‘खतियान 1932′ और ’77 फीसदी आरक्षण’, हेमंत सोरेन का राजनीतिक अंत कर देंगे

हड़बड़ाहट में सोरेन ने जो किया, वो बहुत ख़तरनाक है!

hemant soren

परिवार सहित राजनीतिक संन्यास पर जाने की आहट के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बिलबिला उठे हैं। इस बिलबिलाहट में वो ऐसे कदम उठाने को आतुर बैठे हैं कि अब तक तो सोरेन सरकार अपने अंत की ओर बढ़ रही थी, लेकिन अब लगता है कि वह पूर्णरूपेण खत्म हो चुकी है। हुआ यह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड कैबिनेट ने बुधवार को दो विधेयकों को मंजूरी दी है। एक राज्य में अधिवास के आधार के रूप में 1932 के भूमि रिकॉर्ड को ठीक करना और दूसरा सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए नौकरियों में आरक्षण को बढ़ाकर 77% करना। इसमें सबसे बड़ा विवाद जो सामने आया है वो यह है कि झारखंड में स्थानीय वही होंगे, जिनके पास 1932 का खतियान होगा।

दो विवादित विधेयक

दरअसल, बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य के स्थानीय निवासी की परिभाषा, पहचान व झारखंड के स्थानीय व्यक्तियों की परिणामी सामाजिक एवं अन्य लाभों के लिए विधेयक-2022 के गठन को मंजूरी दी गयी है। इसके तहत ही झारखंड के स्थानीय होने की पहचान होगी। विधेयक के प्रस्ताव में प्रावधान किया गया है कि जिनके पूर्वजों का नाम 1932 या पूर्व के सर्वे खतियान में दर्ज है, वही स्थानीय होंगे। मतलब अब सोरेन सरकार अपने हिसाब से यह मानक बनाकर तय करेगी। वैसे ही झारखंड अभी इस्लामिक टेरर, लव-जिहाद और अन्य कई सारे त्रास से जूझ रहा है, इसी बीच हेमंत सोरेन की विधानसभा में एक विधायक के रूप में सदस्यता तक जाती दिख रही है पर बिलबिलाए हेमंत सोरेन ने कुछ भी करने का ऐसा मन बनाया कि आरक्षण और 1932 का खतियान याद आ गया।

इन दो विधेयकों के बारे में जानकारी देते हुए झारखंड कैबिनेट सचिव वंदना दादेल ने कहा कि कैबिनेट ने इन दोनों विधेयकों को राज्य विधानसभा से मंजूरी के बाद केंद्र को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के प्रस्तावों को भी मंजूरी दे दी है। नौवीं अनुसूची में एक कानून न्यायिक समीक्षा से परिरक्षित है। मुख्यमंत्री सोरेन की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक के बाद दादेल ने कहा, “मंत्रिमंडल ने स्थानीय व्यक्तियों की झारखंड परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्तियों के लिए परिणामी, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों का विस्तार करने के लिए विधेयक, 2022” को मंजूरी दी है। “बिल के अनुसार, जिन लोगों के नाम उनके पूर्वजों के नाम 1932 या उससे पहले के खतियान (भूमि अभिलेख) में हैं, उन्हें झारखंड का स्थानीय निवासी माना जाएगा।” इसके अलावा, जो भूमिहीन हैं या जिनके पास 1932 के खतियान में उनके या उनके परिवार के नाम नहीं हैं, संबंधित ग्राम सभा को उनकी भाषा, प्रथागत परंपराओं के आधार पर उन्हें प्रमाणित करने का अधिकार होगा।

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कैबिनेट द्वारा पारित दूसरे विधेयक में समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए राज्य की नौकरियों में आरक्षण को 60% से बढ़ाकर 77% करने का प्रस्ताव है। “बिल के अनुसार, अनुसूचित जनजाति (एसटी) का आरक्षण 28% (26% से), ओबीसी को 27% (14% से ऊपर) और अनुसूचित जातियों के लिए 12% (10% से ऊपर) मिलेगा।” “ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए 10% आरक्षण को शामिल करने के बाद, कुल आरक्षण 77% हो जाएगा।”

इससे पहले, रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने राज्य के अधिवास का निर्धारण करने के लिए 1985 को आधार वर्ष के रूप में निर्धारित किया था। झारखंड हाई कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया था। विभिन्न सरकारी लाभों का दावा करने के लिए अधिवास नीति आवश्यक है। इसीलिए, 1932 खातियान आधारित अधिवास नीति बनाने की सरकार की घोषणा लाखों निवासियों के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी। सोरेन सरकार को इस फैसले के लिए कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विपक्षी दल, भाजपा ने इन दो मसौदा प्रस्तावों के लिए झामुमो सरकार को लताड़ा है।

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झामुमो सरकार का पाखंड

भाजपा ने झामुमो सरकार के पाखंड की ओर इशारा करते हुए इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि अपने बजट भाषण के दौरान सीएम हेमंत सोरेन ने 1932 की कट ऑफ टाइम लाइन का विरोध किया था। मार्च में, सीएम सोरेन ने घोषणा की थी कि 1932 को कट ऑफ वर्ष बनाना कानूनी रूप से बनाए रखने योग्य नहीं होगा।

भाजपा ही नहीं, स्वयं हेमंत सोरेन के साथी उनके विरोध में उतर आए हैं। सोरेन को गठबंधन सहयोगियों सहित अपने ही समर्थकों के एक वर्ग की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस सांसद और कार्यकारी अध्यक्ष गीता कोड़ा और झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह, निर्दलीय विधायक सरयू रॉय ने इस कदम पर नाराजगी व्यक्त की है। विधेयकों को अस्वीकार्य बताते हुए कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने कहा, ‘इस फैसले से झारखंड के कोल्हान क्षेत्र की आम जनता स्थानीय होने से वंचित हो जाएगी। अपने ही जन्मस्थान पर स्थानीय का दर्जा नहीं मिलने पर इस क्षेत्र के लोग प्रवासी ही रहेंगे। कोल्हान में सर्वेक्षण 1964, 65 और 70 में किया गया था। ऐसे में 1932 के खातियान को इलाके का आधार बनाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।’ उन्होंने मांग की कि बिलों पर पुनर्विचार किया जाए और झारखंड के फाइनल सर्वे सेटलमेंट को स्थानीयता का आधार बनाया जाए।

अब जब स्वयं सोरेन अपने ही साथियों के विरोध का सामना कर रहे हैं तो इससे हास्यास्पद और क्या ही होगा। अब अगर केबिनेट की मंज़ूरी मिल गयी है तो इसका मतलब तो यही हुआ कि यह तुगलकी फरमान है जो हेमंत सोरेन ने जारी कर अपने अस्तित्व को भुनाने की कोशिश की है। हेमंत सोरेन के इन हताश उपायों में उन्हें अपनी ही पार्टी और सहयोगियों से चुनौती दी जा रही है। यदि बिल न्यायालयों द्वारा रद्द कर दिए जाते हैं या विधानसभा में पारित होने में विफल हो जाते हैं तो दोनों की संभावना अधिक होती है क्योंकि इसे भाजपा के साथ-साथ गठबंधन सहयोगियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है और यह प्रभावी रूप से सोरेन सरकार की अंतिम तिथि की घंटी होगी।

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