हम कम से कम 150 वर्ष तक का जीवन जी सकते हैं, बस यह करना होगा

हमारे शास्त्रों में इसकी पूरी व्यवस्था की गयी है!

sanatan

अरे भाई, यह जीवन व्यर्थ है!

शहर की लाइफस्टाइल बहुत बेकार है!

Oh! this toxic environment

यह हार्ट diseases इतने क्यों बढ़ रहे हैं?  

ऐसे कितने उदाहरण होंगे, जिनसे आप कभी न कभी परिचित हुए होंगे। ऐसी कितनी ही बातें होंगी जो आपको दिन प्रतिदिन चिंता के अथाह सागर में डुबो देती होंगी पर कभी मंथन किया है कि आखिर ये सब क्यों होता है? कभी सोचा है कि गांव की जीवनशैली और नगर की जीवनशैली में आकाश पाताल का अंतर कैसे है? क्या इसका कोई उत्तर है, क्या हमारी वर्तमान समस्याओं, हमारी जीवनशैली, हमारी लंबी आयु हेतु कोई उपाय है?

इस लेख में जानेंगे कि कैसे हम लंबे समय तक पृथ्वी पर उसी भांति निवास कर सकते हैं, जैसे आदि काल में योद्धा, ऋषि मुनि निवास करते थे, और कैसे इसके लिए बस कुछ सरल, पर महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिन्हें हम रूढ़िवादिता के नाम पर लतियाते आए हैं।

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ब्रह्म मुहूर्त जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है

कभी ध्यान दें तो आपके पुरखे, विशेषकर आपके दादा-दादी बताते होंगे कि कैसे उनकी बिरादरी में लोग 70–80 वर्ष तक जीते थे और आज तो व्यक्ति अगर 60 भी पार कर ले, तो उसे उपलब्धि मान लिया जाता है। ऐसा क्यों होता है? हम कहां चूकते हैं? इसके अनेक कारण हैं परंतु इनमें सबसे प्रमुख हैं प्रहर।

ऋषि मुनि हो या हमारे ग्राम के पुरखे, ब्रह्म मुहूर्त तो जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग होता था। सूर्योदय से काफी पूर्व इस काल में लोग उठकर अपने नित्य कर्म निपटाते, तद्पश्चात अपने कार्यों के लिए प्रस्थान करते एवं गोधूलि बेला यानी सूर्यास्त के पश्चात जब गोधन अपने स्थान पर वापस आ जावें, तब सभी लोग सोने के लिए चले जाते थे। ब्रह्म मुहूर्त आज के समय में लगभग सवा 3 बजे सुबह होता, परंतु इस समय तो लोग अब सोने जाते हैं, नेटफ्लिक्स के बिंज वॉच से तो फुर्सत मिले।

अब आते हैं जीवनशैली के उस पक्ष पर जिस पर सबसे अधिक लोग रोगी बनते हैं। प्रदूषण तो फालतू में बदनाम है, क्योंकि जब भोजन और जीवनशैली ही गड़बड़ है तो परिस्थितियों का क्या कर लेंगे? उठना 10 बजे, न प्राणायाम से वास्ता, न सूर्य नमस्कार से, भकोसना उल्टा सीधा फ्रेंच फ्राई, कोल्ड ड्रिंक, फलाना ढिमकाना। फिर रात में 3 बजे से पूर्व न सोना और जब शरीर जवाब देने लगे, तो कहना, शहर ही खराब है। गुरु, शहर नहीं बल्कि आपकी सोच और आपका व्यक्तित्व खराब है।

इसके अतिरिक्त हम भोजन पद्धति पर भी ध्यान देना भूल गए हैं। गरिष्ठ भोजन अब हमारे लिए पाप समान हो चुका है, और Keto कूल। कुछ तो Granola bars और पता नहीं क्या-क्या नौटंकी चापने लगे हैं, सिर्फ इसलिए ताकि कोई उन्हें गंवार न कहे, जबकि जो शक्ति एक गिलास सत्तू का घोल दे देगा वो दो प्रोटीन शेक भी न दे पाएगे।

कोशिकाओं का खास ध्यान रखना चाहिए

जब तक मानव शरीर की कोशिकाएं कुशलता से काम करेंगी तब तक एक जीवित शरीर का अस्तित्व लंबे समय तक बना रहेगा और जीवन प्रत्याशा कई गुना बढ़ सकती है। इसलिए, यह आवश्यक है कि कोशिकाओं को अपना कार्य करने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करायी जाए। जीवित रहने के लिए, एक कोशिका में चीनी, खनिज और अधिक महत्वपूर्ण रूप से ऑक्सीजन जैसे महत्वपूर्ण पदार्थों की निरंतर आपूर्ति होनी चाहिए।

