गैर-परंपरागत तकनीक से कैसे रनों की वर्षा कर लेते हैं सूर्यकुमार यादव?

सूर्यकुमार यादव के खेल को समझने के लिए इनकी तकनीक को समझना आवश्यक है।

suryakumar yadav

पिछले कुछ माह में भारतीय क्रिकेट टीम में एक नाम चारों दिशाओं में गूंज रहा है- सूर्यकुमार यादव का। ये न केवल टीम इंडिया के तारणहार सिद्ध हो रहे हैं, अपितु हाल ही में संपन्न हुए भारत-ऑस्ट्रेलिया टी-20 सीरीज़ में इनके कारण ही भारतीय टीम अपनी लाज बचाने में सफल हो पाई। यह अपने आप में इसलिए प्रशंसनीय है क्योंकि इनके जैसा बैटिंग पद्धति बहुत ही कम क्रिकेट के मैदान पर देखने को मिलती है और टेक्स्ट बुक के अनुसार ये पारंपरिक तो कतई नहीं कहलाएगा।

आप पूछोगे कि सूर्यकुमार यादव की बल्लेबाजी में समस्या क्या है? असल में बंधुवर ऑफ साइड में शॉट ही नहीं मारते। वे आम बल्लेबाजों की भांति बॉल पकड़ते। उनकी जो शैली है, वो ऐसी है कि ड्राइव और लेग साइड को छोड़ ऑफ साइड की ओर ताकते तक नहीं।

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सूर्यकुमार यादव की तकनीक

कहते हैं इसी कारण से सूर्यकुमार यादव प्रारंभ से घरेलू क्रिकेट में गंभीरता से लिए नहीं जाते थे। लगभग एक दशक तक उन्हें रणजी ट्रॉफी जैसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में अपना आधार स्थापित करने हेतु काफी संघर्ष करना पड़ा। ऐसा नहीं था कि उन्होंने प्रयास ही नहीं किया, परंतु जब परिस्थितियां आपके विरुद्ध हो तो आप अधिक कुछ नहीं कर सकते। जिस रैम्प शॉट के लिए इनकी एबी डिविलियर्स से तुलना की जाती है वही इनका संकटमोचक बना। इन्हें चार दिन के मैचों में अपने आप को बचाने हेतु कुछ तो करना था, सो यह तरीका निकाला।

परंतु ये स्थाई समाधान नहीं था, क्योंकि कई टीम इसका हल निकालने लगी और उसी अनुसार क्षेत्ररक्षक तैयार करने लगी थीं। अब सूर्यकुमार यादव के लिए स्थिति बद से बदतर होने लगी। परंतु उन्होंने भी ठान लिया कुछ भी हो जाए, झुकने का नहीं। वे भी वीरेंद्र सहवाग कि भांति अड़ियल रुख अपना लिए और शीघ्र ही इसका भी समाधान निकलने लगा।

सूर्यकुमार यादव ने अपने तकनीक का विश्लेषण किया और उन्हें समझ में आया कि यदि उन्होंने ऑफ साइड से रन बनाना प्रारंभ किया तो उनकी समस्या ठीक हो सकती है। परंतु यहां परेशानी यह थी कि यह कला केवल कुशल और फ्लेक्सिबल प्लेयर्स को ही आती थी और सूर्यकुमार यादव उतने पारंगत नहीं थे, विशेषकर ऑफ साइड पर।

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सूर्यकुमार ने अपनी शैली में किया बदलाव

परंतु सूर्यकुमार यादव ने ठान लिया- मेरे को अपना भाग्य और अपनी तकनीक बदलना है। उन्होंने अपनी शैली और अपने भोजन में व्यापक बदलाव किया। प्रारंभ में सायंकाल में पसीना बहाने के बजाए सूर्यकुमार यादव ने मध्यकाल में दोपहर 12 से 3 के बीच में पसीना बहाना प्रारंभ किया। इस दौरान पिच सूखे भी रहते हैं और स्पिन के विरुद्ध उनका खेल भी सुधरता है।

अब सूर्यकुमार यादव बहुमुखी व्यक्तित्व अपनाने को तैयार थे। वे पेस बॉलिंग को झेलने को तैयार थे, परंतु स्पिन बॉलिंग के समक्ष तनिक असहज हो जाते थे। अब वे किसी भी स्थिति में स्पिनर की धुलाई करने में भी सक्षम थे और बस तैयार हो गए वे आईपीएल के लिए।

आईपीएल में कुछ वर्षों तक संघर्ष करने के पश्चात उन्हें अवसर मिला 2018 में जब KKR के लिए, जहां उन्होंने अपना कौशल दिखाया। पेस और स्पिन को खेलते समय पैरों के बीच उनकी दूरी कैसी रहती थी इसका पैमाना आप इस चित्र के माध्यम से स्पष्ट लगा सकते हैं-

यही नहीं सूर्यकुमार यादव अपने बलिष्ठ कलाइयों का सदुपयोग करते हुए बल्ले का हल्का उपयोग करते हैं। वे विराट कोहली की भांति उसे कसकर नहीं पकड़ते और इसीलिए वे किसी भी दिशा में बॉल को धुन सकते हैं, चाहे वे फाइन लेग हो या लॉन्ग ऑफ।

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कभी टीम में जगह बनाने के लिए किया संघर्ष

जिस सूर्यकुमार यादव को कभी घरेलू क्रिकेट में भी जिसे अपनी जगह बनाने के लिए पापड़ बेलने पड़ते थे, अब उनके बिना भारतीय क्रिकेट टीम की कल्पना करना भी असहनीय है। इनकी प्रतिभा को जब वीरेंद्र सहवाग जैसे गैर पारंपरिक खिलाड़ी का प्रमाण मिले तो समझ जाइए कि इनमें कितनी प्रतिभा विद्यमान है।

सहवाग के 2021 के एक साक्षात्कार के अनुसार-

“सूर्यकुमार को लंबा मौका मिलना चाहिए। मुझे याद आता है कि हमारे में नए खिलाड़ी को सिर्फ एक या दो मैच नहीं खेलते थे। उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए दो या तीन सीरीज में मौका दिया जाता था। इंटरनेशनल क्रिकेट में सेटल होना आसान नहीं है। आप किसी युवा खिलाड़ी से उम्मीद नहीं कर सकते कि वह पहले ही मैच में शानदार प्रदर्शन करें। अगर वे ऐसा करते हैं तो यह सोने पर सुहागा होता है। लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट में दबाव करने का प्रदर्शन होता है। मुझे लगता है कि खिलाड़ियों को मौके अधिक मिलने चाहिए।”

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अब के सूर्यकुमार यादव कट भी लगाते हैं, पुल भी मारते हैं, हुक भी मारते हैं और ड्राइव भी मारते हैं, फ्लायर भी मारते हैं, और साथ ही रिवर्स स्वीप, पैडल यहां तक कि किचन सिंक तक लगा देते हैं। वे अपने आप में संपूर्ण बल्लेबाज हैं। उन्हें यदि कुछ रोक सकता है तो केवल अकर्मण्यता, जो अभी तो नहीं है और यदि ये नहीं रहा, तो क्या पता कि जो नहीं हुआ वर्षों से वो ऑस्ट्रेलिया में इस वर्ष हो जाए?

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