बांग्लादेश में हिंदू क्रिकेटर्स से इतना भेदभाव किया जाता है कि आप सोच भी नहीं सकते

हिंदू होने के कारण उन्हें हर रोज लड़ाई लड़नी होती है!

लिटन दास

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एक पोस्ट आपको भौकाल से ‘वोकानंद’ बना सकता है और एक पोस्ट आपको इस्लामिस्टों के कोपभाजन का शिकार भी बना सकता है। अंतर आपकी विचारधारा का है बस। कुछ ऐसा ही हुआ बांग्लादेशी क्रिकेटर लिटन कुमार दास के साथ, जो बांग्लादेश के सबसे प्रभावशाली प्लेयर्स में से एक हैं और जिन्होंने नवरात्रि के बांग्ला स्वरूप महालय के पावन पर्व के अवसर पर सबको बधाइयाँ भी दी परंतु वे कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। परंतु लिटन दास ने ऐसा किया क्या? केवल ये –

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अपने आधिकारिक अकाउंट से लिटन दास ने महालय की बधाइयाँ दी, जिसपर कट्टरपंथी उन्हें बांग्ला भाषा में ही उलाहने देने टूट पड़े और इस्लाम की महिमा गाने लगे। विश्वास नहीं होता तो स्वयं देख लीजिए –

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एक ने तो यहां तक लिख दिया, “ये मिट्टी के बने मूर्ति किसी काम के नहीं क्योंकि ये निर्जीव हैं, असहाय हैं। इबादत करनी है तो अल्लाह की करो, हमारे खुदा की करो” –

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आपको क्या लगता है, ये कोई नई बात है? बांग्लादेश कहने को एक ‘पंथनिरपेक्ष’ राष्ट्र है परंतु जब बात अल्पसंख्यकों के शोषण की आती है, तो पाकिस्तान से वह कहीं पीछे नहीं है। विश्वास नहीं होता तो सौम्या सरकार के मामले को ही देख लीजिए –

ध्यान देने वाली बात है कि अब क्रिकेट में भी धर्म दिखने लगा है। जी हां, बांग्लादेशी क्रिकेटर सौम्या सरकार के मामले में कुछ ऐसा ही हुआ है जहां एक बच्चे ने बांग्लादेशी खिलाड़ियों में मुस्लिम खिलाड़ियों से मिलने की इच्छा जताई लेकिन सौम्या सरकार से नहीं। उस बच्चे से जब इसका कारण पूछा गया तो उसने स्पष्ट तौर पर कहा कि सौम्या सरकार हिंदू हैं। सोचिए, एक नन्हे से बालक में आप ये विष भर रहे हैं कि आप इससे इसलिए मत मिलें या वार्तालाप करें क्योंकि वो इस पंथ का है। ये घृणा लेकर जाओगे कहां, जन्नत? अगर इनकी कोई वास्तव में जन्नत होती तो इतनी घृणा पर शायद ही इन्हें वो स्थान प्राप्त होगा। शायद शौर्य में ब्रिगेडियर रुद्र प्रताप सिंह इन लोगों के बारे में गलत नहीं कहते थे।

अब बांग्लादेश में कितने हिन्दू क्रिकेटर रहे हैं? अगर ध्यान दिया जाए तो बहुत अधिक नहीं थे परंतु कम भी नहीं थे क्योंकि उनके करियर ठीक ठाक चले। आलोक कपाली हो, तापस बैश्य हो और अब सौम्य सरकार, लिटन दास जैसे खिलाड़ियों के मामले को लेकर बांग्लादेश टीम में हिन्दू खिलाड़ियों का प्रभाव धीरे धीरे ही सही, पर दिखने लगा है। अधिकतम ये अपने योग्यता के बल पर आए हैं और इन्हे बहुत अधिक समर्थन नहीं मिला है प्रशासन से। परंतु ये स्थिति ऐसी क्यों है?

इसका उत्तर शायद दानिश कनेरिया बेहतर दे सकते हैं। अब आप सोचेंगे कि बांग्लादेश के हिन्दू क्रिकेटरों के साथ हो रहे शोषण में एक पाकिस्तानी हिन्दू क्रिकेटर का क्या काम? काम है, क्योंकि कथा कुछ अधिक भिन्न नहीं है। कुछ वर्ष पहले दानिश कनेरिया ने शाहिद अफरीदी की पोल पट्टी खोल दी थी। उन्होंने कहा था कि “मैं उनकी वजह से अधिक वनडे नहीं खेल सका और उन्होंने मेरे साथ गलत व्यवहार किया। जब हम डोमेस्टिक क्रिकेट (घरेलू क्रिकेट) में खेलते थे तब वह कप्तान थे। वह मुझे हमेशा टीम से बाहर रखते थे और एकदिवसीय टीम में भी हमेशा मेरे साथ ऐसा ही करते थे। वह बेवजह मुझे टीम से बाहर रखते थे।”

