वक्फ बोर्ड को दिल्ली ‘बेचना’ चाहती थी UPA सरकार?

2014 चुनाव से पहले 6 दिन के अंदर पूरा खेल खेला गया।

WAQF BOARD

बहुत विडंबना की बात है कि भारत को मजहबी तौर पर पहले ही 2 भागों में बांटने के बाद उसका तीसरा खंड करने वाली कांग्रेसी मानसिकता ने पाकिस्तान और बांग्लादेश का निर्माण होने दिया। इसके बाद भी इनका मन नहीं माना और देश की संपत्ति को थोक के भाव में एक समुदाय विशेष को दान करने का उपक्रम रचा। उस समुदाय विशेष को किसी भी संपत्ति पर अपना वर्चस्व जमाने में कोई परेशानी न हो इसलिए उसको कानून लाकर संरक्षण भी दे दिया। परिणामस्वरूप आज देश में वक्फ बोर्ड़ सभी सरकारी संपत्तियों से लेकर निजी संपत्तियों पर अपना दावा पेश कर सकता है और उसके लिए यह अधिकार स्वयं पूर्ववर्ती सरकारें अर्थात यूपीए शासन के ज़िल्ल-ए-इलाही देकर गये हैं। यही नहीं 2014 में सरकार जाते-जाते भी पूरी दिल्ली वक्फ बोर्ड को बेचने पर तुली थी यूपीए सरकार और इसके प्रमाण आज सामने आ रहे हैं क्योंकि देश के कई कोनों से यह मामला सामने आ रहा है कि वक्फ बोर्ड ही सभी संपत्तियों का मालिक है, और सब तो नौकर-चाकर हैं।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे एक समय था जब यूपीए सरकार पूरी दिल्ली ही वक्फ बोर्ड को बेचने पर तुली थी।

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वक्फ को दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियां ‘उपहार’ में दी गयी

दरअसल, तमिलनाडु में हिंदू गांवों पर वक्फ के दावे के बीच नये घटनाक्रम ने वक्फ बोर्ड के रहस्यों का खुलासा किया है। 2014 के आम चुनावों से ठीक पहले यूपीए सरकार ने वक्फ को दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियां ‘उपहार’ में दी थीं। दरगाह साहिब, मुस्लिम कब्रिस्तान (लोधी रोड) और मिंटो ब्रिज (कनॉट प्लेस) वक्फ को उपहार में दी गयी कुछ जगहों में से एक है। हाल ही में तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड द्वारा एक संपत्ति पर कब्जा करने का चौंकाने वाला मामला सामने आया था। यहां, हिंदू बहुसंख्यक आबादी वाले एक पूरे गांव को तमिलनाडु वक्फ बोर्ड द्वारा वक्फ संपत्ति घोषित किया गया है। बोर्ड ने तमिलनाडु में त्रिची के पास तिरुचंथुरई गांव को वक्फ संपत्ति घोषित किया था। जिसके बाद अब वहां लोग अधीर हो चुके हैं कि उनकी ज़मीन, उनके मकान पर ये मालिकाना हक़ वक्फ किस आधार पर जता रहा है।

इसके तुरंत बाद देशभर से ऐसी खबरें बाहर आने लगीं कि कई जगहों पर वक्फ अपना मालिकाना हक़ जता रहा है जो कि किसी और की संपत्ति थी। जिसका आज तक सभी प्रकार का टैक्स यही लोग भर रहे थे जिनको आज यह कहकर अवैध ठहराया जा रहा है कि यह संपत्ति तो आधिकारिक रूप से वक्फ की है। अब इस खेल में नया मोड़ ऐसे आया है कि देश की राजधानी दिल्ली को भी यूपीए सरकार ने भेंट स्वरूप लिखित रूप से दान कर दिया था जैसे वो सरकारी या सार्वजानिक संपत्ति न होकर उनकी बपौती थी।

