सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में वेदांता बनाएगी भारत को आत्मनिर्भर!

भारत सेमीकंडक्टर का पावरहाउस बनने के लिए कमर कस चुका है

vedanta

विश्व में नयी-नयी तकनीक का आविष्कार हो रहा है, जैसे-जैसे तकनीक के क्रम में विकास होता जा रहा है वैसे-वैसे सेमी कंडक्टर की मांग भी बढ़ती जा रही है। सेमीकंडक्टर शुद्ध सिलिकॉन या जर्मेनीयम या गैलीयम आर्सेनाइड जैसे तत्वों से बना होता है। इन तत्वों में थोड़ी मात्रा में अशुद्धियों को भी मिलाया जाता है जिससे इसकी चालकता प्रभावित होती है। सेमीकंडक्टर्स सभी इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों जैसे-टीवी, लैपटॉप, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन इत्यादि के निर्माण में काम आते हैं। तेजी से डेटा इकोनॉमी की तरफ बढ़ रहे विश्व में इसकी मांग भी बढ़ रही है किंतु उसकी आपूर्ति को सीमित देश ही पूरा कर पाते हैं।

हम इस लेख में जानेंगे कि कैसे भारत सेमीकंडक्टर का पावरहाउस बनने के लिए कमर कस चुका है।

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कई देश अकेले ही भारी मात्र में सेमीकंडक्टर सप्लाई करते हैं

सेमी कंडक्टर आपूर्ति को पूरा करने वाले देशों में कुछ देश ऐसे भी हैं जो अकेले ही भारी मात्र में सेमीकंडक्टर सप्लाई करते हैं। वैश्विक स्तर पर महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने जापान, दक्षिण कोरिया, चीन और अमेरिका सहित महत्त्वपूर्ण चिप निर्माण करने वाले देशों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है। इसी क्रम में एक नाम है ताइवान। अकेले ताइवान दुनियाभर के 60 प्रतिशत सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण करता है। पूरे विश्व में सेमीकंडक्टर का बाज़ार 2021 में कुल 527.88 बिलियन डॉलर का था जो 2029 तक बढ़कर 1380 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है।

अकेले भारत में इसका बाज़ार 2021 में 119 बिलियन डॉलर का था जो 2026 में बढ़कर 300 बिलियन डॉलर का हो जाएगा। विकासशील देश से विकसित देश की तरफ अग्रसर भारत के अंदर आने वाले समय में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की मांग बढ़ने वाली है, परिणामस्वरूप सेमीकंडक्टर चिप की डिमांड भी बढ़ेगी। ऐसे में भारत यदि सेमीकंडक्टर चिप के मामले में अन्य देशों पर निर्भर रहता है तो उसके लिए यह बड़ा सिर दर्द साबित हो सकता है। अतः मोदी सरकार ने पहले ही इस खतरे को भांप लिया है और इसी क्रम में उपयुक्त कदम भी उठाए हैं।

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ‘सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र’ के विकास का समर्थन करने हेतु 76,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। यद्यपि यह कदम काफी देरी से लिया गया है किंतु यह आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए एकीकृत सर्किट या चिप्स के रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए एक स्वागत योग्य कदम है। भारत ने ‘इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पोनेंट्स और सेमीकंडक्टर्स’ (SPECS) के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए योजना भी शुरू की है जिसके तहत इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों और सेमीकंडक्टर के निर्माण के लिए आठ वर्ष की अवधि में 3,285 करोड़ रुपये का बजट परिव्यय किया है।

सार्वजनिक रूप से उपलब्ध विभिन्न रिपोर्ट पर ध्यान दें तो निजी और सरकारी क्षेत्र की कंपनियां भारत को सेमीकंडक्टर का पावरहाउस बनाने के लिए अग्रसर हैं। भारत के अंदर मुख्यतः दो खिलाड़ी सेमीकंडक्टर की रेस में हैं और वो हैं अडानी और वेदांता। वेदांता ने सेमीकंडक्टर चिप को बनाने के क्रम में विश्व की जानी मानी सेमीकंडक्टर कंपनी फ़ॉक्सकॉन के साथ 19.5 बिलियन डॉलर का समझौता किया है। वेदांता डिस्प्ले लिमिटेड गुजरात में 94,500 करोड़ रुपये के निवेश के साथ एक डिस्प्ले फैब यूनिट स्थापित करेगा और वेदांता सेमीकंडक्टर्स लिमिटेड 60,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ गुजरात में एक एकीकृत सेमीकंडक्टर फैब यूनिट और आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली एंड टेस्ट यानी OSAT सुविधा स्थापित करेगा।

