता है तो वो है भारत का हिंदू समुदाय। हिंदू समाज का एक वर्ग ऐसा है जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से केवल इसलिए नाराज रहता हैं क्योंकि पीएम मोदी ने देश को हिंदू राष्ट्र नहीं घोषित किया। उन्हें लगता हैं कि पंत प्रधान नरेंद्र मोदी अपने मूल्यों, अपने वादों से पीछे हट चुके हैं और भाजपा अब अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि भूलकर धर्म निरपेक्षता की बात करने लगी है। वहीं यदि हम अपने लेख की पहली पंक्ति को थोड़ा-सा बदल दें, तो निश्चित ही दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लोगों में खुशी की लहर दौड़ जाएगी और वे मोदी को भगवान की तरह मानने लगेंगे। अगर हम कहें- ‘भारत एक धर्मनिरपेक्ष हिंदू राष्ट्र है’ तो सभी चीजें ठीक हो सकती हैं। सत्य कहें तो आज के वक्त में देश की नरेंद्र मोदी सरकार इसी एजेंडे पर काम कर रही थी, लेकिन आखिर यह सेक्युलरिज्म और हिंदू राष्ट्र का संबंध क्या है‌? चलिए आपको इसको समझाते हैं।

संविधान में जुड़ा सेक्युलर शब्द

वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “सोशलिस्ट और सेक्युलर” शब्द जुड़वाए थे, जिस पर दक्षिणपंथियों को सबसे अधिक आपत्ति हुई थी। उनका कहना था कि इसकी आड़ में कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण करती हैं। परंतु हकीकत तो यह है कि इन शब्द के जुड़ने से पूर्व भी  कांग्रेस मुस्लिमों को लुभाने के प्रयास करती ही आ रही थी। यदि 1976 से पहले मुस्लिम तुष्टीकरण न होता तो राम मंदिर का मामला पहले ही कांग्रेस द्वारा निपटा लिया गया होता। किंतु सच यह है कि कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भी हमेशा राजनीति करने की ही कोशिश की। वहीं बाद में मुस्लिमों को लुभाने के लिए “सेक्युलर” शब्द का झुनझुना मुस्लिम समुदाय को पकड़ा दिया गया।

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वहीं कांग्रेस ने तो सेक्लुअर शब्द को भारतीय संविधान से जोड़ दिया था। ऐसे में देश की जनता भाजपा से उम्मीद लगाए बैठी थी कि जब भी कभी उसकी सरकार सत्ता में आएगी, तो अवश्य ही सेक्युलरिज्म शब्द को भारतीय संविधान से हटा देगी, लेकिन ऐसा अब तक होता नहीं दिखा। सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 90 के दशक में बनी और 5 साल तक सत्ता में भी रही, परंतु इस दौरान इसको लेकर कोई कदम नहीं उठाए गए। भाजपा ने गठबंधन की सरकारों का हवाला दिया। अहम यह है कि जो अटल बिहारी वाजपेयी जी सत्ता में आने से पहले ‘हिन्दू तन मन हिंदू जीवन’ नाम की कविता गाते थे उन्होंने भी इस सेक्युलर शब्द को अपना लिया।

पर्दे के पीछे का खेल कुछ और है

अटल जी की सरकार के बाद भाजपा केंद्रीय सत्ता से फिर दस वर्षों तक दूर रही। हालांकि इसके बाद साल 2013 में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार के दौरान घोर दक्षिणपंथी और वामपंथी एक ही सोच लिए हुए थे। दक्षिणपंथी खुश थे कि भारत हिंदू राष्ट्र बनने वाला है और यहां मुस्लिमों का रहना मुश्किल होगा। हालांकि साल 2014 के बाद ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करते रहे और वैश्विक स्तर पर एक बड़े राजनेता के तौर पर उभरे। पीएम मोदी ने दूसरे कार्यकाल के बाद तो अपने नारे में ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास’ शब्द भी जोड़ दिया था। तब से नरेंद्र मोदी के समर्थक उनसे भी चिढ़े बैठे हैं।