टाइम्स नाउ की एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, 2014 के आम चुनाव से कुछ दिन पहले यूपीए कैबिनेट द्वारा निर्णय लिया गया था और एक गुप्त नोट के माध्यम से अवगत कराया गया था कि 123 सरकारी संपत्ति अब वक्फ की हैं। यह संपत्तियां कनॉट प्लेस, अशोक रोड, मथुरा रोड और अन्य वीवीआईपी एन्क्लेव जैसे प्रमुख स्थानों में स्थित हैं। टाइम्स नाउ ने बताया कि एक फोन कॉल पर दिल्ली वक्फ बोर्ड के पक्ष में 123 सरकारी संपत्तियों को उनके नाम कर दिया था। चैनल ने गुप्त चिट्ठी भी साझा की जो 5 मार्च 2014 की है और तत्कालीन अतिरिक्त सचिव जेपी प्रकाश द्वारा हस्ताक्षरित है।

शहरी विकास मंत्रालय के सचिव को संबोधित करते हुए, नोट में लिखा गया कि “यह अधिसूचना भूमि और विकास कार्यालय (एलएनडीओ) और दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के नियंत्रण में दिल्ली में 123 संपत्तियों दिल्ली वक्फ बोर्ड को वापस करने की इजाजत देता है।” यह सब यथा शीघ्र तब हुआ जब एक दिन बाद देशभर में आदर्श आचार संहिता लागू होने वाली थी। ऐसे समय में कांग्रेसी तंत्र ने अपने वोट बैंक की राजनीति के चक्कर में सैंकडों करोड़ों की जमीन मिनटों में वक्फ बोर्ड को सौंप दी।

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यूपीए सरकार ने वक्फ को शक्तियां प्रदान की थी

यह ऐसे ही नहीं हो गया था, इसी यूपीए सरकार ने इतनी शक्तियां वक्फ को प्रदान कर दी थीं कि वक्फ का मन करे तो वो लाल किला को भी अपनी संपत्ति बता उसे हथिया सकता है और कर्तव्यपथ की भूमि को भी अपना बता अपने स्वामित्व की घोषणा कर सकता है। यह कांग्रेस की सरकार की ही देन थी जो सन 1995 में “वक्फ अधिनियम, 1995” एक कानून बनाकर इतना ताकतवर बना दिया कि वो जिस जमीन पर दावा ठोक दे वो थोक के भाव उसकी हो जाती है। इस वक्फ कानून के अनुसार अन्य संपत्ति के मालिक को तब तक इसका भान नहीं होता कि वो संपत्ति जिसे वो वर्षों से अपनी बता रहा है, असल में वो वक्फ की है। यह सब तो उस भले मानस को तब पता चलता है जब वो किसी सरकारी काम में लगता है या उस संपत्ति को बेचने निकलता है और अंततः पाता है कि यह संपत्ति तो वक्फ की है। इसकी खरीद और बिक्री से जुड़ी किसी भी प्रक्रिया के लिए पहले वक्फ वाले चच्चा से एनओसी लेनी पड़ेगी तभी कोई अन्य कार्रवाई आगे हो सकती है। अब कानून है तो निभाना तो पड़ेगा ही, यहां तो यह भी विडंबना है कि “अब्बा नहीं मानेंगे” यह भी नहीं कह सकते क्योंकि उसका भी स्वामित्व वक्फ वालों पर ही तो है।

सच कहें तो यूपीए सरकार के ऐसे प्रपंचों पर यही वाक्य चरितार्थ होता है कि “इनका हिसाब चुकाते-चुकाते हम ख़ाक हो जाएंगे।” जिस दिल्ली में रैन बसेरों में कपकपाती ठंड में पैर रखने की जगह नहीं मिलती, जिस दिल्ली में आज भी आश्रय की तलाश में लोग भटकते पाए जाते हैं, उस दिल्ली में गुलामी से ग्रसित यूपीए सरकार ने 123 संपत्तियों को वक़्फ़ के नाम कर दिया, वो भी 2014 के चुनाव से ठीक कुछ दिनों पहले। ऐसी पार्टियों और विचारधाराओं को शर्म आनी चाहिए कि वो कैसे देश की संपत्ति को वक्फ को मुफ्त में खैरात के रूप में बांट सकती हैं। इन्हीं कर्मों का प्रतिफल है कि 2014 के बाद से ही ऐसी मानसिकता वालों को जनता ने करारा जवाब देते हुए उस मुहाने पर खड़ा कर दिया है जहां वो अंकीय गणित के अनुसार “विपक्ष” तक का तमगा प्राप्त करने में असमर्थ हो चुके हैं।

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