इस प्रकार ये दो एमओयू एक साथ मिलकर 1.54 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश गुजरात में लाएंगे और राज्य में लगभग 1 लाख नये रोजगार के अवसर पैदा करेंगे। भारत को सप्लाई चेन में ग्लोबल पार्टनर बनाने के अलावा सेमीकंडक्टर फैब यूनिट अर्थव्यवस्था के लिए गेम चेंजर साबित होगा। यह युवाओं के लिए रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर पैदा करेगा और राज्य के लिए रेवेन्यू भी उत्पन्न करेगा।

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वेदांता द्वारा गुजरात को चुनने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं

प्रस्तावित सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग फैब यूनिट 28nm टेक्नोलॉजी नोड्स पर वेफर साइज 300mm के साथ काम करेगी और डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग यूनिट छोटे, मध्यम और बड़े ऐप्लीकेशन्स के लिए जेनरेशन 8 डिस्प्ले का उत्पादन करेगी।

भारत में सबसे बड़े इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता टाटा मोटर्स ने सेमीकंडक्टर को डिजाइन करने और विकसित करने के लिए जापानी चिप निर्माता रेनेसास इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ हाथ मिलाया है। इसके अलावा दोनों कंपनियां 5G और ऑटोमोटिव सेवाओं जैसे उन्नत-चालक सहायता प्रणाली (ADAS) में सहयोग के तौर तरीकों को भी चाक-चौबंद कर रही हैं। टाटा तेलंगाना (भारत) में आउटसोर्स सेमीकंडक्टर असेंबली और टेस्ट (ओएसएटी) संयंत्र विकसित करने की दिशा में भी काम कर रही है। ओएसएटी संयंत्र सिलिकॉन वेफर्स को सेमीकंडक्टर चिप्स में बदल देता है।

हर दूसरे नवाचार की तरह भारत का सेमीकंडक्टर पुश भी आवश्यकता से प्रेरित है। पहले भारत स्मार्ट फोन, रेडियो, टीवी, लैपटॉप, कंप्यूटर या यहां तक कि उन्नत चिकित्सा उपकरण चलाने के लिए सेमीकंडक्टर्स चिप्स के आयात पर काफी हद तक निर्भर था। आयात मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, ताइवान, दक्षिण कोरिया, जापान और नीदरलैंड जैसे देशों से हुआ।

भारत ने महसूस किया है कि सेमीकंडक्टर चिप्स जैसे महत्त्वपूर्ण उत्पाद के लिए पूरी तरह से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर होना एक सही नीति नहीं है। भारत की प्रतिभा और अनुभव को ध्यान में रखते हुए सही विकल्प यह हो सकता है कि कम से कम वर्तमान के लिए नया मिशन, डिज़ाइन केंद्रों, परीक्षण सुविधाओं, पैकेजिंग आदि सहित चिप बनाने वाली श्रृंखला के अन्य हिस्सों की वित्तीय सहायता पर ध्यान केंद्रित किया जाए। भविष्य के चिप उत्पादन को एक ही प्रणाली पर निर्भर नहीं होना चाहिए और इसे डिज़ाइन से निर्माण तक, पैकिंग और परीक्षण के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना चाहिए। भारत को इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में भी सुधार करना चाहिए।

सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भरता के नये अध्याय को लिखने के लिए तैयार है, वह केवल सेमीकंडक्टर  चिप की घरेलू बाज़ार की मांग की आपूर्ति नहीं करेगा अपितु भविष्य में वैश्विक बाज़ार की आवश्यकताओं को पूरा करेगा, इससे भारत आर्थिक रूप से तो समृद्ध होगा ही, साथ ही उसकी ठसक भी विश्व पटल पर और बढ़ेगी।

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