इस प्रकार यह महत्वपूर्ण है कि हमारे पास खनिज युक्त खाद्य स्रोत और ऑक्सीजन का पर्याप्त सेवन होना चाहिए। लेकिन, आधुनिक उपभोक्तावाद और ऑफिस वर्क लाइफस्टाइल में, हम इन सभी आवश्यक स्रोतों को नहीं लेते हैं। हम न तो स्वस्थ आहार लेते हैं और न ही पर्याप्त ऑक्सीजन लेते हैं। हम प्रिजर्वेटिव पैक्ड फूड खाते हैं। फैटी एसिड से भरपूर रिफाइंड तेल, अस्वास्थ्यकर सड़क और अन्य पश्चिमी आयातित खाद्य पदार्थ भी शरीर के लिए अच्छा नहीं है।

इसके अलावा, तथाकथित व्यस्त जीवन में, हम दैनिक रूप से व्यायाम नहीं करते। प्रत्येक ऊतक और प्रत्येक कोशिका को ठीक से काम करने के लिए ऑक्सीजन की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है। सांस लेने की दर को बढ़ाकर ही ऑक्सीजन का सेवन बढ़ाया जा सकता है। अनुलोम विलोम जैसे व्यायाम या प्राणायाम से ही श्वास की गति को बढ़ाया जा सकता है।

अब आते हैं Intermittent Fasting पर 

भाई, ये तो कुछ भी नहीं है। Intermittent Fasting नाम की चिड़िया के बारे में सुना है? नहीं सुना है तो आप कूल नहीं हो भैया। आजकल लेटेस्ट फैशन है जी, डाएटिंग के लोक में नया अस्त्र है Intermittent Fasting। परंतु इसमें खास क्या है इस कॉन्सेप्ट के अनुसार दिन में 16 घंटे तक व्यक्ति को कुछ भी खान-पान का सेवन नहीं करना है और बाकी 8 घंटों में उसे भोजन की पूर्ति का जो भी कार्य पूर्ण करना है, सो करना है। वाह जी वाह, हम से निकले, हमको ही ज्ञान सिखा रहे हैं ये कल के छोकरे। आप माने या नहीं, परंतु Intermittent Fasting एक ऐसा ढोंग, जो भारत के व्रत उपवास की संस्कृति से चुराकर पाश्चात्य जगत ने एक अलग चोगे के साथ पेश करने का प्रयास किया है।

हैं, यह कैसे? व्रत उपवास और Intermittent Fasting में क्या संबंध? व्रत/उपवास सनातन धर्म का एक अभिन्न अंग है, और ईसाईयत अथवा इस्लाम की भांति, इसमें कट्टरता का कोई स्थान नहीं है। इसमें आप भिन्न भिन्न प्रकार के व्रत रख सकते हैं और यहां जल का सेवन करना न केवल उचित है, अपितु प्रशंसनीय भी।

सनातन धर्म में लगभग हर तिथि व्रत रखने के योग्य है, लेकिन अधिकतम व्रत एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी [दोनों प्रदोष की श्रेणी में वैध है], चतुर्दशी, अमावस्या अथवा पूर्णिमा की तिथि पर रखे जाते हैं। इसी भांति हर सनातनी मास में एक मासिक शिवरात्रि एवं कृष्ण जन्माष्टमी भी होती है, जिस दिन व्रत का अनुसरण किया जा सकता है। हर सनातनी मास में व्रत का अनुसरण, यानी 10 से 15 दिन का उपवास तो निश्चित है।

व्रत/उपवास के पीछे का शास्त्र क्या है? इससे हमारे देह को क्या लाभ मिलता है, यानी हमारा शरीर किस प्रकार से स्वस्थ रहता है? असल में व्रत रहने से देह में इंसुलिन के प्रति प्रतिक्रिया बढ़ जाती है। इंसुलिन की मात्रा ऊपर नीचे होना ही डाइअबीटीज़ से हमारे शरीर को मुक्त रहने या न रहने का अंतर तय कराती है। यह हार्मोन तब निकलता है जब व्यक्ति भोजन करते हैं और ये लिवर, मसल, एवं फैट सेल को ग्लूकोज़ स्टोर करने के लिए बाध्य करता है। जब आप व्रत करते हैं, तो आपके शरीर में उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट खर्च होने के बाद बाकी के फैट सेट की उपयोगिता को भी प्रयोग में लाता है।

