उद्धव ठाकरे के पास बस ‘ठाकरे’ सरनेम बचेगा, शिंदे की हो जाएगी शिवसेना

सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव का भविष्य तय कर दिया!

eknaath shinde

सुप्रीम कोर्ट से उद्धव ठाकरे को एक और झटका लगा है। कोर्ट ने चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक वाली उनकी याचिका खारिज कर दी है। इससे एक बात तय है कि बहुत जल्द ही आधिकारिक तौर पर शिवसेना का चुनाव चिह्न शिंदे गुट को मिल सकता है। आइए, विस्तार से पूरे मामले को समझते हैं।

महाराष्ट्र में इसी वर्ष जून में जो कुछ भी हुआ उसने महाराष्ट्र की राजनीति को हमेशा-हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। शिवसेना दो धड़ों में टूट गई, महाविकास अघाड़ी की सरकार गिर गई। शिवसेना के नेतृत्व की कार्यशैली और वैचारिक भटकाव पर सवाल खड़े करते हुए शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे ने बगावत का ऐलान कर दिया। शिंदे अपने साथ 39 विधायक लेकर महाराष्ट्र से पहले गुजरात, इसके बाद गुवाहाटी के लिए निकल गए। महाविकास अघाड़ी गठबंधन के पास सरकार से बाहर आने के सिवाय कोई और विकल्प नहीं था।

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उद्धव ठाकरे को लगा था झटका

सबसे बड़ा झटका उद्धव ठाकरे को तब लगा जब भाजपा ने अपना ट्रंप कार्ड खेला। भारतीय जनता पार्टी ने एकनाथ शिंदे कैंप को अपना समर्थन दे दिया। इस समर्थन के साथ ही शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए और शिवसेना पर उन्होंने अपना दावा ठोंक दिया। पार्टी पर दावा ठोंकना था कि उद्धव ठाकरे के हाथों में कुछ नहीं बचा। पार्टी के ज्यादातर विधायक धीरे-धीरे शिंदे कैंप में शामिल हो गए। कई सांसदों ने भी शिंदे कैंप को समर्थन दे दिया। बात यहीं नहीं रुकी ठाकरे परिवार के कई सदस्यों ने भी अपना समर्थन शिंदे कैंप को दे दिया।

जमीन पर कार्यकर्ताओं को यह समझ आने लगा था कि ठाकरे के हाथों में अब कुछ बचा नहीं है। ऐसे में कार्यकर्ता भी एकनाथ शिंदे को ही अपना नेता मानने लगे। उद्धव ठाकरे के नीचे की जमीन खिसक गई थी और ठाकरे कुछ नहीं कर पाए। ऐसे में ठाकरे ने शिवसेना को अपनी पार्टी बताने और उस पर दावा जताने का प्रयत्न किया। इसके लिए उन्होंने बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की कोशिशें भी कीं। इसके साथ ही उन्होंने यह साबित करने की कोशिश भी की कि पार्टी उन्हीं की है क्योंकि बाला साहब ठाकरे ने पार्टी बनाई थी और वो उनके बेटे हैं इसलिए पार्टी उनकी हो गई। दूसरी तरफ शिंदे कैंप भी सक्रिय हो गया, शिंदे कैंप ने शिवसेना को लेने के लिए, शिवसेना के चुनाव चिह्न को लेने के लिए चुनाव आयोग में लड़ाई छेड़ दी। चुनाव आयोग ने शिंदे की बात सुनते हुए, पार्टी किसकी है यह निर्णय करने के लिए कुछ सदस्यों की एक कमेटी बना दी। चुनाव आयोग में निरंतर इस मामले पर सुनवाई हो रही है।

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उद्धव के हाथ से पार्टी निकल जाएगी

एक तरफ तो चुनाव आयोग में इस मामले को लेकर कार्यवाही चल रही है तो वहीं दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे को स्पष्ट दिखाई दे गया कि पार्टी तो उनके हाथों से निकल जाएगी। इसके पीछे की वज़ह यह है कि पार्टी के विधायक और सांसद जिस नेता के पीछे खड़े होते हैं, चुनाव आयोग तो उसी को मुख्य पार्टी यानी चुनाव चिह्न दे देता है। बिहार में रामबिलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी के साथ भी यही हुआ था। चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने जब सासंदों को अपनी तरफ लेकर विद्रोह कर दिया तो चिराग के हाथों में कुछ नहीं बचा। पार्टी उनके चाचा को मिल गई।

उद्धव ठाकरे ने यह सब सोच-समझकर चुनाव आयोग की कार्यवाही को रोकने की कोशिशें शुरू कर दी। उन्होंने चुनाव आयोग की कार्यवाही के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर दी। अपनी याचिका में उद्धव ठाकरे ने कहा कि चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक लगनी चाहिए। लेकिन उद्धव ठाकरे को यहां से भी झटका लगा। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे की याचिका भी खारिज कर दी।

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चुनाव आयोग के निर्णय की प्रतीक्षा

उद्धव ठाकरे की याचिका पर सुनवाई करते हुए 23 अगस्त को न्यायधीश एनवी रमना की बेंच ने मामले को संवैधानिक बेंच को भेज दिया था। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग की कार्यवाही पर भी रोक लगा दी थी। अब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने चुनाव की कार्यवाही पर लगी रोक हटा दी है और उद्धव ठाकरे की याचिका को खारिज कर दिया है।

इसका अर्थ यह हुआ कि चुनाव आयोग अब शिवसेना का चुनाव चिह्न किसका है इस पर निर्णय करने के लिए स्वतंत्र है। बहुत जल्द हमें देखने को मिल सकता है कि चुनाव आयोग अपना निर्णय दे दे। निर्णय क्या होगा, यह हम सभी जानते हैं- शिवसेना का चुनाव चिह्न शिंदे कैंप को मिल जाएगा। इसका अर्थ यह हुआ कि वास्तविक शिवसेना एकनाथ शिंदे की हो जाएगी। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के पास बस ठाकरे सरनेम बचेगा, पार्टी नहीं बचेगी।

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