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बता दें कि पिछले वर्ष शोएब अख्तर ने पाकिस्तान में एक क्रिकेट चैट शो पर सनसनीखेज़ खुलासा किया कि कुछ खिलाड़ी धर्म के नाम पर बाकी खिलाड़ियों से भेदभाव करते थे। ‘गेम ऑन है’ नामक इस चैट शो में शोएब के साथ पूर्व कप्तान राशिद लतीफ और पूर्व मिडल ऑर्डर बल्लेबाज आसिम कमाल भी थे। विश्व के सबसे तेज़ गेंद फेंकने का रिकॉर्ड बनाने वाले शोएब अख्तर ने अपने साथी मोहम्मद यूसुफ (पहले उनका नाम यूसुफ योहाना था) को लेकर भी बयान दिया। उन्होंने कहा, “यूसुफ के 12 हजार रन होने थे लेकिन हमने उसे कभी सेफगार्ड नहीं किया। मेरी दो तीन प्लेयर्स से लड़ाई हुई। मैंने कहा कि अगर कोई हिंदू है तो भी वो खेलेगा। और उसी हिंदू ने हमें टेस्ट सीरीज जिताई।”

अब बताइए पाकिस्तान के लिए सबसे अधिक टेस्ट विकेट किसने चटकाए हैं? वसीम अकरम ने क्योंकि वे एक फास्ट बॉलर रहे हैं। पर उनके अतिरिक्त एक स्पिनर के रूप में सबसे अधिक विकेट किसने लिए? एक पाकिस्तानी हिन्दू दानिश कनेरिया ने, जिन्होंने 261 विकेट चटकाए, जो उनके सबसे प्रभावशाली स्पिन गेंदबाजों में से एक अब्दुल कादिर से भी अधिक है।

परंतु उन्हें क्या मिला?

जब 2019 में शोएब अख्तर ने कुछ पाकिस्तानी क्रिकेटरों पर अल्पसंख्यक क्रिकेटरों के साथ बदतमीजी का आरोप लगाया,तो दानिश ने उनका समर्थन करते हुए पूरा पोस्ट्मॉर्टेम किया और बताया कि खेल क्या है। दरअसल, दानिश कनेरिया ने शोएब अख्तर की बातें को सत्य सिद्ध करते हुए अपनी आपबीती सबके समक्ष साझा की। दानिश ने कहा, ‘मैंने शोएब अख्तर  का इंटरव्यू देखा। सच्चाई सामने लाने के लिए मैं उनका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं। साथ ही मैं उन सभी क्रिकेटरों का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूं, जिन्होंने मेरा समर्थन किया’। बता दें कि शोएब अख्तर ने एक चैट शो के दौरान कहा था कि दानिश हिंदू था। इसलिए उसके साथ नाइंसाफी हुई। कुछ प्लेयर्स को तो इस बात पर ऐतराज था कि वो हमारे साथ खाना क्यों खाता है?” इस दौरान उन्होंने मोहम्मद यूसुफ का भी उदाहरण दिया।

वास्तव में दानिश कनेरिया तो मात्र एक उदाहरण है, पाकिस्तान में गैर मुस्लिम निवासियों पर आए दिन अत्याचार किए जाते हैं। ईश निंदा के झूठे आरोपों में उन्हें फंसाया जाता है, युवा लड़कियों का अपहरण कर उन्हें जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया जाता है और जो लोग इसका विरोध करते हैं उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। दानिश ऐसे अकेले क्रिकेटर नहीं थे, जिनके साथ ऐसा हुआ था। पाकिस्तान के चुनिन्दा ईसाई खिलाड़ियों में से एक युसुफ योहाना के साथ भी बाकी टीम के खिलाड़ियों ने ऐसा बुरा बर्ताव किया। और उन्हें अंतत: अपना धर्म परिवर्तन कर नाम मोहम्मद युसुफ रखना पड़ा। अब सोचिए, जब ये हाल पाकिस्तान में हिन्दू क्रिकेटरों का है तो फिर बांग्लादेश तो पूर्वी पाकिस्तान ही तो था, कोई मंगल ग्रह से तो आया नहीं। अब यह बात यहीं पर खत्म नहीं होती।

आपको तिलकरत्ने दिलशान याद हैं? जी हां, श्रीलंका के वो प्रभावशाली क्रिकेटर, जिनके ताबड़तोड़ हिट आज भी अच्छे अच्छों की नींद उड़ा दे? वो प्रारंभ में मुसलमान थे परंतु शीघ्र ही वो अपने मां के पंथ यानी बौद्ध धर्म पर लौट आए। परंतु जब पाकिस्तान के साथ उनके मैच होते थे तो कुछ पाकिस्तानी खिलाड़ी उनके इसी पहचान का लाभ उठाकर उन्हें भड़काने का प्रयास करते थे। इससे अधिक घृणास्पद कुछ हो सकता है भला? यहां पर लिटन दास के साहस की प्रशंसा करनी होगी, जो इतने तांडव और हमलों के बाद भी अपने धर्म का अनुसरण कर रहे हैं। वहीं, दूसरी तरफ हमारे देश में कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो धर्म का नाम सुनते ही बगलें झांकने लगते हैं।

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