तो व्रत और Intermittent Fasting में अंतर क्या है? वैसे तो कोई विशेष अंतर नहीं, परंतु हमारे सनातन शस्त्र शरीर के सम्पूर्ण विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं और इसीलिए सम्पूर्ण व्रत पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे अधिक से अधिक ग्लूकोज़ खर्च हो और फैट भी उपयोग में लाई जाए, ताकि वजन नियंत्रण में रहे।

नवरात्रि, सोलह सोमवार इत्यादि जैसे व्रत के बारे में भी यदि आपको ज्ञात न हो, तो आप वास्तव में सनातनी कहलाने योग्य नहीं हो। नवरात्रि तो सनातन धर्म का गौरव है, और 16 सोमवार तो श्रावण मास का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो विगत वर्षों में अपनी पहचान खो रहा है। हमारा शरीर ऐसा नहीं जिसे निरंतर भोजन की आवश्यकता पड़े। इसे ऐसा रचाया गया है कि वह ऊर्जा का उत्सर्जन करे।

परंतु आधुनिक जीवन ने सारा खेल उलटपलट कर रख दिया है। चर्बी घटाना तो छोड़िए, हम अत्यधिक शुगर से भी अपने शरीर को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। वैसे भी, जो राष्ट्र युगों युगों से एक दो घंटे नहीं, नौ नौ दिन, तक फलों और जल पर जीवनयापन करने की कला पर निपुण हो, जिस राष्ट्र की संस्कृति में अन्न मुक्त भोजन भी व्रत का एक हिस्सा हो, उसे आप ‘Intermittent Fasting’ बताओगे?

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पाश्चात्य जगत का ढोंग

अब आपने ये तो अवश्य सुना होगा, कि कैसे पाश्चात्य जगत प्राणायाम को Cardiac Coherence Breathing Exercises बता रहा है, जिससे  से हृदयगति स्थिर रहती है और Anxiety का खतरा भी कम रहता है। पाश्चात्य संस्कृति एक और भारतीय पद्धति को ‘पाश्चात्य चोला’ ओढ़ाकर अपना सिद्ध करना चाह रही है, क्योंकि जो मज़ा Cardiac Coherence Breathing Exercises बोलने में है, वो प्राणायाम बोलने में कहाँ?

हम ये तो सुनते आ रहे हैं कि ऋषि मुनि सैकड़ों वर्षों तक तपस्या करते थे, अनवरत, बिना डिगे। ऐसा कर पाना संभव कैसे था? निस्संदेह वे अपने श्वास के इंद्रियों पर नियंत्रण पाने में सफलता प्राप्त करते थे और इसी के बल पर वे असंभव को भी संभव कर सकते थे, जैसे श्रीकृष्ण ने किया, जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाया।

प्राचीन चिकित्सा और शल्य चिकित्सा संबंधी सुश्रुत और चरक संहिता में कहा गया है कि मानव जीवन को सामान्य रूप से 100 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। यह भी कहा जाता है कि प्राचीन अमलकायसा ब्रह्म रसायन के उपयोग से जीवन काल लगभग 1000 वर्ष तक बढ़ सकता है। प्राचीन वेदांग-कल्प अभ्यास जीवन की आयु को लगभग 500-800 वर्ष तक बढ़ा सकता है।

ये प्राचीन ग्रंथ विभिन्न प्रकार के भोजन करने, दैनिक दिनचर्या का सही रूप से पालन करने, व्यायाम करने के बार में बताते हैं। कुल मिलाकर सनातन संस्कृति का पालन करके हम एक अच्छा जीवन जी सकते हैं। जीवन के इन सभी प्राचीन रहन-सहन का संयुक्त प्रभाव संभावित रूप से जीवन को कई गुना बढ़ा सकता है।

जैसे आयुर्वेद में रसायन चिकित्सा रस और धातु के बारे में बात करती है, शरीर को इसका पोषण करना चाहिए। रस शब्द का अर्थ है पोषक द्रव और अयन का अर्थ है मार्ग। यह कुछ जड़ी-बूटियों का सुझाव देता है, जिन्हें संक्रमण पैदा करने वाली बीमारियों से बचाने के लिए शरीर को अवश्य लेना चाहिए।

तो सम्पूर्ण विश्लेषण का सार तो भाई यही है कि हम भी लंबे समय तक जी सकते हैं, बिना भय, बिना संकोच, बस हमें अपनी जीवनशैली में कुछ सरल, पर अनोखे परिवर्तन करने होंगे और अपने मूल संस्कृति की ओर जाना होगा। संस्कृति से समझौता अनर्थ को निमंत्रण देने समान होगा।

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