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गौरतलब है कि प्रधानमंत्री भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, वैश्विक स्तर पर जहां पश्चिमी देश वामपंथी सोच वाले हैं तो ऐसे में उनके बीच स्वीकृति पाने के लिए यह आवश्यक है कि भारत कट्टरता के रास्ते पर न आगे बढ़े। इसीलिए पीएम हमेशा सबको साथ लेकर चलने और सर्वधर्म समभाव की बात करते हैं। सबको दिखाने के लिए भले कुछ भी हो, परंतु पर्दे के पीछे की कहानी तो यही है कि भाजपा सरकार अपने अधिकतम निर्णय वही लेती है, जो देश के बहुसंख्यकों यानी हिंदुओं के पक्ष में हो।

अनुच्छेद-370 जो सबसे संवेदनशील मुद्दा था उसे खत्म करते हुए गृहमंत्री ने संसद में संबोधन दिया था। राम मंदिर का निर्णय भले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया था, लेकिन सुनवाई के लिए केंद्र सरकार ने कोर्ट से मांग अवश्य की थी‌। देखा जाए तो यह दोनों ही निर्णय देश के बहुसंख्यक यानी हिंदू समुदाय के हित में थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही सामने आकर उन्होंने सर्वधर्म समभाव की बात की हो, लेकिन पर्दे के पीछे से मजबूत हिंदू समुदाय हुआ।

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CAA जैसा विवादित कानून गृह मंत्री अमित शाह ने पारित कराया और पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने के मुद्दे पर हिंदुओं को मजबूती मिली। इतना ही नहीं गृहमंत्री सीएए विरोध के दौरान आक्रामक रहे। इस दौरान भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले न हों लेकिन हिंदू समुदाय के उत्थान को वे समर्थन देते रहे। प्रधानमंत्री के पद की गरिमा रखते हुए हिंदुत्ववादी बात नहीं करते हैं लेकिन देखा जाए तो उनकी सरकार का एक-एक काम हिंदू हितकारी हैं।

सेक्युलरिज्म भारत के लिए लाभदायक है

गृहमंत्री अमित शाह से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और हिमंता बिस्वा सरमा जैसे नेता लगातार हिंदुओं के हितों में फैसले ले रहे हैं। वहीं पीएम मोदी इन सभी के कार्यों को अपने सेक्युलरिज्म वाले सर्वधर्म समभाव और सबका साथ सबका विकास के नारों में ढक ले रहे हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए, तो वैश्विक स्तर पर भारत को प्रबल बनाने और सभी पश्चिमी देशों की स्वीकृति पाने के लिए सेक्युलरिज्म शब्द भारत के लिए लाभदायक है।

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सटीक शब्दों में कहें तो सेक्युलरिज्म शब्द एक मुखौटा है जो कि भारत के संविधान में लिखा हुआ अच्छा लगता है। प्रधानमंत्री का पद इस शब्द पालन करता दिखता है और वैश्विक पश्चिमी ताकतें देखना भी ऐसा ही चाहती हैं। वहीं इस मुखौटे के पीछे वो सारे काम होते हैं जिनके पीछे हिंदुओं और बहुसंख्यक समुदाय का हित छिपा होता है। इस दौरान सेक्युलरिज्म को तो केवल एक ढाल की तरह उपयोग किया जा रहा है।

सरल शब्दों में कहें तो इंदिरा गांधी द्वारा दिया गया सेक्युलरिज्म शब्द भारत के हिंदू राष्ट्र बनने की परिकल्पना करने वालों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि इस सेक्युलर शब्द की आड़ में ही धीरे-धीरे भारत अपने मूल मकसद यानी हिंदुत्व को अपना चुका है और इसके पीछे पूरा खेल देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है।

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